एकदा
स्वयं अपनी राह
अपने अंतिम दिनों में भगवान महावीर मृत्यु शैया पर थे। उनके अनुयायी, शिष्य और सहचर सभी अंतर्मन से दुखी थे। उनका प्रिय शिष्य गौतम उनसे बहुत दूर अन्यत्र किसी ग्राम सभा में था। गौतम को रास्ते में ही समाचार मिला- महावीर नहीं रहे। रुदन करता गौतम दुखी मन से महावीर के समीप जा पहुंचा और प्रलाप करते हुए गांव वालों से पूछा, ‘मृत्यु से पूर्व प्रभु ने मेरे लिए कोई संदेश छोड़ा है क्या?’ सुबकते हुए ग्रामीणों ने बताया, ‘महावीर ने कहा था कि गौतम से कहना, उसने सब कुछ छोड़ दिया है फिर मुझे ही क्यों पकड़े हुए है। मेरा मोह छोड़कर तप में मन लगाए। उसको समझाना, नदी पार जाना हो तो नाव को किराए पर लेना पड़ता है और किनारा आते ही नाव को छोड़ देना पड़ता है। बाद में कोई नाव को सिर पर लादकर तो नहीं घूमता। मैं तो भव सागर से पार लगाने के लिए एक माध्यम मात्र था। अब आगे का मार्ग तुम्हें स्वयं पार करना है। इसलिए मेरा मोह छोड़कर आगे बढ़ो और स्वयं अपनी राह बनाओ। प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी