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अब तो हारने लगा है कैंसर

10:18 AM Dec 01, 2024 IST
अब तो हारने लगा है कैंसर
चित्रांकन : संदीप जोशी
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डॉ. किसलय डिमरी
प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, ऑन्कोलाॅजी, जीएमसीएच, चंडीगढ़

यदि कोई व्यक्ति ये दावा करे कि उसका पेशेंट कैंसर के प्रमाणिक इलाज के बिना सिर्फ प्राकृतिक चिकित्सा के जरिये स्वस्थ हो गया, तो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान इसे स्वीकार नहीं करेगा। पुख्ता प्रमाणों के अभाव में यह चिकित्सा विज्ञान की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। ये दलील अतार्किक हैं। जिन सज्जन के दावों से पिछले दिनों यह नई बहस शुरू हुई, उनके पेशेंट ने पूरे छह महीने तक कीमो व रेडिएशन थैरेपी ली थी। ऐसे में इस प्रकार से दी गई दलीलों की वैज्ञानिक आधार पर व्याख्या नहीं हो सकती। इस बाबत अभी कई अध्ययन हो रहे हैं। निश्चित रूप से इन उपचारक अवयवों का सप्लीमेंट के रूप में तो रोल हो सकता है, लेकिन यह सिर्फ सपोर्टिव रोल तक ही सीमित है। हल्दी में जरूर कुछ एंटी कैंसर तत्व पाए जाते हैं। लेकिन यदि हम कह दें कि सिर्फ हल्दी, नीम, तुलसी के पत्तों से कैंसर ठीक हो गया, ये दावा गले नहीं उतरता है। यह गंभीर उपचार का ओवर सिंपलीकेशन ही कहा जाएगा। इसका ठोस एविडेंस नहीं।

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मीठा व डेरी उत्पाद

जब कोई कहता है कि मीठी चीजों व डेरी उत्पाद से परहेज तथा व्रत रखने से कैंसर सेल्स मर जाते हैं तो संभव हो इसका कुछ प्रभाव होता हो, लेकिन अभी इसका कोई वैज्ञानिक एवीडेंस उपलब्ध नहीं है। कई बीमारियों में इससे फायदा हो सकता हो, लेकिन अंतिम निष्कर्ष वैज्ञानिक ही देंगे। चिकित्सा विज्ञान में साइंटिफिक ए‍वीडेंस के बाद ही कोई दावा किया जा सकता है।

खानपान की उपचारात्मक भूमिका

जहां तक हमारे खानपान व खुराक की कोई उपचारात्मक भूमिका का सवाल है तो इसमें दो राय नहीं कि कैंसर का एक बड़ा कारण मोटापा ही है। कोई सात-आठ तरह के कैंसर होते हैं मोटापे से जिनमें लीवर, पेट, प्रोस्टेट, ब्रेस्ट, पैनक्रियाज का कैंसर भी शामिल है। यदि आपकी डाइट ठीक नहीं है, तो निश्चय ही उसका नकारात्मक प्रभाव आपके शरीर पर पड़ता है। यदि आपकी डाइट में कम फाइबर है, प्रोसेस्ड फूड ज्यादा है तो इनकी कैंसर में भूमिका हो सकती है। निस्संदेह, डेरी प्रॉडक्ट ज्यादा फैट बढ़ाते हैं। भूखा रहने से कैंसर न होगा, यह तथ्य भी तर्क की मानक कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। आजकल इंटरमिटेंट फास्ट की बात की जाती है। इसके प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जा रहा है।

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आयुर्वेद व वैकल्पिक चिकित्सा

निस्संदेह, देश में बहुत सारी चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित हैं। मैं ये नहीं कहता कि एलोपैथी सिस्टम अंतिम सत्य है। लेकिन इसमें कैंसर हो या कोई और बीमारी, उसका इलाज संभव है। कई मरीज ठीक होते हैं, कई नहीं भी होते। लेकिन इसका आधार साइंटिफिक है। लाखों मरीजों का इलाज होता है। इसके साइंटिफिक एवीडेंस उपलब्ध हैं। जहां तक आयुर्वेद, तिब्बती व यूनानी चिकित्सा पद्धति का सवाल है तो वे भी एक सिस्टम को फॉलो करते हैं। उनकी अपनी दवाइयां होती हैं।

