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एकदा

07:53 AM Feb 07, 2024 IST

ईश्वरचंद विद्यासागर के साथ सदैव ही कुछ शोध छात्र रहते थे। विद्यासागर भुखमरी और अकाल से त्रस्त बंगाल के दूर-दराज के देहाती इलाकों में सेवा करने जा रहे थे। देहात आकर ईश्वरचंद विद्यासागर के आदेशानुसार भोजन और पेयजल वितरित किया जा रहा था। औषधि भी बांटी जा रही थी। कुछ वंचित और परेशान लोग ईश्वरचंद विद्यासागर के उस समूह पर झपटने और लपकने लगे। सभी शहरी शोधार्थी तुनक कर झुंझला गये। मगर ईश्वरचंद विद्यासागर के समझाने पर शांत हुए। ‘ये लोग कब से जीवन और मृत्यु से जूझ रहे हैं। इनकी मानसिकता को समझो और क्रोध न करो। क्रोध करके आप वो सब खो देते हैं जो आपने इतनी देर शांत रहकर कमाया है। अतः अपने क्रोध को गुलाम बना कर रखिये, स्वामी नहीं।’ ईश्वरचंद विद्यासागर के यह शब्द प्रेरक बने। प्रस्तुति : मुग्धा पांडे

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