एकदा
एक गुरुकुल में नये शिष्य का आगमन हुआ। पुराने शिष्य ने पहले ही बता दिया था कि गुरुजी अनुशासनप्रिय तथा समय के पाबंद हैं। नया शिष्य पहले दिन से ही हर कार्य को शालीनता तथा समर्पण के साथ करने लगा। गुरुजी ने उसकी दो-तीन बार खुलकर सराहना भी कर दी। यह कौन-सा तारीफ के काबिल काम था। गुरु का प्रशंसा करना पुराने शिष्य को जरा-सा अखर गया। यह बात गुरु ने भी भली-भांति ताड़ ली थी। शाम के समय सत्र चल रहा था तब गुरु ने सवाल पूछा, ‘गीली माटी पर हौले-हौले से संभल कर चलते हैं जबकि हरी घास के मैदान पर बेफिक्र होकर दौड़ लगाते हैं, क्यों?’ पुराने शिष्य ने कहा, ‘गुरुजी हरी घास का मैदान जाना-पहचाना होता है। उस पर चलते हुए अगर लुढ़क भी गये तो कुछ खास नहीं होगा। गीली माटी के साथ बेहद सावधान रहना होता है।’ ‘वत्स, तब तो आप आज दिनभर की मेरी हर प्रशंसा का कारण भी समझ गये होंगे।’ गुरुजी ने मुस्कुराते हुए कहा। ‘जी, एकदम समझ गया गुरुदेव।’ पुराना शिष्य अब सहज था। प्रस्तुति : पूनम पांडे