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अब नहीं रही भक्ति में फिल्मकारों की आसक्ति

11:00 AM Oct 12, 2024 IST

हेमंत पाल
समय ने अपना असर जीवन के हर पक्ष पर दिखाया है। फिल्मों को जीवन का प्रतिबिंब कहा जाता है, इसलिए वहां भी बदलाव दिखाई दिया। धार्मिक आस्था भी जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है और ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने से आज तक कई फिल्मों में दिखाई दिया। फिल्मों का शुरुआती समय तो पूरी तरह धार्मिक रहा। फ़िल्मी कथानक और गीत भी देवी-देवताओं पर केंद्रित रहे। लेकिन, धीरे-धीरे फिल्मों से भजन और भक्ति गीत कम होते-होते लगभग गायब हो गए। अब यदि कोई धार्मिक गीत फिल्माया भी जाता है, तो श्रद्धा के लिए नहीं बल्कि फिल्म की कहानी में मोड़ लाने के लिए। ‘अग्निपथ’ का गीत ‘देवा श्री गणेशा देवा श्री गणेशा’ को याद कीजिए। ‘बजरंगी भाईजान’ में सलमान का डांस तो भगवान के सामने था, पर गीत ‘सेल्फी तू सेल्फी ले ले रे’ है। जबकि, 1979 में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर की फिल्म ‘सुहाग’ आई जिसमें मां दुर्गा की भक्ति पर गया गया भजन ‘नाम रे सबसे बड़ा तेरा नाम रे’ काफी लोकप्रिय है। आज भी नवरात्रि के दिनों में यह सुनाई देता है। अमिताभ और रेखा पर मंदिर में फिल्माए इस भजन पर दोनों ने गरबा भी किया था। जब भी कोई व्यक्ति या फिल्मों के नायक (या नायिका) परेशानी में होते हैं, उन्हें सबसे पहले भगवान ही याद आते हैं। वह मुसीबत से मुक्ति की गुहार लगाता है। यह स्थिति फिल्मों में आती है, तो वह किरदार भगवान की मूर्ति के सामने धार्मिक गीत या भजन गाता है। ऐसी कई फ़िल्में हैं, जिनमें भजन गाते ही भगवान ने उसकी बात सुन ली!

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मानसिक शांति देने वाले गीत

फिल्मों में ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने यही होता आ रहा है, आज भी कुछ नहीं बदला। कुछ फिल्मों के गीत और भजन इतने लोकप्रिय हैं कि तीज-त्योहार पर यही सुनाई देते हैं। ये गीत मानसिक शांति भी देते हैं। जिन्हें सुनकर कुछ पलों के लिए हम अपने दुःख भूल जाते हैं। सफल धार्मिक फिल्मों के लोकप्रिय गीतों की बात की जाए तो 1975 में आई फिल्म ‘जय संतोषी मां’ कम बजट की फिल्म थी। पर, कमाई के मामले ये आज तक की शीर्ष ब्लॉकबस्टर फिल्मों में गिनी जाती है। इस फिल्म के सभी गीतों को खूब सुना गया। उषा मंगेशकर, महेंद्र कपूर और मन्ना डे ने कवि प्रदीप के लिखे भक्ति गीत गाए थे। करती हूं तुम्हारा व्रत मैं स्वीकार करो मां, यहां वहां मत पूछो कहां कहां, मैं तो आरती उतारूं रे और जय संतोषी मां ऐसे गीत हैं जिन्हें देवी आराधना वाले मंदिरों में अक्सर सुना जाता है। ऐसे कई गायक हैं जिन्होंने कालजयी धार्मिक गाने, भजन और आरतियां गाई।

भजन गायकों, कलाकारों पर भी दर्शकों की श्रद्धा

कुछ भक्ति गीत इसलिए लोकप्रिय हुए, क्योंकि इन्हें गायकों ने पूरी तन्मयता के साथ गाकर दर्शकों को भाव विभोर किया। इनमें सबसे ज्यादा लोकप्रियता मिली अनुराधा पौडवाल, नरेंद्र चंचल और अनूप जलोटा को। फिल्मों में धार्मिक गीत और भजन गाने वाले गायक भी लंबे समय तक तय रहे। वहीं ऐसी फिल्मों में काम करने वाले कलाकारों के प्रति दर्शकों में भक्ति भाव कुछ ज्यादा ही होता है। ‘जय संतोषी मां’ में माता संतोषी का किरदार निभाने वाली अनीता गुहा को लोग पूजने लगे थे। ‘रामायण’ सीरियल में राम और सीता बने अरुण गोविल और दीपिका चिखलिया को आज भी लोग भक्ति भाव से देखते हैं। हिंदी फिल्मों में सबसे ज्यादा भगवान के रोल करने वाले कलाकार महिपाल को तो लोग भगवान ही मानने लगे थे। उन्होंने 35 से ज्यादा फिल्मों में भगवान या ऐसे किरदार निभाए। वे तुलसीदास भी बने और अभिमन्यु भी। महिपाल ने अपने जीवन काल में संपूर्ण रामायण, वीर भीमसेन, वीर हनुमान, हनुमान पाताल विजय, जय संतोषी मां जैसी सफल धार्मिक फिल्मों में काम किया। उन्होंने भगवान राम, कृष्ण, गणेश और विष्णु का किरदार इतनी बार निभाए कि असल जिंदगी में भी लोग इन्हें भगवान का प्रतिरूप समझने लगे थे।

