एकदा
डाकुओं की सहृदयता को दर्शाने वाली कई घटनाएं रक्षाबंधन के त्योहार से जुड़ी हैं। इस संदर्भ में जोधपुर रियासत को हिलाकर रख देने वाले डाकू मंगलदास का वाकया द्रवित करने वाला है। बात उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध की है। श्रावण पूर्णिमा की सुबह थी। जोधपुर के निकट बसी एक ढाणी के किसान रोजमर्रा की तरह अपने ढोर-डंगरों को हांककर खेतों में ले जा रहे थे। उन्हीं में एक विधवा औरत शामिल थी, जो अपनी अकेली छोटी बालिका का हाथ थामे घास-फूस लेने निकली थी। बच्ची रो-रोकर जिद कर रही थी कि मैं भी अपने भाई को राखी बांधूंगी। मां ने कहा, ‘बेटी, राम ने तेरा भाई नहीं दिया। तेरे पैदा होते ही प्रभु ने तेरे बाप को उठा लिया। तू ही बता मेरी बच्ची, तुझे भाई कहां से लाऊं?’ संयोगवश, उसी समय डाकू मंगलदास के गिरोह का वहां से गुजरना हुआ। मंगलदास बच्ची की बात सुनकर स्वयं को रोक न सके। वे सांडणी से कूदकर बच्ची के पास आए व उसका सिर पुचकार कर बोले, ‘बहन! ये रहा तुम्हारा भाई, लो राखी बांधो।’ बच्ची ने अपनी लुगड़ी को फाड़कर मंगलदास के पौंहचे पर खुशी-खुशी राखी बांध दी। मंगलदास का सीना फूल उठा। उसने बालिका को खुले दिल से अभयदान दिया और उसके साथ ताउम्र भाई का नाता निभाया। प्रस्तुति : राजकिशन नैन