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एकदा

06:31 AM Aug 31, 2023 IST

किसी संत के पास एक युवक आया और उसने उनसे धर्म ज्ञान देने की प्रार्थना की। संत ने कहा कि वह उनके साथ कुछ दिन रहे, फिर वे उसे धर्म का सार बताएंगे। युवक उनके आश्रम में रहने लगा। वह संत की हर बात मानता और उनकी सेवा करता। इसी तरह कई दिन बीत गए। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि संत उसे धर्म के बारे में कब बताएंगे। वह उनसे धर्म की चर्चा करने के लिए उत्सुक था। वह चाहता था कि उनसे शिक्षा प्राप्त कर घर लौट जाए, संत कुछ खास कह ही नहीं रहे थे। युवक का धैर्य जवाब दे रहा था। एक दिन उसने पूछ ही दिया, ‘मुझे आए इतने दिन हो गए, पर अब तक आपने मुझे धर्म का सार नहीं बताया। आखिर मैं कब तक प्रतीक्षा करूं?’ संत ने हंसकर कहा, ‘कैसी बात कर रहे हो? तुम जिस दिन से मेरे साथ रह रहे हो, उस दिन से मैं तुम्हें धर्म का सार बता रहा हूं। पर तुम ध्यान ही नहीं दे रहे। युवक ने चौंककर कहा, ‘वो कैसे?’ संत बोले, ‘जब तुम मेरे लिए पानी लाते हो, मैं उसे सदैव प्रेम से स्वीकार करता हूं। तुम्हारे प्रति आभार भी प्रकट करता हूं। जब-जब तुमने मुझे आदरपूर्वक प्रणाम किया, मैंने तुम्हारे साथ नम्रता का व्यवहार किया। यही तो धर्म है, जो हमारे दैनंदिन व्यवहार में झलकता है। धर्म कोई पुस्तकीय ज्ञान नहीं है। तुम मेरे और कार्यों पर गौर करो। मैं लोगों से कैसे मिलता हूं और किस तरह उनकी सहायता करता हूं। इससे अलग कुछ भी धर्म नहीं है।’ प्रस्तुति : मुकेश ऋषि

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