For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

एकदा

07:58 AM Jan 29, 2024 IST
एकदा

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का प्रतिदिन समाचार सुनने का स्वभाव था। एक ट्रांजिस्टर सदा उनके पास रहता था। एक बार वे रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे। समाचार प्रसारित होने का समय था। दीनदयालजी ने सहयात्री से ट्रांजिस्टर चालू करने का निवेदन किया। सहयात्री बोला, ‘ट्रांजिस्टर आपके पास भी तो है। आप अपना चालू कर दीजिए ना मुझे क्यों कह रहे हैं?’ दीनदयालजी ने उस समय तो कोई उत्तर- नहीं दिया। पुनः आग्रह किया की ट्रांजिस्टर चला दें। समाचार समाप्त होने घर पंडितजी ने उन सज्जन को धन्यवाद किया। सहयात्री को यह जानने की जिज्ञासा बनी रही कि पंडितजी ने अपने ट्रांजिस्टर का उपयोग क्यों नहीं किया। तब दीनदयालजी ने बताया, ‘मेरे ट्रांजिस्टर के लाइसेंस की अवधि कल पूरी हो गई है। उसका नवीनीकरण होने तक मैं अपना ट्रांजिस्टर चालू नहीं कर सकता। अतः आपको कष्ट दिया है, क्षमा करें।’ सहयात्री दीनदयालजी के नियम-पालन व्रत से प्रभावित हुआ और सदा के लिए उनका श्रद्धालु बन गया। प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी

Advertisement

Advertisement
Advertisement