एकदा
यशोधर्म एक प्रसिद्ध संत थे। अनेक शिष्य उनसे ज्ञान प्राप्त करने के लिए आतुर रहते थे। एक दिन जब वे अपने शिष्यों को पढ़ा रहे थे तो एक शिष्य बोला, ‘गुरुदेव! अध्यात्म मार्ग में गति पाने के लिए व्यक्ति को क्या करना चाहिए?’ शिष्य का प्रश्न सुनकर संत यशोधर्म बोले, ‘वत्स! जैसे पक्षी को उड़ान भरने के लिए दो पंखों की आवश्यकता होती है, उसी तरह अध्यात्म का मार्ग पाने के लिए भी व्यक्ति को संकल्प एवं समर्पणरूपी दो पंखों की आवश्यकता होती है। इनके अभाव में कोई भी व्यक्ति अध्यात्म की राह नहीं पा सकता।’ यह सुनकर शिष्य बोला, ‘गुरुवर! क्या अकेले संकल्प या समर्पण से अध्यात्म लाभ नहीं हो सकता?’ संत यशोधर्म ने उतर दिया, ‘वत्स! जिस तरह नौका से नदी पार जाना हो तो दोनों पतवारों से नाव चलानी पड़ती है, उसी तरह अध्यात्म मार्ग के लिए भी संकल्प व समर्पण, दोनों का होना आवश्यक है।’ शिष्य अपने गुरु की बात का मर्म समझ गया। प्रस्तुति : मुकेश ऋषि