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एक तरफ उसका घर, एक तरफ मयकदा

07:47 AM Feb 27, 2024 IST
एक तरफ उसका घर  एक तरफ मयकदा
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हेमंत पाल

फ़िल्मी दुनिया से आजकल दिल दुखाने वाली ख़बरें कुछ ज्यादा ही आ रही हैं। ऐसी ही एक खबर ने लोगों को चौंका दिया। ये थी ‘चिट्ठी आई है’ जैसी लोकप्रिय ग़ज़ल के गायक पंकज उधास का निधन। जिन चंद गायकों ने फ़िल्मी ग़ज़लों को जन-प्रसिद्धि दिलाई, उनमें जगजीत सिंह के अलावा पंकज उधास ही थे। जब ये खबर सामने आई तो लोगों के सामने उनका वो चेहरा घूम गया, जो उन्होंने ‘नाम’ फिल्म में परदे पर देखा था। क्योंकि, ‘चिट्ठी आई है’ उन पर ही फिल्माया गया था, जिसने रातों-रात उन्हें चर्चित कर दिया। कहा जाता है कि जब ये ग़ज़ल रिकॉर्ड की जा रही थी, उस समय भी सबकी आंखों में आंसू थे। क्योंकि, ग़ज़ल के लिए जिस मखमली आवाज़ की जरूरत होती है वो पंकज उधास के पास थी। शुरू में पंकज का मकसद गायन में कैरियर बनाना नहीं था। ये 1962 की बात है, जब भारत-चीन युद्ध चल रहा था। उस समय पंकज उधास ने अपनी पहली स्टेज परफॉर्मेंस दी। उन्होंने गाया ‘ऐ मेरे वतन के लोगो।’ उनके गीत से लोगों की आंखें नम हो गईं। दर्शकों में से एक आदमी ने इनाम में उन्हें 51 रुपये दिए।
पंकज को संगीत विरासत में मिला था। गुजरात के जैतपुर में जन्मे पंकज का परिवार राजकोट के पास चरखाड़ी कस्बे का रहने वाला था। दादा जमींदार और भावनगर के दीवान थे। पिता केशुभाई सरकारी कर्मचारी थे। पिता को इसराज नाम का एक वाद्य यंत्र बजाने में महारत थी और मां जीतूबेन को गाने का शौक था। इसके चलते पंकज उधास और उनके दोनों भाइयों में संगीत का बीज पल्लवित हुआ। उनके दोनों भाई मनहर उधास और निर्जल उधास संगीत की दुनिया में जाना-पहचाना नाम थे। स्कूल में पंकज के अच्छे गायन के बाद उनके परिवार को लगा कि पंकज भी संगीत में कुछ बेहतर कर सकते हैं। उनका एडमिशन राजकोट की संगीत एकेडमी में करा दिया गया। उन्हें भी मंच पर गाने के मौके मिलने लगे। लेकिन, पंकज का सपना तो फ़िल्मी दुनिया में अपनी जगह बनाना था। इसके लिए उन्होंने चार साल तक संघर्ष किया। पर, कोई ऐसा काम नहीं मिला जिससे उनकी पहचान बन सके। एक फिल्म ‘कामना’ जरूर मिली, जिसका एक गाना गाया भी, पर न तो फिल्म चली, न उनका गाया गाना। पहले ही मौके ने उन्हें इतना निराश किया कि उन्होंने देश छोड़कर विदेश में बसने का फैसला कर लिया, पर उनको प्रसिद्धि मिली थोड़ी देर से।
