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अब सावन में पानी टिप-टिप ना बरसता

06:51 AM Aug 24, 2024 IST

सहीराम

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सावन चला गया है जी। उसके जाने का तो नहीं अलबत्ता आने का पता कांवडि़ए जरूर दे देते हैं। अब यह कालिदास का जमाना तो है नहीं न साहब कि आषाढ्यस्य प्रथम दिवसे की तरह से पता चल जाए। सो सावन के आने का पता कांवड़ियों को देना पड़ता है और उनका पता फिर टीवी चैनल से लेकर सोशल मीडिया तक सब देने लगते हैं। खैर जी, मोर पपीहे की आवाजों से ही अगर सावन के महीने को मस्ती का महीना माना जाए तो बड़ा मुश्किल हो जाएगा क्योंकि मोर पपीहे अब आवाज देने के लिए हैं ही कहां। फिर एक जमाना था जब सावन की झड़ी लगती थी। लेकिन अब तो बादल फटते हैं। अब सावन में पानी टिप-टिप नहीं बरसता। बल्कि जो बरसता है उसे मूसलाधार कहना भी मुश्किल है।
किसी जमाने में अनाप-शनाप पैसा मिलने को लेकर कहा जाता था कि ऊपर वाले ने छप्पर फाड़कर दिया है। कुछ उसी तरह से अब सावन में ऊपर वाला आसमान फाड़ टाइप से बरसता है। फिर छप्पर-वप्पर तो दूर, बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें तो दूर, पहाड़ तक फट जाते हैं। पहले सावन में बहनें भाइयों का इंतजार करती थी-अब की बरस भेज भैया को टाइप से। अब भाई डरे रहते हैं कि बहन कहीं जमीन में हिस्सा बंटवाने तो नहीं आ रही है। मायके की तड़प अब कहां।
खैर जी, सावन अब पहले वाला सावन नहीं है। सावन अब झड़ी वाला सावन नहीं है। सावन अब या तो भयानक उमस से भरा सावन होता है। कई बार लगता है कि यह भादो का चिपचिपा पसीना सावन में ही क्यों आ लिया। जबकि कई बार आषाढ़ भी भादो तक नहीं आता। यह तो अच्छा हुआ जी कि कांवड़ियों की संख्या इतनी बढ़ गयी, वरना तो जी, सावन के गायब होने का ही खतरा पैदा हो सकता था। वैसे ही जैसे बादल फटने से पहाड़ गायब हो जाते हैं, गांव के गांव गायब हो जाते हैं। यहां तक कि शहरों की नालियों में ही लोग गायब हो जाते हैं और बेसमेंट में डूबकर मरने लगते हैं।
सावन में अब मस्ती नहीं, डर होता है। लेकिन सबसे ज्यादा तो बादल फटने का और भूस्खलन को होने लगता है। बाढ़ तो खैर जी, पहले भी आती थी। लेकिन ऐसी प्रलय जैसी कहां आती थी। अब तो जैसे पुलिस के बंदोबस्त के बिना सावन नहीं गुजरता, वैसे ही एनडीआरएफ के इंतजाम के बिना सावन नहीं गुजरता। सावन अब प्रकृति का वरदान नहीं है, खौफ बन गया है। सावन अब मस्ती का सबब नहीं रह गया है, पीड़ा का सबब बन गया है। अच्छी बात यही है कि इसे जो भी बनाया है हमीं ने बनाया है। पहले हमने प्रकृति को हराने का घमंड पाला, अब प्रकृति हमारा घमंड तोड़ रही है, उसे चूर-चूर कर रही है।

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