योग की वैकल्पिक पद्धति

योग निश्चित रूप से स्वास्थ्य के लिये बेहद उपयोगी होता है। शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य में उसकी भूमिका होती है। योग वेट लॉस में मदद करता है। केवल कैंसर नहीं, सभी बीमारियों में यह सहायक होता है। निश्चय ही देश में कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। निस्संदेह, देश व दुनिया में कैंसर महामारी की तरह बढ़ रहा है, लेकिन भारत तेजी से मधुमेह की राजधानी बनता जा रहा है जिसमें सबसे ज्यादा लाइफ स्टाइल का रोल है। डाइट का रोल हर रोग में होता है। एक बार कैंसर हो गया तो प्रीवेन्शन के उपाय जरूरी हैं। लेकिन ट्रीटमेंट न करें तो लाभ संभव नहीं है।

मेडिकल साइंस की उन्नति और कैंसर

निस्संदेह मेडिकल साइंस ने काफी उन्नति की है लेकिन ट्रीटमेंट इसकी प्राथमिकता है। प्रीवेंशन में बहुत अधिक काम करने की जरूरत है। जहां तक कैंसर बढ़ने के कारणों की बात है तो हमारी जीवन प्रत्याशा बढ़ना भी एक बड़ा कारण है। पहले हमारी औसत आयु पचास से साठ साल के बीच होती थी, अब 75 से 80 तक सामान्य हो चला है। जिसकी वजह से भी कैंसर बढ़ा है। हम कैंसर को नहीं रोक सकते। लेकिन लाइफ स्टाइल मोडिफिकेशन का इसमें पक्का प्रभाव पढ़ता है। लेकिन ये कैंसर को रोक देगा, ऐसा संभव नहीं है। उदाहरण स्वरूप देखिए बच्चों की लाइफ स्टाइल सहज होती है, उनमें भी कैंसर के मामले सामने आते हैं। दरअसल, जेनिटिक सिस्टम में म्यूटेशन व रोटेशन की वजह से कैंसर के मामले सामने आते हैं। कुछ लोग दलील देते हैं कि शराब, तंबाकू का सेवन न करने वाली महिलाओं को भी ब्रेस्ट कैंसर हो जाता है। यह चिंता की बात है कि पूरी दुनिया में महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर क़ॉमन होता जा रहा है। यूरोप व अमेरिका में इतना ज्यादा है कि हर आठ में से एक महिला इसकी शिकार है। दरअसल, यह मोटापे व लाइफ स्टाइल की खामियों के चलते भयावह रूप लेता जा रहा है। लेकिन अभी भी ठोस कारणों की तलाश जारी है।
हालांकि, अधिकांश ब्रेस्ट कैंसर के मामलों का मुख्य कारण नहीं पता, लेकिन ये सब तो होता है। इसमें बच्चों को अपना दूध न पिलाना भी एक कारण है। कुछ महिलाओं को समय पहले महावारी शुरू होना, देर से बंद होना है। साइंटिफिक कारण एस्ट्रोजन हार्मोन का एक्सपोजर है। यदि ऐसा होगा कि ब्रेस्ट कैंसर होने के चांसेज बढ़ जाते हैं। पहले महिलाओं के बच्चे 20 से 25 की उम्र में हो जाते थे। अब देर से शादी होने से 30 से 35 साल की उम्र में होते हैं। कम बच्चे होना भी कारण है। ये कारक हैं लेकिन ये ही अंतिम कारण नहीं हैं।
कुछ लोग मानते हैं कि कीमो थरेपी ज्यादा प्रभावी नहीं है, लेकिन उपचार का एक सिस्टम है। कीमो, रेडिएशन,सर्जरी और हारमोनल थैरपी भी इसमें शामिल हैं। अब इम्यूनो थैरेपी व टारगेटेड थैरेपी के अच्छे परिणाम सामने आए हैं। काफी समय में बहुत सारे मरीज ठीक होते हैं। जो ठीक न हुए वे ठीक होने की उम्मीद रखते हैं। ये क्रॉनिकल डिजीज है। उपचार लंबे समय तक चलता है। जैसे हाइपर टेंशन है, इसे जड़ से खत्म नहीं कर सकते। डाइबिटीज को क्योर नहीं कर सकते। उसको कंट्रोल कर सकते हैं, आजीवन नहीं काफी समय तक।
ऐसे ही कैंसर को कंट्रोल में काफी समय लगता है। अकसर कहा जाता है कि कीमो थैरेपी के नकारात्मक प्रभाव भी होते हैं। स्वास्थ्यवर्धक व्हाइट सेल्स को भी नुकसान पहुंचता है। निस्संदेह, हर चिकित्सा पद्धति के साइड इफेक्ट होते हैं। दुनिया में कोई ट्रीटमेंट ऐसा नहीं है जिसके साइड इफेक्ट न हों । हमारे पास उसका उपचार भी है। जैसे ब्लड थैरेपी है। प्लेटलेट से उपचार है। ये टेंपरेरी स्थिति है। देखना चाहिए कि पेशेंट को फायदा कितना व नुकसान कितना है। यदि फायदा ज्यादा है तो उसकी सार्थकता है। हम लांग टाइम साइड इफेक्ट देखते हैं।