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फिल्मों के कालजयी भक्ति गीत

ऐसे कालजयी भक्ति गीतों में 1965 में आई फिल्म ‘खानदान’ के गीत ‘बड़ी देर भई नंदलाला तेरी राह तके बृजबाला’ को लोकप्रियता की श्रेणी में रखा जा सकता है। इस भजन को सुनील दत्त पर फिल्माया गया था। राजेंद्र कृष्ण के लिखे इस भजन को मोहम्मद रफी ने गाया। जन्माष्टमी के अवसर पर अभी भी ये गीत गूंजता है। उससे पहले 1952 में आई फिल्म ‘बैजू बावरा’ का गीत मोहम्मद रफी की हिंदू भजनों के प्रति लगाव का सबसे बेहतर प्रमाण कहा जा सकता है। ‘ओ दुनिया के रखवाले, सुन दर्द भरे मेरे नाले’ के बोल आज भी किसी दुखी व्यक्ति का चेहरा सामने ले आते हैं। शकील बदायूंनी के लिखे इस गीत में नौशाद ने संगीत दिया था। ख़ास बात ये कि इस भक्ति गीत के गायक, गीतकार और संगीतकार तीनों ही मुस्लिम थे। 1954 में आई फिल्म ‘तुलसीदास’ के गीत ‘मुझे अपनी शरण में ले लो राम’ को भी मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज दी है और संगीतकार चित्रगुप्त ने इसे संगीत से सजाया था।

‘रामचंद्र कह गए सिया से...’

1958 की फिल्म ‘दो आंखें बारह हाथ’ का गीत ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हो हमारे करम’ बुराई पर अच्छाई की जीत का बेहतरीन प्रमाण है। इस गीत में नुकसान पहुंचाने वाले डाकुओं को इंसानियत के नाम पर मदद पहुंचाई जाती है। भरत व्यास ने इस गीत को लिखा और वसंत देसाई ने संगीत दिया था। लता मंगेशकर ने अपनी मधुर आवाज दी। दिलीप कुमार की 1970 में आई फिल्म ‘गोपी’ का महेंद्र कपूर की आवाज में गाया गीत ‘रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा’ ऐसा भजन है जिसमें भविष्य का संकेत था। राजेंद्र कृष्णज के इस गीत को कल्याणजी-आनंदजी ने संगीत दिया था। भक्ति गीतों में सांई बाबा पर रचे गए गीत भी बड़ी संख्या में हैं। 1977 की फिल्म ‘अमर अकबर एंथोनी’ का गीत ‘तारीफ तेरी निकली है दिल से, आई है लब पे बनके कव्वाली’ साईं के भक्तों के लिए एक तरह से संजीवनी है।

‘रामजी की निकली सवारी...’

‘सरगम’ (1979) एक संगीत पर केंद्रित फिल्म थी। पर, इसका एक गीत ‘रामजी की निकली सवारी, रामजी की लीला है न्यारी’ में भगवान राम की महिमा का बखूबी वर्णन है। दशहरे में जब रामजी की सवारी निकलती है, तो इस गीत के बिना माहौल नहीं बनता। आनंद बक्शी के लिखे इस गीत को मोहम्मद रफी ने गाया था और इसका संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने दिया था। ‘अंकुश’ (1986) एक अलग तरह की फिल्म थी, लेकिन, इसका एक भक्ति गीत ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना’ टूटे मन को दिलासा देता हुआ सा लगता है। ‘भर दो झोली मेरी या मुहम्मद, लौटकर मैं ना जाऊंगा खाली’ वास्तव में तो एक गैर फ़िल्मी गीत था, पर इसे 2015 में आई फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ में शामिल किया गया था। फिल्म का हीरो सलमान खान एक भटकी हुई बच्ची को उसके देश पाकिस्तान छोड़ने जाता है। इस दौरान उसे होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए इस अदनान सामी के गाए इस गीत को प्रार्थना के रूप में फ़िल्माया गया। लेकिन, लगता है फ़िल्मी कथानक में किरदारों को अब भगवान की कृपा की जरूरत नहीं है। लंबे समय से ऐसी कोई फिल्म नहीं आई, जिसमें धार्मिक गीत, भजन या आरती सुनाई दी हो।

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