एकदा
सनzwj;् 1940 का समय था जब सारा भारत ही स्वराज आंदोलन में कूद गया था। युवक-युवतियां भी किसी न किसी रूप में अपना योगदान दे रहे थे। एक युवक ने आंदोलनकारियों को भोजन कराने वाले दल में रसोई का काम कुछ समय से संभाल रखा था। उसने आचार्य विनोबा भावे के ओजपूर्ण भाषण सुने थे। विनोबा जी हर जिज्ञासु के प्रश्नों का जवाब भी शांतिपूर्वक ही दिया करते थे। उस युवक ने भी हिम्मत करके विनोबा से कहा कि आचार्य जी, मैं अपने जीवन से खुश नही हूं क्योंकि आन्दोलन करते हुए लाठी, बम, गोली खाने वाले तो अमर हो जायेंगे और मैं निरर्थक। यह सुनकर विनोबा ने उसे कहा कि एक राज्य में लंबी-चौड़ी सेना होती है और हर सिपाही का योगदान होता है तभी वो अजेय सेना कहलाती है। तुम रोटी-साग बनाकर हर किसी की सांस में शामिल हो। तुम्हारा योगदान कागज में नहीं, उन सब भोजन करने वालों के दिल में अंकित रहेगा। प्रस्तुति : पूनम पांडे