एकदा
अकबर की पहली पत्नी रुकैया संवेदनशील महिला थी। वह पढ़ने-लिखने की शौकीन थी और कला प्रेमी भी। एक बार जब अकबर को युद्ध से लौटकर अधीन राजाओं के झगड़े को लेकर दुख हुआ तब रुकैया बेगम ने समझाया कि यह मन हर पल पावन और हर जगह उड़ने वाला पंछी है। उसी के होने का अहसास ही हमारा मसला होना चाहिए। परम तत्व की अनुभूति ही हमारे जीवन का परम लक्ष्य है। अपने मन की इस चंचलता तथा उड़ान का बोध न होना अर्थात् भटकना ही हमारे दुःख की खास वजह है। अपने पसंदीदा माहौल, अपने गुरु, कुछ हुनर सीखने की तलब स्वाध्याय और बेहतर होने की ख्वाहिश से अपने मन को तरंगित करते रहें। मन ही हर तरह की आजादी का सबसे बढि़या माध्यम है, इसका इल्म ही बेहतरी का रास्ता तय करता है। रुकैया बेगम के इस सलाह-मशविरे के बाद ही अकबर ने दिमागी सुकून महसूस किया और दीन-ए-इलाही धर्म के विस्तार का संकल्प लिया। प्रस्तुति : पूनम पांडे