एकदा
बात 1967 की है। अक्तूबर का आख़िरी हफ़्ता था। नयी दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस के ओडियन थिएटर में ज्वेल थीफ का प्रीमियर हो रहा था। प्रीमियर में शरीक होने फ़िल्म के हीरो देव आनंद दार्जिलिंग से उड़ान लेकर खासतौर से दिल्ली उतरे। पालम एयरपोर्ट से सीधे कनॉट प्लेस गए। ज्यों ही वह ओडियन के बाहर कार से उतरे, फैंस का हुजूम खुशी से उनसे लिपट कर उछलने-कूदने लगा। उत्साह-उमंग के बीच, एक जेबकतरे ने देव आनंद के पर्स पर हाथ साफ़ कर लिया। पर्स में 15,000 रुपये थे। बक़ौल देव साहब, ‘यक-ब-यक मेरी पेंट की पिछली जेब पर किसी ने हाथ फेरा, तो मुझे महसूस तो हो गया था। उसी क्षण मैंने अपनी पिछली जेब को हाथ से चेक किया, तो पाया कि पर्स गायब है! लेकिन तब मैंने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। क्योंकि उस वक्त मेरे इर्द- गिर्द उत्साह इतना था कि 15,000 रुपये की ‘मामूली रकम’ के लिए शोर मचाना या खोने का रोना रोना भी मुश्किल था।’ देव आनंद के शब्द हैं- ‘स्टारडम हासिल करने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है।’ इस वाक्य का ज़िक्र देव साहब ने अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में भी किया है।
प्रस्तुति : अमिताभ स.