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अब मध्यपूर्व में सांस्कृतिक कूटनीति का विस्तार

06:33 AM Feb 17, 2024 IST
अब मध्यपूर्व में सांस्कृतिक कूटनीति का विस्तार
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पुष्परंजन

प्रधानमंत्री मोदी के लिए अब नया टास्क सामने है, अरब देशों में हिंदू धर्म का विस्तार। आइडिया सुनकर चौंकिये नहीं। इसकी शुरुआत उन्होंने अबू धाबी से कर दी है। अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम के विस्तार में सबसे अधिक दिलचस्पी सऊदी अरब की रही है, अब यह गंगा उल्टी बह रही है। विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और स्वयं प्रधानमंत्री मोदी चुनाव के बाद इस भगीरथ प्रयास में लग जाएं, तो कुछ नया नैरेटिव गढ़ने की संभावना बनती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने विस्तार के वास्ते पूरे मिडिल ईस्ट में सबसे अधिक ध्यान यूएई में केंद्रित किया है।
पिछले कुछ वर्षों से सर संघ चालक मोहन भागवत यूएई बेस्ड एनएमसी ग्रुप ऑफ कंपनीज के मैनेजिंग डायरेक्टर डाॅ. बीआर शेट्टी के संपर्क में रहे हैं। जनवरी, 2016 में मोहन भागवत की मुलाकात बीआर शेट्टी से कोच्चि के अलूवा स्थित तंत्रा विद्यापीठम में कराई गई थी। इस मुलाक़ात का मूल उद्देश्य मिडिल ईस्ट में हिंदू धर्म का विस्तार करना था, जिसका अधिकेंद्र यूएई को बनाने की वजह वहां का सर्वधर्म समभाव वाला उदार क़ानून भी है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत यूएई के दूसरे बिजनेस टायकून सुधीर कुमार शेट्टी (प्रेसिडेंट यूएई एक्सचेंज), एन. बालाकृष्णा (चेयरमैन प्राकृति नेस्ट बिल्डर्स), अनिल पिल्लई (दुबई बेस्ड जेआर एयरोलिंक के एमडी), प्रमोद (यूएई एक्सचेंज के सीओओ), प्रशांत मंगत (एनएमसी ग्रुप के सीओओ) से समय-समय पर इस प्रोजेक्ट को खाद-पानी देने के वास्ते मिलते रहे। यूएई समेत मिडिल ईस्ट के देशों में मुश्किल यह है कि आप सार्वजनिक रूप से संघ की शाखा का आयोजन नहीं कर सकते। बंद कमरे में अपनी आस्था का विस्तार कीजिए, इतनी छूट कुछ देशों में है।
सऊदी अरब में हिंदू धर्म तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, देश की कुल आबादी का लगभग 1.3 प्रतिशत इसका अनुसरण करता है। वर्ष 2020 तक सऊदी अरब में लगभग 7 लाख 8,000 हिंदू रहते थे, जिनमें से अधिकांश भारतीय और नेपाली थे। सऊदी अरब में भारतीयों का बड़े पैमाने पर प्रवासन हुआ है, साथ ही हिंदुओं की संख्या में भी तेज़ी से वृद्धि देखी जा रही है। गल्फ देशों में भारतीय सबसे पहले ओमान में रहने आए, बस्तियां बनाईं और हिंदू धर्म का पालन किया।
ओमान की राजधानी मस्कट में हिंदू धर्म पहली बार 1507 में कच्छ से आया था। मूल हिंदू कच्छी बोलते थे। 19वीं सदी की शुरुआत तक ओमान में कम से कम 4,000 हिंदू थे। 1895 में मस्कट में हिंदू कॉलोनी पर इबादियों का हमला हुआ। 1900 आते-आते उनकी संख्या घटकर 300 रह गई थी। आजादी के समय तक ओमान में केवल कुछ दर्जन हिंदू ही बचे थे। अल-वलजत और अल-बानयान के ऐतिहासिक हिंदू क्वार्टरों पर अब हिंदुओं का कब्जा नहीं है। वो बीते दिनों की बात बनकर रह गये। सबसे आप्रवासियों में विसूमल दामोदर गांधी (औलाद कारा), खिमजी रामदास, धनजी मोरारजी, रतनसी पुरुषोत्तम और पुरुषोत्तम टोपरानी के खानदान वाले हैं। एकमात्र हिंदू श्मशान मस्कट के उत्तर-पश्चिम में सोहर में स्थित है।
