एकदा
एक बार संत एकनाथ से किसी बात पर नाराज होकर रूढ़िवादियों ने उनके पुत्र हरि पंडित को उनके विरुद्ध यह कहकर भड़काना शुरू कर दिया कि तुम्हारा पिता धर्मग्रंथों का पाठ मराठी भाषा में करता है और किसी के भी हाथ का बना खा-पी लेता है। हरि जब इस बारे में बात करता तो एकनाथ तर्कों से उसे समझाने की कोशिश करते| लेकिन उनकी बातें हरि के गले नहीं उतरतीं। एक दिन वह अपने पिता से बोला कि हम दोनों के सोचने का तरीका बिलकुल भिन्न है। इसलिए जब हम एकमत नहीं हो सकते तो बेहतर है कि मैं घर छोड़ दूं। यह कहकर वह घर से निकल गया और वाराणसी जाकर बस गया। हरि के जाने से उसकी मां गिरिजा दुखी रहने लगीं। उन्होंने एकनाथ से बेटे को वापस बुला लाने की जिद की। हरि इस शर्त पर पैठण वापस आया कि उसके पिता उसकी बात मानेंगे। इसके बाद एकनाथ ने संस्कृत में पाठ करना शुरू कर दिया। इससे उनके श्रोताओं की संख्या घट गई। यह देखकर पुत्र को सच का भान हुआ और अपनी मातृभाषा के प्रति पिता को पुनः अनुराग करने का आग्रह किया। प्रस्तुति : सुरेन्द्र अग्निहोत्री