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जिनके स्टेप्स पर थिरके बड़े स्टार

06:34 AM Sep 23, 2023 IST
फिल्म ‘दास्तान’ में पद्मा खन्ना के साथ।

एम.डी. सोनी

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कितने कलाकार हैं, जिनको अपनी पहली परफॉर्मेंस देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के सम्मुख देने का सुअवसर मिला हो... कितने फ़नकार हैं, जिनको तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का सान्निध्य मिला हो... और कितने कलावंत हैं, जिनको लालबहादुर शास्त्री से आशीर्वाद प्राप्त हुआ हो? जयपुर में बसे वरिष्ठ डांसर, सिने कोरियोग्राफर और नृत्य गुरु प्रवीण कुमार को ये तीनों गौरव तथा उपलब्धियां हासिल हैं। शंकर कुमार राजस्थान के उदयपुर संभाग में कांकरोली के निकट स्थित गांव मोही में 21 जनवरी 1939 को जन्मे थे। मन पढ़ाई-लिखाई से ज़्यादा लय-ताल में रमता था। कम आयु में भारतीय लोक कला मंडल उदयपुर का रुख किया। लोक कला मर्मज्ञ देवीलाल सामर की छत्रछाया में शंकर ने अपनी प्रतिभा को संवारा। राजस्थानी लोकनृत्यों का गहन प्रशिक्षण लिया।

ऐसे हुआ शंकर-पार्वती मिलन

लोक कला मंडल में ही ‘शंकर-पार्वती’ का मिलन हुआ! डांस पार्टनर पार्वती सुब्रह्मण्यम पिल्लई उनकी लाइफ पार्टनर बन गईं। पत्नी से भरतनाट्यम् और एबोटन सिंह से उन्होंने मणिपुरी नृत्य शैली को आत्मसात् किया। जयंती घोष से ओडिसी, राघवन नायर से कथकली और नटराज रामकृष्णमूर्ति से उन्होंने कुचिपुड़ी डांस की ट्रेनिंग ली, वहीं पं. सुंदरप्रसाद गंगानी और दुर्गाप्रसाद से कथक की बारीकियां सीखीं। लोकनृत्य मर्मज्ञों से गुजराती, मराठी, पंजाबी, भोजपुरी लोकनृत्यों की तालीम भी ली। फिर, शंकर कुमार ने भगवानदास वर्मा से बैले के गुर सीखे। भारतीय कला केंद्र दिल्ली में पं. बिरजू महाराज का सान्निध्य मिला। शंकर कुमार 1966 में दिल्ली से मुंबई पहुंचकर ग्रुप ‘कला भवन’ से जुड़ गए, जहां कई बैले में उन्होंने टैलेंट दिखाया। उसी साल, नृत्यनाटिका ‘कृष्णलीला’ में शंकर कुमार की परफॉर्मेंस देखकर आशा पारेख ने उन्हें अपने बैले ‘रामायण’ में राम के लीड रोल के लिए सिलेक्ट किया। आशाजी के ही साथ नृत्यनाटिका ‘अनारकली’ में वे सलीम बने। इधर, ‘नीलकमल’(1968) में कोरियोग्राफर बी. हीरालाल के साथ काम करके पहली बार फिल्मी अनुभव लिया।

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शंकर कुमार बन गए प्रवीण कुमार