उनका यूं दुनिया से चले जाना, हर किसी के लिए किसी सदमे से कम नहीं है। गीतकार मनोज मुंतशिर ने अपना शोक व्यक्त करते हुए कहा कि आपके तीन कैसेट्स ने मुझे पहली बार ये बताया था कि ग़ज़ल क्या होती है। मेरे जैसे हज़ारों को कविता और शायरी की तमीज सिखाने वाले पंकज उधास जी, इतनी जल्दी आपका जाना बनता नहीं था! अभी तो बहुत कुछ सीखना था आपसे! जाने-माने गायक अदनान सामी ने दुख जताते हुए लिखा ‘आज मेरे पास शब्द नहीं हैं। मैं बस इतना कह सकता हूं कि अलविदा प्रिय पंकज जी ...मेरी बचपन की यादों का हिस्सा बनने के लिए आपने जो संगीत दिया उसके लिए धन्यवाद। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे। ...उनका म्यूजिक हमेशा जिंदा रहेगा। ये किस्सा भी मशहूर है कि राजेंद्र कुमार ने एक दिन राज कपूर को डिनर पर बुलाया। डिनर के बाद उन्होंने पंकज उधास की गाई ‘चिट्ठी आई है’ ग़ज़ल राज कपूर को सुनाई, तो वे रो पड़े। उन्होंने कहा कि इस ग़ज़ल को पंकज से बेहतर कोई दूसरा नहीं गा सकता।
पंकज उधास ने बहुत-सी ग़ज़लों को अपनी आवाज दी, लेकिन उनकी कुछ ग़ज़लें ऐसी हैं जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। फिल्म ‘नाम’ की ‘चिट्ठी आई है’ वो ग़ज़ल है, जिसने हर उस दिल को झनझना दिया था जो अपने घर से दूर थे। अपने घर से दूर होने का दर्द इस ग़ज़ल में जिस तरह छलकता है, उसका कोई सानी नहीं। ‘चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल’ भी उनकी सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली ग़ज़लों में शामिल है। ये ग़ज़ल अपनी प्रेयसी की तारीफ का चरम है। इसके खूबसूरत अल्फाज़ अपनी जगह, पर पंकज उधास ने जिस तरह डूबकर ‘चांदी जैसा रंग’ गाया है वो कभी भूला नहीं। ‘जिएं तो जिएं कैसे बिन आपके’ एक सवाल है जिसका जवाब भी इसी ग़ज़ल में मिलता है। उनकी एक और ग़ज़ल है ‘ए गमे जिंदगी कुछ तो दे मशवरा एक तरफ उसका घर एक तरफ मयकदा’ ऐसा सवाल है जिसके घर के एक तरफ घर है और दूसरी तरफ मयकदा। ‘...और आहिस्ता कीजिए बातें’ ग़ज़ल में मोहब्बत टपकती-सी लगती है। इसमें कहा है दो दिल मिले और गुफ्तगू का सिलसिला छिड़ा हो, तो बातें आहिस्ता करना जरूरी है। ऐसा क्यों इसका जवाब पंकज उधास की आवाज से सजी ग़ज़ल देती है।
पंकज उधास ने समाज की धारा से अलग बहकर फरीदा से शादी की थी। फरीदा एयर होस्टेस थीं। एक शादी में दोनों की मुलाकात हुई थी। पंकज को पहली नज़र में ही फरीदा पसंद आ गई। पहले दोस्ती हुई, फिर प्यार। लेकिन, फरीदा के परिवार को भी रिश्ता मंजूर नहीं था। वे दूसरे धर्म में लड़की की शादी नहीं कराना चाहते थे। पंकज उनके घर गए और खुद ही उनके पिता से अपने रिश्ते की बात की। उधास ने अपनी बातों से उनका दिल जीत लिया तो वे दोनों की शादी के लिए मान गए। उनकी आवाज में हर दिल को जीतने का अंदाज था। इसीलिए उनकी आवाज़ ने संगीत की हर शमा को रोशन किया। कहा जाता है कि जो आवाज हर टूटे दिल और तन्हा दिल को सुकून दे, वही ग़ज़ल है। लेकिन, दिल को छू लेने वाली वह रूहानी आवाज हमेशा के लिए रुखसत हो गई। पंकज उधास अब इस नश्वर दुनिया को छोड़कर चले गए। किंतु, जब भी शायरी, ग़ज़लों की महफिल सजेगी उनकी आवाज़ की कमी को हमेशा महसूस किया जाएगा।

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