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अब गगनयान से उम्मीदें आसमान पर टेस्ट अबॉर्ट मिशन-1

08:50 AM Oct 25, 2023 IST
अब गगनयान से उम्मीदें आसमान पर टेस्ट अबॉर्ट मिशन 1
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अभिषेक कुमार सिंह
धरती से ऊपर के आकाश को देखने के कई नजरिए हो सकते हैं। एक आम इंसान भी बड़े लक्ष्यों और उम्मीदों के फलीभूत होने की प्रार्थना के साथ आकाश की ओर देखता है। लेकिन भारत और उसके अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के लिए यह आसमान या अंतरिक्ष ऐसी जगह में तब्दील हो गया है जो देश को विकास और अनुसंधान की तमाम प्रेरणाएं देने के साथ-साथ पूरे विश्व की उस पांत में शामिल कराने का जरिया बन गया है, जहां पहुंचने का सपना आज कई मुल्क देख रहे हैं और जहां पहुंचे बिना कोई विकास अब अधूरा लगता है। हाल ही में इंसानों को अंतरिक्ष में भेजने के इसरो के अभियान गगनयान की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में टेस्ट अबॉर्ट मिशन-1 का सफल प्रक्षेपण हुआ। इससे यह उम्मीद बंधी कि यहां से भारत जिस जगह पहुंचेगा, वहां अभी अमेरिका, रूस और चीन के अलावा दुनिया का कोई और मुल्क मौजूद नहीं होगा।
असल में, गगनयान मिशन इसरो की वह महत्वाकांक्षी योजना है, जिसके तहत भारत का उद्देश्य इंसान को अंतरिक्ष में पहुंचाना है। हालांकि हाल में ही चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर की सफल लैंडिंग के जरिये भारत ने वह मोर्चा फतह कर लिया है, जिसे पाने में दुनिया की महाशक्तियां तक नाकाम रही हैं। साथ ही, मंगल और सूर्य को लेकर इसरो के अभियानों ने यह भरोसा पैदा किया है कि अब कोई अंतरिक्षीय उपलब्धि इतनी बड़ी नहीं है जिसे भारत की पहुंच के दायरे से बाहर मानी जाए। लेकिन अंतरिक्ष में इंसानों को पहुंचाना और वहां से सकुशल पृथ्वी पर वापस लाने का काम आज भी बहुत चुनौतीपूर्ण हैं। कई चरणों वाले गगनयान मिशन की अगली कड़ियों के तहत अगले साल मानवरहित या कहें कि अनमैन्ड मिशन भेजा जाएगा। यानी इसमें किसी भी मानव को स्पेस में नहीं भेजा जाएगा। अनमैन्ड मिशन के सफल होने के बाद मैन्ड मिशन होगा, जिसमें इंसान अंतरिक्ष में जाएंगे। भारत से पहले यह उपलब्धि सोवियत संघ (रूस), अमेरिका और चीन हासिल कर चुके हैं। पहले 12 अप्रैल, 1961 को सोवियत रूस के यूरी गागरिन 108 मिनट तक अंतरिक्ष में रहे थे। इसके कुछ ही दिनों बाद 5 मई, 1961 को अमेरिका के एलन शेफर्ड अंतरिक्ष में पहुंचे और 15 मिनट तक वहां रहे। सबसे अंत में चीन के यांग लिवेड 15 अक्तूबर, 2003 को अंतरिक्ष में पहुंचे थे और उन्होंने वहां 21 घंटे का समय बिताया था।
भारत का गगनयान इसी दिशा में बढ़ता एक अभियान है जो अंतरिक्ष पर्यटन से लेकर भावी सुदूर अंतरिक्ष यात्राओं का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। इस अभियान में अभी की बढ़त यह कि गगनयान के क्रू एस्केप सिस्टम की पहली दो कड़ियों का परीक्षण सफलता के साथ हो गया है और इससे हमारा वैज्ञानिक जगत आश्वस्त कर सकता है कि मंगल और चंद्रमा के अभियानों की तरह ही गगनयान इसरो व भारत की शान में चार चांद लगाने वाला साबित होगा। खास तौर पर गगनयान अंतरिक्ष पर्यटन की भारतीय कोशिशों को एक नया आधार दे सकता है।
भूलें नहीं कि चंद्रयान-3 की सफलता पर प्रधानमंत्री ने अंतरिक्ष पर्यटन संबंधी एक नया नारा दिया था। उन्होंने विक्रम लैंडर के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पदार्पण पर कहा था- चंदा मामा टूर के। इसका आशय यह लगाया जा सकता है कि आगे चलकर इसरो अंतरिक्ष पर्यटन की योजनाओं को अमल में ला सकता है। हालांकि यह बहुत संभव है कि इसमें निजी कंपनियों की मदद ली जाए क्योंकि ऐसी योजनाओं का उद्देश्य अनुसंधान को आगे बढ़ाने से ज्यादा कमाई करना होता है।
उल्लेखनीय है कि अभी दुनिया में अमेरिका की दो निजी स्पेस कंपनियां- वर्जिन गैलेक्टिक और ब्लू ऑरिजिन ही ऐसे अभियानों को अमल में लाने का प्रयास करते दिखाई दे रही हैं। वर्ष 2021 में वर्जिन गैलेक्टिक नामक स्पेस कंपनी के मालिक रिचर्ड ब्रैन्सन अपने पांच कर्मचारियों के साथ अंतरिक्ष की उपकक्षीय (सब-ऑर्बिटल) उड़ान आयोजित करने में सफल रहे थे। इसी तरह उसी वर्ष 2021 में ईकॉमर्स कंपनी- अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोफ ने भी अपनी स्पेस कंपनी ब्लू ऑरिजिन के न्यू शेपर्ड यान से अंतरिक्ष की उड़ान भरी थी। ब्रैन्सन और बेजोस की कंपनियों की पहलकदमियां नई जरूर हैं, पर अंतरिक्ष की सैर और उसमें निजी कंपनियों की भागीदारी की पहल अरसे से की जा रही है। तीन साल पहले 30 मई, 2020 एक निजी उड़ान की मदद से दो अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पहुंचे थे।
इस उपलब्धि के साथ अमेरिका, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका की एक साथ नागरिकता रखने वाले अरबपति एलन मस्क की कंपनी- स्पेसएक्स दुनिया की पहली ऐसी प्राइवेट कंपनी बन गई थी, जो अपने रॉकेट से दो अंतरिक्ष यात्रियों को आईएसएस तक सफलतापूर्वक ले गई थी। वहीं 30 मई, 2020 की रात स्पेस एक्स का ताकतवर रॉकेट फॉल्कन-9 स्पेसएक्स ड्रैगन कैप्सूल लेकर कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ा था जिसने 19 घंटे की यात्रा के बाद उसने कैप्सूल को आईएसएस से जोड़ दिया। इस कैप्सूल में रॉबर्ट बेनकेन और डगलस हर्ले नामक दो अंतरिक्ष यात्री थे, जिन्हें एक विशुद्ध निजी उड़ान से अंतरिक्ष में पहुंचने का गौरव मिला। हालांकि यह अभियान आईएसएस से जुड़ा था, लेकिन इससे उम्मीद जगी थी कि जल्दी ही दुनिया के और भी कई लोग अंतरिक्ष पर्यटन का अपना सपना पूरी कर सकेंगे। नि:संदेह, गगनयान परियोजना के जरिये इसरो अंतरिक्ष पर्यटन में महारत हासिल करने के साथ-साथ अनुसंधान और भावी अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए कमाई के स्रोत भी पैदा कर सकेगा।

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