अब लोग बेटियों को कहते हैं... तुम्हें रानी जैसा बनना है
नयी दिल्ली, 24 अक्तूबर (एजेंसी)
भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान रानी रामपाल ने बृहस्पतिवार को संन्यास की घोषणा कर दी। रानी के पिता ठेला खींचने का काम करते थे और वह अपने करियर के दौरान हरियाणा के छोटे से कस्बे शाहाबाद से निकलकर लोगों के लिए प्रेरणा बनीं। रानी की अगुआई में भारत ने 2021 में टोक्यो खेलों के दौरान ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए चौथा स्थान हासिल किया। रानी ने कहा, ‘यह एक शानदार यात्रा रही है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं भारत के लिए इतने लंबे समय तक खेलूंगी। मैंने बचपन से बहुत गरीबी देखी है, लेकिन मेरा ध्यान हमेशा कुछ करने पर था, देश का प्रतिनिधित्व करने पर।’ रानी रामपाल ने कहा कि उन्हें सबसे ज्यादा गर्व इस बात का है कि शुरुआत में उनके खेलने का विरोध करने वाले लोग अब अपनी बेटियों को उनके जैसा बनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, ‘अब उसी कस्बे में लौटती हूं तो लोग अपनी बेटियों को कहते हैं कि तुम्हें रानी जैसा बनना है तो लगता है कि मैं अपने मकसद में कामयाब हो गई। मैं हर माता-पिता से कहूंगी कि अपनी बेटियों को उनके सपने पूरे करने का मौका दें, एक दिन आपको उन पर गर्व होगा।’
एक इंटरव्यू में रानी ने कहा, ‘मैं पीछे मुड़कर देखती हूं तो बहुत गर्व होता है, क्योंकि सात साल की उम्र में पहली बार हॉकी थामने वाली हरियाणा के एक छोटे से गांव शाहबाद मारकंडा की लड़की ने कभी सोचा भी नहीं था कि वह देश के लिये 15 साल हॉकी खेलेगी और देश की कप्तान बनेगी।’ उन्होंने कहा, ‘मैं जितने समय भी खेली, दिल से खेली। हॉकी ने बहुत कुछ दिया है मुझे, एक पहचान दी है। आज मिली जुली फीलिंग है।’ उन्होंने कहा, ‘एक रेहड़ी वाले की बेटी ने जब हॉकी स्टिक थामी तो समाज ने काफी विरोध किया लेकिन परिवार ने हर कदम पर उनका साथ दिया और आज उसी समाज के लिये रानी मिसाल बन गई है। 20-25 पहले एक लड़की का हरियाणा के एक रूढिवादी इलाके से निकलकर खेलना मां-बाप को लोग बोलते थे कि लड़की है, इसे खेलने भेजोगे तो आपका नाम खराब करेगी। लेकिन मेरे पापा ने सभी से लड़कर मुझे मेरे सपने पूरे करने का मौका दिया।
महिला हॉकी में आया बड़ा बदलाव
टोक्यो ओलंपिक में चौथे स्थान पर रहने को भारतीय महिला हॉकी के लिये बड़ा बदलाव बताते हुए रानी ने कहा, ‘मैंने अपने करियर में पहली बार देखा कि लोगों ने सुबह छह बजे उठकर अर्जेंटीना के खिलाफ हमारा सेमीफाइनल देखा। यह बहुत बड़ा बदलाव था लोगों की महिला हॉकी को लेकर सोच में। इस प्रदर्शन ने कई लड़कियों को हॉकी स्टिक थामने की प्रेरणा दी। लेकिन अभी भी कई बार रात को सोते समय ख्याल आता है कि टोक्यो में पदक से एक कदम दूर रह गए।’