एकदा
‘आप अब तो सबसे कहेंगे ही कि मैं दानवीर हूं। आज सुबह ही सैकड़ों भूखे लोगों को घर बुलाकर हलवा और पूरी खिलाई है। कभी आप मेरी भी प्रशंसा कीजिये तथागत।’ एक अधीर-सा धनी गौतम बुद्ध के समीप आकर अनुनय-विनय करने लगा। तथागत ने अपने नयन खोले और हंसकर कहा कि मदद भी ऐसी जो सबको ढिंढोरा पीटकर बतानी पड़ी। मगर, सच्ची मदद तो वह है जो कि कुछ ऐसी हो कि सहयोग पाने वाले को लाभ हो और मदद करने वाला कभी भी जान भी न पाये कि मदद कर दी है। जैसे वह साठ साल की महिला। जो तुम्हारे पड़ोस में रहती है। उसे देखो। वह महिला पिछले कितने ही सालों से पनघट से घड़े भरकर लाती है। गीत गाती है पानी छलकता है तो अनजाने ही रास्ते के पौधे सींचती जाती है। हर रोज बासी रोटी और भात गाय को देती है तो चिडि़यां भी चुग जाती हैं तो उसे चींटी भी खाती है और मक्खी भी। सोचो इतने साल में कितनों की भूख मिटा दी होगी। निरंतर दान करती ही जा रही है रुकी नही हैं। तो अब तुम मुझे बताओ कौन है सबसे महान दानी। प्रस्तुति : मुग्धा पांडे