एकदा
प्यारा इंसान
एक बार संत धरनीदास अपने शिष्यों को सामाजिक समरसता के पाठ पढ़ा रहे थे। एक जमींदार का अहंकारी और लापरवाह पुत्र उनको बराबर कुछ अटपटे और बेकार सवाल करके तंग कर रहा था। बाकी शिष्य उसे सबक सिखाना चाहते थे, लेकिन संत धरनीदास जी ने सिर हिलाकर मना कर दिया। अब एक अंतराल हुआ और सबको हरे पत्ते पर रखकर हलवा खाने को दिया गया। उस किशोर ने जरा हलवा खाया और उठकर चला गया। संत धरनीदास ने बाकी शिष्यों को संकेत किया। वह उसका पीछा करते गये। किशोर ने हलवा एक साफ जगह पर बिखेर कर चिडि़या की आवाज निकाली। कुछ ही पल में झुंड के झुंड पंछी आये और मीठा हलवा चुग गये। संत धरनीदास ने अब सभी को समझाया कि हर शरारती और खुराफाती में भी एक प्यारा इंसान छिपा होता है। सब कुदरत के प्यारे इंसान हैं। संत धरनीदास का यह संदेश अमर हो गया। संत धरनीदास बिहार की धरती पर बहुत उच्चकोटि के संत हुए हैं। परम चेतना सम्पन्न इस संत ने समाज से ऊंच-नीच का भेदभाव मिटाकर समरसता लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
प्रस्तुति : मुग्धा पांडे