एकदा
सुमेरु पर्वत पर स्वामी सदानन्द जी का आश्रम था। दूर-दूर से श्रद्धालु उनके दर्शन कर, अपनी समस्याओं का समाधान पाते थे। एक दिन एक स्वर्णकार उनके पास आया और प्रणाम कर ज्ञान चर्चा में लीन हो गया। पहला प्रश्न ईश्वर को लेकर हुआ कि ईश्वर अगर है तो दिखता क्यों नहीं है। स्वामी जी ने उससे सवाल किया, क्या फूलों की सुगंध नज़र आती है, तिलों में तेल दिखता है या दूध में मक्खन दिखाई देता है। उसी प्रकार ईश्वर सर्वव्यापी होते हुए भी दिखता नहीं, अनुभव किया जाता है। श्रद्धालु ने फिर पूछा, स्वामी जी, मनुष्य की परीक्षा कैसे होती है। स्वामी जी समझाते हुए बोले, जिस तरह तुम स्वर्ण के खरेपन को जांचने के लिए उसे कूटते हो, घिसते हो, काटते हो और तपाते हो, उसी प्रकार ईश्वर भी मनुष्य की परीक्षा उसके द्वारा किए गए दान से, व्यवहार में लाए गए शील से, अपनाए गए आचरण से और निभाए गए धर्म से लेता है। प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी