एकदा
भीतर का घटित
एक बार किसी फोटोग्राफर ने स्वामी रामकृष्ण का चित्र खींचा। फिर फोटोग्राफर चित्र को लेकर आया, तो स्वामी रामकृष्ण उस चित्र के पैर पड़ने लगे। आसपास बैठेे शिष्यों ने कहा,‘ आप क्या करते हैं परमहंस देव? लोग पागल कहेंगे! अपने ही चित्र के पैर पड़ते हैं?’
रामकृष्ण पमरहंस खूब हंसने लगे। उन्होंने कहा, ‘तुम क्या सोचते हो कि मुझे इतना भी पता नहीं कि यह मेरा ही चित्र है?’ वे फिर भी पैर पड़े और खड़े होकर तस्वीर को लेकर नाचने लगे। एक शिष्य ने फिर कहा, आप क्या कर रहे हैं? रामकृष्ण ने कहा, ‘यह चित्र मेरे साथ किसी और चीज का भी है। वह हमें दिखाई नहीं पड़ता। दरअसल जब यह चित्र लिया गया, तब मैं गहरी समाधि में था। यह समाधि का भी चित्र है। मैं तो सिर्फ रूप हूं। और मेरी जगह और भी रूप हो सकता था। लेकिन भीतर जो घटना घट रही थी, उसका भी चित्र है। मैं उसी को नमस्कार कर रहा हूं। -विभूति बुपक्या, खाचरोद, म़ प्ऱ