एकदा
त्याग-विश्वास की मिसाल
एक बार एक नवयुवक ने साबरमती आश्रम में महात्मा गांधी के चरण स्पर्श करके एक पत्र गांधी जी को थमाया। पत्र में लिखा था, ‘मुझे अपना गोद लिया पुत्र मान लीजिये।’ पत्र पढ़कर गांधी बोले, ‘निभा सको तो तुम मेरे पुत्र हुए।’ यह सुनकर नवयुवक की आंखों से ख़ुशी के आंसू टपकने लगे। इस युवक ने राष्ट्र सेवा कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। वर्धा में 20 एकड़ जमीन दान देकर स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र बनवाया। अंग्रेजों से मिली रायबहादुर की उपाधि लौटा दी, असहयोग आन्दोलन, नागपुर झंडा सत्याग्रह, साइमन कमीशन बहिष्कार, डांडी यात्रा जैसे आन्दोलनों में सक्रिय भाग लिया। वर्ष 1921 में 1 करोड़ रुपये दान देकर ऑल इंडिया तिलक मेमोरियल फंड बनावाया, दशकों तक कांग्रेस पार्टी के लिए ‘फाइनेंसर’ रहे, जिन वकीलों की भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में वकालत छूट गई थी, उन्हें निर्वाह हेतु आर्थिक सहायता दी, वर्धा स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर, खेतों और बगीचों में दलितों का प्रवेश कराया। यह नवयुवक वैरागी पूंजीपति जमनालाल बजाज थे। जिन्होंने गांधी जी का मानस पुत्र बन ऐसा नाता निभाया कि भारत के इतिहास में त्याग और विश्वास की मिसाल रूप में जमनालाल बजाज को ऐसे श्रेष्ठ गुणों के कारण याद किया जाता है। प्रस्तुति : बनीसिंह जांगड़ा