एकदा
जनकवंशीय जनदेव मिथिला के राजा थे। वे विद्वान आचार्यों से उपदेश ग्रहण कर उनका पालन करने का प्रयास किया करते थे और प्रजा के दुख दूर करने में तत्पर रहते थे। एक बार कपिला के पुत्र महामुनि पंचशिख मिथिला पहंुचे। महामुनि की विरक्ति, तपस्या और ज्ञान देखकर राजा जनदेव बहुत प्रभावित हुए। मुनि पंचशिख भी राजा की श्रद्धा, भक्ति भावना के कायल हो गए। मुनि ने उन्हें मोक्ष मार्ग का उपदेश देते हुए कहा, ‘संसार को स्वप्नवत मानना चाहिए। दुख-सुख में समान रहना चाहिए। सच्चा सुख भगवान की भक्ति से ही मिलता है।’ राजा ने मुनि के उपदेश का पालन करने का संकल्प लिया। वह निष्काम भाव से प्रजाहित में प्रवृत्त रहने लगे। भगवान विष्णु तक राजा की ख्याति पहंुची। वह परीक्षा लेने के लिए ब्राह्मण का रूप धारण कर मिथिला जा पहुंचे और कोई अमर्यादित कार्य कर दिया। जनदेव ने कहा, ‘तुम मेरे राज्य की सीमा से बाहर चले जाओ।’ ब्राह्मण ने एक भवन में आग लगा दी। राजा विचलित नहीं हुए और बोले, ‘भवन जलने से मुझे तनिक भी दुख नहीं हुआ है।’ तभी ब्राह्मण की जगह विष्णु भगवान प्रकट हुए। वह बोले, ‘तुम वास्तव में आत्म कल्याण को प्राप्त कर चुके हो और मोक्ष के अधिकारी हो।’
प्रस्तुति : मुकेश ऋषि