दिग्गज फिल्मकार वी. शांताराम ने जब नृत्यप्रधान अपनी दूसरी फिल्म ‘जल बिन मछली, नृत्य बिन बिजली’ की योजना बनाई, तो मयूर नृत्य के महत्वपूर्ण सीक्वेंस के लिए इंडस्ट्री के कई कोरियोग्राफर्स को ट्राई किया। शंकर कुमार भी अपना फ़न दिखाने पहुंचे तो उनकी भाव-भंगिमाएं देखकर अन्ना मुग्ध हो गए। कहा, ‘तुम नृत्य प्रतिभा और हर शैली में प्रवीण हो, तुम्हारा नाम प्रवीण कुमार होना चाहिए।’ इस तरह, शंकर कुमार प्रवीण कुमार बन गए! शांताराम ने न सिर्फ़ ‘जल बिन मछली...’ के नौ गीतों का नृत्य निर्देशन, बल्कि सहनायक का रोल भी उन्हें सौंप दिया। साल 1971 में प्रदर्शित इस फिल्म में नायिका संध्या, नायक अभिजीत और उन पर फिल्माए- ‘कजरा लगाके बिंदिया सजाके..., मन की प्यास मेरे मन से ना निकले, ऐसे तड़पूं कि जैसे जल बिन मछली..., ओ मितवा ओ मितवा..., तारों में सजके अपने सूरज से...’ जैसे गीतों ने दर्शकों का मन मोह लिया। इसके बाद प्रवीण कुमार ने ‘मेरे भैया, रास्ते का पत्थर, अग्नि रेखा, हनीमून, जोशीला, जुगनू, पिंजरा, बेनाम, हवस, कोरा कागज़ जैसी 50 से ज़्यादा हिंदी फिल्मों का नृत्य निर्देशन करके अपना मुकाम बनाया। फिल्म इंडस्ट्री में ‘मास्टरजी’ के रूप में सम्मान पाया। उस दौर के हर बड़े हीरो और हीरोइनों को उन्होंने अपने स्टेप्स पर नचाया। सरोज ख़ान तो चार फिल्मों में उनकी सहायक रहीं।
अस्सी के दशक में हिंदी के साथ-साथ वे प्रादेशिक सिनेमा में व्यस्त हो गए। करीब 50 गुजराती, 20 मराठी, 15 राजस्थानी फिल्मों के साथ भोजपुरी, ब्रजभाषा, पंजाबी, बंगाली, ओड़िया और तेलुगू फिल्मों में भी उन्होंने अपने नृत्य कौशल दिखाया। विद्या सिन्हा निर्मित मराठी चित्रपट ‘बिजली’(1986) के लिए प्रवीण कुमार को महाराष्ट्र सरकार की ओर से बेस्ट कोरियोग्राफर अवॉर्ड दिया गया था। भारतीय लोक कला मंडल उदयपुर की 25वीं वर्षगांठ पर उन्हें जयंती सम्मान से विभूषित किया गया।

पंजाबी में जयश्री टी. के साथ भांगड़ा

हिंदी, गुजराती, मराठी, पंजाबी की कुछ फिल्मों में प्रवीण कुमार बतौर डांसर भी नज़र आए। ‘विष्णु पुराण’(1973) में उन्होंने भगवान विष्णु का टाइटल रोल किया था। हिंदी-पंजाबी द्विभाषी फिल्म ‘किसान और भगवान’ में वे शिव बने, वहीं गुजराती फिल्म ‘साचुं सुख सासरिये मा’ में कृष्ण के रूप में नज़र आए। पंजाबी फिल्म ‘गोरख धंधा’ (1979) में भांगड़ा ‘हुसन गज़ब दा वेखेया...’ जयश्री टी. के साथ प्रवीण कुमार पर फिल्माया गया था। बैले के प्रति प्रवीण कुमार का जुनून ऐसा रहा कि बड़े बजट तथा सेटअप के स्टेज प्ले ‘रामायण’ के लिए गीत-संगीत रिकॉर्ड करके तमाम जमा पूंजी लगा दी लेकिन यह बैले फ्लॉप हो गया।

‘गीत गोविंद’ का निर्देशन

‘राजस्थान पत्रिका’ के संस्थापक संपादक कर्पूरचंद कुलिश, पत्रिका टीवी के नृत्यप्रधान धारावाहिक ‘गीत गोविंद’ के लिए निर्देशक की तलाश में मुंबई पहुंचे। कुलिश ने प्रवीण कुमार को कोरियोग्राफी के साथ निर्देशन, कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग और अभिनय की ज़िम्मेदारी भी सौंप दी। उन्होंने इसके 16 एपिसोड्स बनाए। दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर 1995 में इसका प्रसारण हुआ। जयपुर में ही हरे कृष्ण कला केंद्र की स्थापना करके प्रवीण कुमार बच्चों में डांसिंग टैलेंट को तलाशते, तराशते रहे। वहीं नृत्यनाटिकाएं मंचित कर जयपुर में अपना अलग मुकाम बनाया। अब लगभग दस साल से नृत्य गुरु का समय भक्ति और नृत्य साधना में बीतता है। प्रवीण कुमार को राजस्थान संगीत नाटक अकादमी की ओर से आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में इसी साल मार्च में जोधपुर में आयोजित समारोह में कला पुरोधा सम्मान प्रदान किया गया है।

कोरियोग्राफी से सजे फिल्मी गीत

फिल्मी गीतों में कोरियोग्राफी की शुरुआत साल 1971 में फिल्म जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली -गीत कजरा लगा के... व तारों में सज के... से हुई। सिलसिला हनीमून (1973) - दो दिल मिले..., जुगनू (1973) - जाने क्या पिलाया तूने..,हवस (1974) - तेरी गलियों में ना रखेंगे कदम..., कोरा काग़ज़ (1974) - मेरा पढ़ने में नहीं लागे मन...,कितने पास कितने दूर (1976) -मेरे महबूब... के लिए भी चला।

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