वर्ष 2010 में पीईडब्ल्यू रिसर्च सेंटर ने अनुमान लगाया कि अमीरात की कुल आबादी का 76.9 प्रतिशत मुस्लिम, 12.6 प्रतिशत ईसाई, 6.6 प्रतिशत हिंदू और 2 प्रतिशत बौद्ध और बाक़ी अन्य धर्मावलंबी थे। वर्ष 2020 में बोस्टन विश्वविद्यालय के विश्व धर्म डेटाबेस के अनुसार, यूएई की जनसंख्या में लगभग 125,000 नास्तिक, 72,000 सिख और 49,000 बहाई शामिल हैं। पिछले 14 वर्षों में यह जनसंख्या कितनी बढ़ी है, इसका अपडेट नहीं आया है।
वर्ष 2001 में बेल्जियम के स्पेलोलॉजिस्टों ने यमन के सोकोट्रा द्वीप पर बड़ी संख्या में शिलालेख, चित्र और पुरातात्विक वस्तुओं की खोज की, जो नाविकों द्वारा छोड़े गए थे। उससे पता चला कि ईसा पूर्व पहली शताब्दी से छठी शताब्दी तक भारतवंशियों ने इस द्वीप का दौरा किया था। उस समय जो ग्रंथ पाए गए, अधिकांश ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि 6वीं शताब्दी में अरब व्यापारी केरल में बस गए थे। मध्ययुगीन गुजरातियों, कच्छियों, आंध्र, तमिल, कर्नाटक के व्यापारियों ने अरब व सोमाली बंदरगाहों के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार किया, जिनमें होर्मुज, सलालाह, सोकोत्रा, मोगादिशु, मर्का, बरवा, होब्यो, मस्कट और अदन शामिल थे। ब्रिटिश साम्राज्य के कालखंड में सेना या सिविल सेवा में कई भारतीय सूडान जैसे अरब देशों में तैनात थे।
दुर्भाग्यवश 1970 के बाद मबाद अल बनयान और बेयत अल पीर में स्थित हिंदू मंदिर दिखे नहीं। आज एकमात्र सक्रिय हिंदू मंदिर मस्कट में शिव मंदिर परिसर (जिसे स्थानीय रूप से मोतीश्वर मंदिर के रूप में जाना जाता है), और दरसैट में स्थित कृष्ण मंदिर हैं। संयुक्त अरब अमीरात के तीन सबसे बड़े शहर- अबू धाबी, दुबई और शारजाह भारतीय आप्रवासियों के गढ़ हैं। अनुमानित 20 लाख भारतीय प्रवासियों में से 10 लाख केरल से, और लगभग साढ़े चार लाख तमिलनाडु से हैं, बाक़ी अन्य प्रांतों से हैं।
यह कहना ग़लत और भ्रामक है कि 2024 में पहली बार यूएई में हिंदू मंदिर का उद्घाटन हुआ। बल्कि, यह कह सकते हैं कि अबू धाबी स्थित बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण (बीएपीएस संस्था) का संयुक्त अरब अमीरात में पहला हिंदू मंदिर है। जुलाई, 2013 में टाइम्स ऑफ इंडिया ने ‘बीएपीएस’ के एक सूत्र के हवाले से जानकारी दी कि एक मुस्लिम व्यवसायी ने अबू धाबी में बीएपीएस मंदिर निर्माण के लिए पांच एकड़ जमीन दान में दी थी। सूत्र के मुताबिक, यह कदम तब उठाया गया जब ‘बीएपीएस’ के एक टाॅप प्रतिनिधि ने दुबई स्थित इन्वेस्ट एडी ग्रुप के निमंत्रण पर यूएई की यात्रा की थी। यह नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साल भर पहले की बात है।
ठीक से पड़ताल करें तो यूएई के दुबई में 1958 में हिंदू मंदिर बनाने की अनुमति दी गई, जिसमें शिव मंदिर, कृष्ण मंदिर और गुरुद्वारा शामिल थे। जनवरी, 2024 में दुबई के जेबेल अली में एक नया हिंदू मंदिर खोला गया और मौजूदा शिव मंदिर और गुरुद्वारा को इस नए स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया। कृष्ण मंदिर अभी भी बर दुबई में मूल परिसर में स्थित है। बहरीन में श्रीनाथजी का एक मंदिर है।
संयुक्त अरब अमीरात, सात अमीरातों का एक संघ है, जो लगभग 26 लाख भारतीय प्रवासियों का घर जैसा है। यह यूएई की कुल आबादी का एक तिहाई है, स्थानीय अमीराती आबादी से अधिक। संयुक्त अरब अमीरात में रहने वाले अधिकांश हिंदू अपने घरों के भीतर ही अपने धर्म का पालन करते हैं। अबू धाबी में जिस बीएपीएस हिंदू मंदिर का शिलान्यास अप्रैल, 2019 में हुआ था, उसका उद्घाटन पीएम मोदी ने बुधवार 14 फरवरी, 2024 को किया है।

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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