एकदा
धार्मिक गुरु खलीफा उमर बेहद इंसाफ़ प्रिय और शूरवीर थे। एक बार ईरानी सेना ने उनकी फौज पर हमला बोल दिया। जंग कई दिनों तक जारी रहा। अंततः ईरानी सेना हार गई। उसके सेनापति को कैद कर, खलीफा के सामने हाज़िर किया गया। खलीफा ने हुक्म दिया, ‘इसका सिर कलम कर दो।’ तभी ईरानी सेनापति ने गुहार लगाई, ‘ठहरिए हुजूर, मैं प्यासा हूं।’ खलीफा ने तुरंत पानी मंगवाया। बावजूद इसके सेनापति भय से कांप रहा था। खलीफा ने उसे दिलासा दिया, ‘तू बेखौफ पानी पी ले। हम तेरे से वादा करते हैं कि जब तक तू पानी नहीं पी लेगा, तब तक जिंदा रहेगा।’ सुनकर ईरानी सेनापति ने पानी का प्याला लुढ़का दिया। बोला, ‘हुजूर! अब तो मुझे पानी नहीं पीना। आप चाहें, तो मेरा सिर धड़ से अलग कर दें। लेकिन अपने वचन का ख्याल रखें।’ खलीफा उमर गहरी सोच में पड़ गया। बोला, ‘जाओ, तुम्हें आजाद किया। मेरे वचन की कीमत तेरी जान से कहीं ज्यादा है।’ प्रस्तुति : अमिताभ स.