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अब लिखने-पढ़ने और सोचने का काम भी

07:24 AM Sep 04, 2021 IST
अब लिखने पढ़ने और सोचने का काम भी
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आप जल्द ही भावनाओं से ओतप्रोत ऐसी कविताएं पढ़ेंगे जो मशीन ने लिखी होंगी। मशीन ही आपके अध्ययन के लिए विचारपूर्ण सम्पादकीय और लेख लिखा करेगी। आप यह करिश्मा भी देखेंगे जब कृत्रिम बुद्धि नये अनुसंधान करेगी, नयी खोज करेगी, नये आविष्कार करेगी और उनका पेटेंट उसी के नाम किया जाएगा अर्थात‍ उस ईजाद पर मशीन का ही अधिकार होगा। मशीनी बुद्धिमत्ता जिस प्रकार निरंतर सृजन के क्षेत्र में क़दम बढ़ा रही है, उससे उत्साहित होकर सरे विश्वविद्यालय, ब्रिटेन में कानून के प्रोफ़ेसर रेयान एबट ने मशीनी बुद्धि को अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट क़ानून में व्यक्ति के समकक्ष दर्जा दिए जाने की मांग की है। इसके पक्ष में उन्होंने बाकायदा एक अभियान छेड़ा हुआ है।

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क्षमता के लिहाज से भी मशीनी बुद्धि मनुष्य से बहुत अधिक समर्थ होगी। वह पलक झपकते ही बहुत बड़ी तादाद में आंकड़ों की गणना, विश्लेषण और नये विचारों को प्रस्तुत करने में समर्थ हो चुकी है। आश्चर्य नहीं होगा यदि अगली बार महामारी के मौक़े पर विचारशील मशीनी बुद्धि टीके का सफल परीक्षण और आविष्कार का चमत्कार कर दिखाए।

आने वाले समय में यह भी संभव है कि अमेरिका के लिए मशीनें सामरिक और आर्थिक क्षेत्रों में ऐसे आविष्कार कर दिखाएं जो चीन को मात देने में समर्थ हों। कृत्रिम बुद्धि द्वारा किए जा रहे अनुसंधान इस दिशा में और आगे बढ़ें, उससे पहले ज़रूरी है कि कृत्रिम बुद्धि द्वारा किए जाने वाले सफल प्रयोगों को पेटेंट के अधिकार की सुविधा दी जाए। यह तभी संभव होगा जब मशीनी बुद्धि को मनुष्य की तरह मान्यता दे दी जाएगी। यदि ऐसा नहीं किया गया तो कुछ स्वार्थी और ओछे विचार वाले तत्व कृत्रिम बुद्धि के आविष्कारों का लाभ उठाने की कोशिश में लगे रहेंगे।

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मानव विकास के इतिहास पर विहंगम दृष्टि डालें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि पहिये के बाद सबसे चमत्कारी खोज कृत्रिम बुद्धि ही है। अभी तक इस विज्ञानी अक्ल का उपयोग आपसी संवाद, मशीन संचालन, आशु लिप्यन, गैर साहित्यिक अनुवाद आदि में होता रहा है। समकालीन लेखक इस प्रकार के बौद्धिक कौशल को ‘रचनात्मक लेखन के बजाय मात्र टाइपिंग’ ठहराते रहे हैं क्योंकि उसमें वह वैचारिक चिंगारी नहीं होती जो दिमाग को नयी सोच की दिशा में प्रेरित कर सके।

मशीनी बुद्धिमत्ता की नयी करिश्माई कामयाबी हम कुछ समय पूर्व देख चुके हैं जब उसने गार्डियन अख़बार के अमेरिकी संस्करण के लिए संपादकीय लेख लिखने के आदेश का पालन कर दिखाया। मशीनी बुद्धि ने बहुत ही विचारपूर्ण लेख लिख दिखाया। लेख में आशा प्रकट की गई कि भविष्य में मानवता को हानि पहुंचाने या नष्ट करने का प्रयास कभी नहीं किया जाएगा। यह लेख आश्वस्त करता है कि भविष्य में लिखने-पढ़ने और सोचने के काम को काफ़ी हद तक कृत्रिम बुद्धि करने में समर्थ हो जाएगी।

मशीनी बुद्धिमत्ता को वैचारिक कामों के लिए तैयार करने की पहल कुछ युवकों ने की। उन्होंने एक नयी भाषा ईजाद की, जिसको जीपीटी-3 (जेनरेटिव प्री-ट्रेंड ट्रांसफर) नाम दिया गया। युवकों ने इस उद्देश्य से सैन फ्रांसिस्को में एक प्रयोगशाला स्थापित की, जिसका नाम ओपन एआई रखा गया। इसी प्रयोगशाला में मशीनी बुद्धि के प्रयोग में समर्थ नयी भाषा का आविष्कार हुआ। अब इस मशीनी बुद्धि से यहां तक उम्मीद लगायी जा रही है कि वह कविता लेखन, उपन्यास और कहानियां भी लिखने में समर्थ होगी। यदि ऐसा हुआ तो क्या फिर मनुष्य की विचारशीलता का काम मशीनें संभाल लेंगी? सोचने की बात है।

बुद्धिमान मशीनें लिखे हुए पाठ के शब्दों की सही पहचान करके उनको पढ़ने और टीवी दर्शकों को सुनाने का काम भी सम्भाल चुकी हैं। एक टीवी एंकर का यह काम जापान में सफलतापूर्वक कराकर देखा जा चुका है।

एक ओर जहां ये सफलताएं नयी आशाएं जगाती हैं, उत्साहित करती हैं, वहीं हमको प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री स्टीफन हॉकिंग की चेतावनी को भी नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने आगाह किया था कि कृत्रिम बुद्धि मानवता और इस पृथ्वी ग्रह के सुरक्षित भविष्य के लिए ख़तरा बन सकती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए जो प्रयोग मशीनी बुद्धि द्वारा किए जा रहे हैं, उनके प्रति सावधानी भी बरतनी होगी। यहां एक हॉलीवुड फिल्म ‘आई रोबोट’ का जिक्र उचित होगा, जिसमें रोबोट सारा काम करते-करते हरकतें करने लगता है। बाद में वह मनुष्य के विरुद्ध षड्यंत्र करने लगता है और अंत में उसको नष्ट करना पड़ता है।

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