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अब तो इंग्लिश ही संवारेगी तस्वीर

07:12 AM Sep 10, 2021 IST
अब तो इंग्लिश ही संवारेगी तस्वीर
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ऐसा लगता है कि भारत में हिन्दी को बचाने का एक ही तरीका है…—‘हिन्दी’ को इंग्लिश मीडियम में पढ़ाना शुरू कर दो। ‘इंग्लिश शरणम‍् गच्छामि’ यानी पूरी तरह परायी भाषा के फ्रेम में जड़कर ही भारत में हिन्दी बच पाएगी। चंद रोज बाद आ रहे हिन्दी दिवस पर ‘हिन्दी विद इंग्लिश मीडियम’ का प्रस्ताव नि:संकोच पारित कर दिया जाए। ऐसा होते ही देश में हिन्दी के भविष्य को लेकर उपजी सारी चिंताओं को विराम मिलेगा।

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अंग्रेजी में हिन्दी पढ़ाते हुए बस इतना-सा काम करना है कि पाठ्यक्रम हिन्दी का हो, लेकिन शिक्षक अपना लेक्चर इंग्लिश में दे। हिन्दी साहित्य को अंग्रेजी में पढ़ाया जाए। हिंदी उच्चारण की चीजें रोमन में लिखकर विद्यार्थियों को दी जाए। इससे अंग्रेजी मीडियम के आकर्षण में हिन्दी के कोर्सों की खाली कक्षाएं लबालब भर जाएंगी और अमुक हिन्दी विरोधी… तमुक हिन्दी विरोधी… अमुक हिन्दी प्रेमी… चमुक हिन्दी प्रेमी हो जाएंगे। अंग्रेजी मीडियम में भारत में सब कुछ लोकप्रिय हो जाता है, तो क्या हिन्दी नहीं होगी।

इस फार्मूले में देवनागरी में हिंदी लिखने वाले भले कम हों, रोमन में तो लिखेंगे… हिन्दी के अक्षर गायब होंगे… उसके स्वर तो गूंजेंगे… उसके साहित्य की बात होगी।

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भारत में इंग्लिश ने किस-किस की किस्मत नहीं चमकाई। बड़े बेकार से समझे जाने वाले फील्ड को भी इंग्लिश ने भाग्य लगाए हैं। भारत ही वो देश है जहां सिर्फ खाली-पीली अंग्रेजी बोलकर भी कोई गारंटीशुदा विद्वान बन सकता है। यहां धारदार अंग्रेजी वक्ता को कोई नहीं टोकता कि आपकी विषय वस्तु में क्या खोट था? जो प्रोफेसर यह कहे कि मेरी हिंदी कमजोर है, विद्यार्थी उसे तुरंत विद्वान मान बैठते हैं।

भारत मूलत: इंग्लिश मीडियम देश है। वो देश हैं जहां ‘हिन्दी मीडियम’ और ‘इंग्लिश मीडियम’ जैसी फिल्में बनती हैं। यहां अगर ज्ञान की किसी शाखा ने बचना है वो इंग्लिश के घर में शरण लेकर ही बचेगी। भाषाओं की जननी संस्कृत को भारत में तब बड़ी राहत मिली, जब संस्कृत की गोष्ठियों में इसके साहित्य को अंग्रेजी में समझाया। हिन्दी फिल्मों की स्क्रिप्ट जब तक खूब इंग्लिश में न आई, हिन्दी फिल्मों के सितारे अच्छे से काम नहीं कर पाए। इस तरह जब सबका बेड़ा इंग्लिश ने पार किया, तो क्या स्कूल, कॉलेज में हिन्दी का बेड़ा पार नहीं करेगी।

मैकाले का कहना था—अंग्रेज बचे न बचे, अंग्रेजी बचनी चाहिए। अब बताओ मैकाले अंकल के सपने को जितनी निष्ठा से भारत ने पूरा किया, उतना किस देश ने किया।

हमारी भक्ति के बदले अंग्रेजी ने बहुत उपकार भी भारत पर किए है… बस अब हिन्दी को पूरी तरह अपनी शरण में लेकर हम पर एक बड़ा उपकार कर दे।

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