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गाय से दूध के साथ अब इंसुलिन दुहने की तैयारी

10:44 AM Apr 14, 2024 IST
गाय से दूध के साथ अब इंसुलिन दुहने की तैयारी
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मुकुल व्यास
लेखक विज्ञान संबंधी मामलों के विशेषज्ञ हैं।

मुकुल व्यास

आनुवंशिक रूप से परिवर्तित गाय ने अपने दूध में मानव इंसुलिन के लिए आवश्यक प्रोटीन का उत्पादन किया है और वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि मवेशियों के झुंड एक दिन दुनिया की इंसुलिन आपूर्ति समस्याओं को हल कर सकते हैं। हालांकि गायों के जरिये इंसुलिन उत्पादन को व्यावसायिक स्तर पर लाने में अभी वक्त लगेगा। शोधकर्ताओं का मानना है कि गाय-आधारित इंसुलिन वर्तमान इंसुलिन उत्पादन विधियों को मात दे सकती है,जो आनुवंशिक रूप से संशोधित यीस्ट यानी खमीर और बैक्टीरिया पर निर्भर हैं। दुनिया भर में डायबिटीज के लाखों रोगियों के लिए इंसुलिन तक पहुंच एक निरंतर संघर्ष है।

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इंसुलिन फैक्टरी बन सकती हैं ये खास गायें
इंसुलिन की उपलब्धता बढ़ाने के लिए दुनिया के वैज्ञानिक हाई-टेक प्रयोगशालाओं के अलावा दूसरे स्रोतों से भी इंसुलिन प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का ध्यान अब गायों की तरफ गया है। आनुवंशिक रूप से संशोधित गायें इंसुलिन फैक्टरी बन सकती हैं। एक नए अध्ययन के अनुसार, आनुवंशिक फेरबदल के बाद गाय ने मानव इंसुलिन युक्त दूध का उत्पादन किया है। इस उपलब्धि को अंततः बढ़ा कर जीवन-रक्षक दवा की आवश्यकता वाले भी डायबिटीज रोगियों के लिए कम लागत पर पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन किया जा सकता है।
15-20 करोड़ लोगों को चाहिये इंसुलिन खुराक
टाइप 1 डायबिटीज रोगियों को जीवित रहने के लिए इंजेक्शन की आवश्यकता होती है। कुछ टाइप 2 डायबिटीज रोगियों को भी इंसुलिन लेनी पड़ती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया भर में 15 करोड़ से 20 करोड़ लोगों को इंसुलिन की आवश्यकता होती है। उनमें से केवल आधे का ही इंसुलिन के साथ इलाज किया जा रहा है। कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों और कुछ उच्च आय वाले देशों में इंसुलिन तक पहुंच अपर्याप्त है।
दो विश्वविद्यालयों का साझा शोध
इंसुलिन की कमी दूर करने के लिए अमेरिका के इलिनॉय विश्वविद्यालय और ब्राजील के साओ पावलो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने मिलकर गाय-आधारित ‘बायोफैक्टरी’ का निर्माण किया है। शोधकर्ताओं ने नियमित ब्राजीलियाई गायों के गर्भाशय में प्रत्यारोपित दस गाय भ्रूणों की कोशिकाओं में इंसुलिन के प्रारंभिक रूप,प्रोइंसुलिन के लिए मानव डीएनए कोडिंग का एक खंड डाला। प्रत्यारोपण के परिणामस्वरूप एक ट्रांसजेनिक बछड़ी का जन्म हुआ। ‘ट्रांसजेनिक’ शब्द से अभिप्राय एक ऐसे जीव से है जिसमें किसी असंबद्ध जीव से कृत्रिम रूप से लाया गया डीएनए शामिल होता है। ट्रांसजेनिक बछड़ी के दूध में प्रोइंसुलिन का उत्पादन करने की अद्भुत क्षमता है।


