अब एक्शन के अवतार में शाहरुख
हेमंत पाल
फिल्मों की एक सबसे बड़ी खामी यह होती है, कि यहां कलाकारों के लिए परदे पर अपनी पहचान बदलना मुश्किल होता है। दर्शक जिस कलाकार को एक बार जिस भूमिका में पसंद करने लगते हैं, वे उसे अलग किरदार में देखना नहीं चाहते। प्राण, विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे विलेन को अपनी नई पहचान बनाने में बरसों लग गए। लेकिन, ऐसा कोई हीरो नजर नहीं आता, जिसने अपनी पूरी इमेज ही बदल दी हो! बरसों तक जिसे रोमांस का किंग कहा जाता हो, वो अचानक एक्शन अवतार में परदे पर उतर आया! ये है शाहरुख़ खान, जिन्होंने अपने कैरियर में ज्यादातर फिल्मों में हीरोइन के साथ रोमांस किया, पर बढ़ती उम्र में अब वे मारधाड़ करते दिखाई दे रहे हैं। पहले ‘पठान’ और अब ‘जवान’ ने शाहरुख़ को उस मोड़ पर ला खड़ा किया, जहां से उनकी रोमांटिक इमेज की दुनिया का रास्ता बदल गया। ‘जवान’ से पहले आई ‘पठान’ की सफलता के साथ कई फैक्टर जुड़े थे। यह जुमला भी कि यदि शाहरुख़ इसमें फेल हुए तो उनके लिए अगली फिल्म के दरवाजे बंद हो जाएंगे। लेकिन, ‘पठान’ की आसमान फाड़ सफलता ने ऐसा नहीं होने दिया। इसके बाद अब आई ‘जवान’ ने पिछली फिल्म की सफलता को आगे बढ़ाया है। जबकि, कथानक के स्तर पर दोनों ही फिल्मों की कहानियां बेहद कमजोर कही जा सकती हैं। ये भी कहा जा सकता है कि ये दोनों फ़िल्में और खासकर ‘जवान’ शाहरुख की स्टार पॉवर की वजह से ही चली।
फिल्म के ‘जवान’ नाम से भ्रम होता है, कि ये सेना से जुड़ी कहानी वाली कोई फिल्म होगी। लेकिन, यह फिल्म सेना से लगाकर किसान और राजनीति तक की भटकी-सी कहानी नजर आती है। फिल्म का कथानक और संवाद दर्शकों की तालियों को ध्यान में रखकर ही लिखे गए हैं। दरअसल, इस फिल्म में सामाजिक मुद्दों पर चोट करने का कोई मौका नहीं छोड़ा गया। फिल्म इतने फार्मूलों की भेल बना दी कि ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ भी नीबू की तरह निचोड़ दिया गया। फिल्म का एक संवाद है ‘बेटे को हाथ लगाने से पहले बाप से बात कर!’ इसे शाहरुख़ के बेटे के कथित ड्रग मामले से जोड़कर देखा गया। ये फिल्म एक फुल एंटरटेनिंग फिल्म है। फिल्म में रोमांस, मारा-मारी और देखने वालों को जोड़ने वाले डायलॉग से ‘पठान’ के बाद शाहरुख की जो अलग सी पहचान बनी है, वो कहीं न कहीं दर्शकों के दिल में उतर गई।
पहले मोहब्बत का अंदाज, अब फुल एक्शन
