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अब वैज्ञानिक प्रयासों से रहस्य खोलने का वक्त

06:28 AM Jan 23, 2024 IST
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अभिषेक कुमार सिंह

अयोध्या में राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के आयोजन से पहले आध्यात्मिक यात्रा के अंतिम चरण में प्रधानमंत्री मोदी तमिलनाडु के अरिचल मुनाई पहुंचे। माना जाता है कि अरिचल मुनाई ही वह स्थान है, जहां रामसेतु का निर्माण हुआ था। प्राण-प्रतिष्ठा से पहले रामसेतु तक पहुंचने के संकेत समझें, तो कह सकते हैं कि निकट भविष्य में मोदी सरकार इस विरासत को सहेजने और इसे अपना स्थान दिलाने का प्रयास कर सकती है। लेकिन प्रश्न है कि क्या रामसेतु एक वास्तविकता है। क्या यह प्राकृतिक संरचना है या मनुष्य निर्मित- जैसा कि रामायण के प्रसंग बताते हैं।
तमिलनाडु के पंबन द्वीप को श्रीलंका के मन्नार द्वीप से जोड़ने वाली इस संरचना या राम सेतु का संबंध रामायण से है। हालांकि यह सवाल उठ रहा है कि यह पुल मनुष्य निर्मित है या प्राकृतिक। पांच हजार ईसा पूर्व रामायण काल के समय और रामसेतु के कार्बन विश्लेषण में एक समानता दिखती है। ऐसा दावा किया जाता है कि पंद्रहवीं सदी तक 48 किलोमीटर लंबे इस पुल को पैदल चलकर पार किया जा सकता था। कुछ साक्ष्यों के मुताबिक, वर्ष 1480 तक पुल समुद्र तल से ऊपर था। रामसेतु को लेकर बड़ा विवाद यूपीए सरकार के समय पैदा हुआ, जब सेतुसमुद्रम परियोजना के अंतर्गत इस पुल के चारों ओर ड्रेजिंग यानी खुदाई करने का प्रस्ताव दिया गया था। ताकि यहां से बड़े जहाज निकल सकें। लेकिन विवाद के बाद परियोजना रोक दी। इसके स्थान पर वर्ष 2021 में केंद्र सरकार ने रामसेतु की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए एक अनुसंधान परियोजना को मंजूरी दी थी। इस परियोजना का प्रस्ताव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के तहत पुरातत्व पर केंद्रीय सलाहकार बोर्ड ने दिया था, जिसमें सीएसआईआर-एनआईओ को यह अनुसंधान करना था। परियोजना का एक उद्देश्य यह जानना था कि रामसेतु के रूप में भारत और श्रीलंका के बीच पत्थरों की शृंखला कब और कैसे लगाई गई थी। इस अध्ययन में भूवैज्ञानिक काल और अन्य सहायक पर्यावरणीय आंकड़ों के लिए कई तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है। विशेष रूप से मूंगा वाले कैल्शियम कार्बोनेट के अध्ययन से संरचना निर्माण के काल का पता लगाया जा रहा है।
ऐसी परियोजना का एक राजनीतिक के बजाय धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व कहीं ज्यादा है। ‘रामायण’ के अनुसार वानर सेना ने श्रीराम और उनकी सेना को लंका तक पहुंचाने और माता सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के उद्देश्य से समुद्र पर पुल बनाया था। चूना पत्थरों को जोड़कर 48 किलोमीटर की इस शृंखला को प्राकृतिक संरचना न कहकर रामसेतु कहने के पीछे आशय यह दावा है कि यह मानव निर्मित है। हालांकि वर्ष 2007 में एएसआई ने कहा था कि इसका कोई सबूत नहीं है लेकिन बाद में, इस संस्था ने सर्वोच्च न्यायालय में यह हलफनामा वापस ले लिया था। आज भी पुरातत्वविदों और वैज्ञानिकों के बीच रामायण के काल को लेकर बहस कायम है। रामसेतु और उसके आसपास पानी के नीचे पुरातात्विक अध्ययन करने की उक्त परियोजना का उद्देश्य बहस को निश्चित परिणाम तक पहुंचाना है।
असल में जिस प्रकार एएसआई रामसेतु की वास्तविकता को लेकर भ्रमित रहा है, उसी तरह कई सवाल अन्य लोगों और वैज्ञानिकों की ओर से उठाए जाते रहे हैं। वर्ष 2007 में अमेरिका के एक साइंस टीवी चैनल पर कार्यक्रम प्रसारित किया गया, जिसमें अमेरिकी भूवैज्ञानिकों के हवाले से यह दावा करते दिखाया गया कि भारत के रामेश्वरम के पंबन द्वीप से श्रीलंका के मन्नार द्वीप के बीच समुद्र के भीतर पुल की तरह दिखने वाली यह संरचना मानव निर्मित है। रामसेतु को एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है। धार्मिक प्रसंगों की बात करें तो रामसेतु का जिक्र तुलसीकृत रामचरित मानस और वाल्मीकि रामायण, दोनों में है। हिंदू आस्था सदियों से इस सेतु के अस्तित्व के बारे में और इसे वानर सेना द्वारा निर्मित किए जाने की पक्षधर है। लेकिन एक अन्य मत है कि यह सेतु सिर्फ मिथक है।
दरअसल, इस पुल के सिर्फ मिथक होने की बात अमेरिकी स्पेस एजेंसी द्वारा लिए गए चित्रों से खंडित हो चुकी है। एक दावा यह भी है कि 14 दिसंबर, 1966 को नासा के उपग्रह जेमिनी-11 ने स्पेस से एक चित्र लिया था, जिसमें समुद्र के भीतर इस स्थान पर पुल जैसी संरचना दिख रही है। इस चित्र को लिए जाने के 22 साल बाद 1988 में अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन ने भी रामेश्वरम और श्रीलंका के जाफना द्वीप के बीच समुद्र के अंदर मौजूद इस संरचना का पता लगाया था और चित्र लिया था। भारतीय उपग्रहों से भी लिए गए चित्रों में धनुषकोडि से जाफना तक नजर आती पतली-सी द्वीपों की रेखा से पता चलता है कि वहां एक पुल था। हालांकि इन चित्रों के विश्लेषण के बाद नासा ने कहा था कि ये तस्वीरें मानव निर्मित पुल साबित नहीं करती हैं।
देश में इस तथ्य को साबित करने के कई प्रयास हुए कि यह पुल मानव निर्मित है, लेकिन ज्यादातर को मान्यता नहीं मिली। जैसे, कुछ वर्ष पहले इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च ने घोषणा की थी कि वह समुद्र के भीतर अध्ययन के जरिये रामसेतु के रहस्य को सुलझाएगा। इस संस्था को नवंबर, 2017 में अपने अध्ययन पर रिपोर्ट देनी थी लेकिन बताया गया कि यह काम शुरू ही नहीं हुआ। लेकिन बाद में जिस तरह से एएसआई ने इसका बीड़ा उठाया और हाल में प्रधानमंत्री मोदी ने इस स्थान की यात्रा की, उससे संभव है कि रामसेतु से जुड़े रहस्य उजागर होंगे।

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