प्रक्रिया बेहतर, पैमाना बड़े करने के प्रयास
अध्ययन के मुख्य लेखक मैट वीलर ने कहा कि गाय की स्तन ग्रंथि में प्रोटीन उत्पादन की गजब की काबिलियत है। हम इस प्राकृतिक प्रणाली को कुछ ऐसा बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं जिससे लाखों लोगों को लाभ हो सके। शोधकर्ता अब इस प्रक्रिया को परिष्कृत करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका लक्ष्य ऐसे ट्रांसजेनिक बैल बनाने का है जो इंसुलिन-उत्पादक गुणों को आगे प्रसारित कर सकें ताकि इंसुलिन उत्पादन के लिए गायों का एक समर्पित झुंड तैयार किया जा सके। वीलर ने बताया कि एक गाय,जो प्रति लीटर दूध में केवल एक ग्राम इंसुलिन का उत्पादन करती है,एक चौंका देने वाली मात्रा उत्पन्न कर सकती है। यह मात्रा हजारों इंसुलिन यूनिट्स के बराबर है। एक सामान्य डेयरी फार्म के आकार का गायों का एक छोटा झुंड पूरे देश को आपूर्ति करने के लिए पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन कर सकता है। दूसरे शब्दों में यह मात्रा टाइप 1 डायबिटीज वाले व्यक्ति के लिए लगभग आठ साल तक इंसुलिन की आपूर्ति करने के लिए पर्याप्त है। इस विधि के कई लाभ हैं।
मौजूदा डेयरी इन्फ्रास्ट्रक्चर का होगा फायदा
जटिल मशीनरी और बैक्टीरिया पर निर्भर पारंपरिक तरीकों के विपरीत,गाय-आधारित इंसुलिन उत्पादन मौजूदा डेयरी बुनियादी ढांचे का लाभ उठा सकता है। हालांकि अभी भी कुछ बाधाएं हैं जिन्हें दूर करना बाकी है। इसके लिए एफडीए का अनुमोदन और एक कुशल शुद्धिकरण प्रणाली का निर्माण आवश्यक है। फिर भी उच्च तकनीक सुविधाओं की तुलना में गाय-आधारित इंसुलिन गेम-चेंजर हो
सकती है।
शुरुआती खोज
इंसुलिन और डायबिटीज में इसकी भूमिका पहली बार 1921 में खोजी गई थी। साल 1921 में फ्रेडरिक बैंटिंग नामक कैनेडा के एक युवा सर्जन और उनके सहायक चार्ल्स बेस्ट ने कुत्ते के अग्नाशय से इंसुलिन निकालने का तरीका खोजा। तब उनके इस प्रयोग पर संदेह करने वाले सहकर्मियों को यह नहीं पता था कि इस गंदे से मिश्रण से एक दिन डायबिटीज से पीड़ित लाखों लोगों को जीवन मिलेगा। बैंटिंग और बेस्ट ने इस मिश्रण के साथ गंभीर डायबिटीज से पीड़ित एक और कुत्ते को 70 दिनों तक जीवित रखा। इस सफलता के बाद दोनों शोधकर्ता,अपने सहकर्मियों जे.बी.कोलिप और जॉन मैक्लॉयड की मदद से एक कदम आगे बढ़े। इस बार उन्होंने मवेशियों के अग्नाशय (पैंक्रियास) से इंसुलिन का अधिक परिष्कृत और शुद्ध रूप विकसित किया। जनवरी 1922 में टोरंटो अस्पताल में मरणासन्न 14 वर्षीय लड़का लियोनार्ड थॉम्पसन इंसुलिन का इंजेक्शन पाने वाला पहला व्यक्ति बना। केवल 24 घंटों के भीतर लियोनार्ड का खतरनाक हाई ब्लड शुगर का स्तर लगभग सामान्य स्तर तक गिर गया।
बैक्टीरिया अभी इंसुलिन का प्रमुख स्रोत
कई वर्षों तक डायबिटीज के रोगियों का इलाज मवेशियों और सूअरों के अग्नाशय से प्राप्त इंसुलिन से किया जाता रहा। साल 1978 में आनुवंशिक रूप से इंजीनियर किए गए ई.कोलाई बैक्टीरिया से प्राप्त प्रोटीन का उपयोग करके पहली ‘मानव’ इंसुलिन तैयार की गई जो बैक्टीरिया के बजाय यीस्ट (खमीर) का उपयोग करने वाली समान प्रक्रियाओं के साथ आज तक मेडिकल इंसुलिन का मुख्य स्रोत है। शरीर में इंसुलिन अपने सक्रिय रूप में परिवर्तित होने से पहले, अपने प्रारंभिक प्रोटीन रूप, प्रोइंसुलिन के रूप में जीवन शुरू करती है। आज डायबिटीज रोगियों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला इंजेक्शन मानव इंसुलिन जीन के प्रयोगशाला-निर्मित रूप को बैक्टीरिया के डीएनए में सम्मिलित करके निर्मित किया जाता है। बड़े फर्मेंटेशन टैंकों में रखे गए बैक्टीरिया मानव इंसुलिन का उत्पादन करने के लिए इस जीन का उपयोग करते हैं।

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