किसी ने सोचा नहीं होगा कि ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ जैसी फिल्म में मोहब्बत का नया अंदाज दिखाने वाला नायक एक दिन हाथ में बंदूक लेकर फुल एक्शन में दिखाई देगा। मोहब्बत करने वालों को नई सोच देने वाला ये नायक जिसने मोहब्बत के दुश्मनों को भी यह कहने पर मजबूर कर दिया था ‘...जा सिमरन जा, जी ले अपनी जिंदगी!’ उसके बरसों बाद समय बदला, माहौल बदला और जिस नायक की रोमांटिक पहचान थी, उसके कैरियर में भी उतार-चढ़ाव आए। लेकिन, अब उसका नया अवतार सामने आ गया। शाहरुख 2018 में आखिरी बार ‘जीरो’ में नजर आए थे। यह फिल्म दर्शकों की उम्मीद पर खरी नहीं उतरी लेकिन इसके बाद चार साल बाद जब ‘पठान’ रिलीज हुई, तब माहौल में नेगेटिविटी थी। बायकॉट तक की चर्चा चली, पर उसने इतिहास रच दिया। फिर ‘जवान’ ने उसी कहानी को आगे बढ़ाया।
रंग लाई कोशिश
‘दीवाना’ से अपना कैरियर शुरू करने वाले इस रोमांटिक नायक के दिल कहीं न कहीं एक्शन हीरो बनने की चाहत दबी थी जो ‘पठान’ से पूरी हुई। अब ‘जवान’ ने उसी नायक को स्थापित कर दिया। बाजीगर, राजू बन गया जेंटलमैन, डर, कभी हां कभी ना और ‘अंजाम’ वे फ़िल्में थी जिनसे शाहरुख़ को रोमांस के हीरो की पहचान मिली। ऐसा भी समय था जब उन्हें सिर्फ रोमांटिक किरदारों के लायक ही समझा जाता रहा। शाहरुख खान अपनी चॉकलेटी इमेज को तोड़ने की कोशिश में लगे थे। लेकिन, किसी ने भी उन्हें एक्शन, थ्रिलर फिल्मों के लिए साइन करने की हिम्मत नहीं की। शाहरुख़ खुद स्वीकारते हैं कि मैं चाहता था, पर कोई मुझे ऐसी फिल्मों में ले नहीं रहा था। पर, मैंने सोच लिया था कि कुछ सालों में मुझे एक्शन फिल्में ही करनी हैं। वे तो ‘मिशन इम्पॉसिबल’ जैसी ओवर-द-टॉप फिल्में भी करना चाहते हैं।
पहले ‘पठान’ और अब ‘जवान’ से शाहरुख खान के नाम का नगाड़ा बज रहा है। ‘जवान’ ने अपनी ओपनिंग वाले दिन से ही बंपर कमाई की। जबकि, चार-पांच साल पहले शाहरुख एक हिट फिल्म को तरस रहे थे। साल 2016 में आई ‘फैन’ व 2018 में आई ‘जीरो’ को दर्शकों ने नकार दिया था। प्रतिक्रिया आई थी कि अब रोमांस का ये किंग बूढ़ा हो गया। इसके बाद चार साल बाद शाहरुख ने अपना चोला बदल लिया और अंदर से जो नया शाहरुख निकला उसकी आंखों से खून टपक रहा है। इन दो फिल्मों को शाहरुख खान के कैरियर के सहारे के रूप में भी समझा जा सकता है। इमेज के मामले में भी और कमाई के नजरिये से भी। शाहरुख खान और विजय सेतुपति की इस फिल्म ने अभी तक 600 करोड़ कमाई कर ली।
सिनेमाघरों में लौटी रौनक
इस साल (2023) में आई पठान, जवान और इस जैसी कुछ फिल्मों को इसलिए भी याद किया जाएगा कि जिन्होंने कोरोनाकाल के बाद सिनेमाघरों में आई मायूसी को काफी हद तक छांट दिया। कोरोना हमले के बाद लंबे अरसे तक दर्शकों ने सिनेमाघरों से मुंह मोड़ लिया था। इसका कारण ओटीटी को भी माना गया, पर असल में दर्शकों का फिल्मों से मोहभंग नहीं हुआ था। वे बीमारी से घबराने के साथ-साथ ऐसी फिल्मों का इंतजार कर रहे थे, जो उन्हें इंटरटेनमेंट दे सके! अब लगता है, वो इंतजार ख़त्म हो गया।