विचार तत्व- मानसिक तनाव

यूं तो मानसिक तनाव के चलते कई तरह के रोग हो सकते हैं लेकिन इसके मूल में और इश्यू हो सकते हैं। इसका सीधे तरह कोई रिश्ता नहीं। इसके कोई एवीडेंस भी नहीं हैं। सेहत से जुड़े कई इश्यू हो सकते हैं। मेडिकल प्रॉब्लम हो सकती हैं।

बचाव के लिये खानपान में सुधार

हम कैंसर की चपेट में न आएं, इसके लिये खानपान व जीवनशैली में सुधार महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इससे हम कैंसर का खतरा पचास प्रतिशत तक कम कर सकते हैं। हम सिगरेट-तंबाकू आदि से परहेज करके सात तरह के कैंसर से बच सकते हैं। जिसमें लंग्ज कैंसर, मुंह, गले, पेनक्रियाज आदि के कैंसर से बचाव संभव है। लेकिन सब तरह के कैंसर को नहीं टाल सकते। हमारे खाने में फाइबर डाइट महत्वपूर्ण रूप से हो। प्रोसेस्ड फूड कम से कम हो। दरअसल, इस तरह के खाद्य पदार्थों को संरक्षित करने के लिये बहुत अधिक सॉल्ट व शूगर कंटेंट डाला जाता है। जो निश्चित रूप से सेहत के लिये नुकसान दायक होता है। रिच डाइट यानी हाई कैलोरी डाइट से परहेज होना चाहिए। इसमें कोर्बोहाइड्रेट ज्यादा होते हैं। खानपान की गुणवत्ता का हमारे स्वास्थ्य पर गहरा असर होता है।

आहार चिकित्सा यानी कुदरत की देन

डॉ. धर्मेंद्र वशिष्ठ
निदेशक, वृंदावन आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सालय

आज पूरा विश्व आहार चिकित्सा में विश्वास की औषधि खोज रहा है। लेकिन वक्त की जरूरत है कि मनुष्य अपने मन को मलिन होने से रोके। यदि खाद्य पदार्थों में मिलावट को रोक दिया जाए तो कैंसर जैसे कई रोग स्वतः ही ख़त्म हो जाएंगे। लेकिन हमारे समाज में लालची लोग मुनाफे के लिये दूसरों के जीवन से खिलवाड़ करने से बाज नहीं आते। हमारे पूर्वजों ने हम सबको सिखाया कि जो हमारा रसोई घर है, वह भरा-पूरा मेडिकल स्टोर है। उसमें खाने में इस्तेमाल किए जाने वाले मसालों के रूप में तमाम रोगों की औषधि हमें प्राप्त हो जाती है। वहीं दूसरी ओर हमने ऋतुचक्र बदलाव के नकारात्मक प्रभावों को दूर करने वाले भोजन की अनदेखी की है। हमें ऋतु के अनुरूप ही फल, सब्जी व अन्न ग्रहण करना चाहिए। लेकिन नई पीढ़ी ऋतु चक्र के बदलावों से अनभिज्ञ है। हाल में प्राकृतिक चिकित्सा और आहार चिकित्सा के जरिये गंभीर रोगों के उपचारों में सफलता की सूचनाओं से लोगों में जागृति आई है। जिसके चलते लोग आहार चिकित्सा को तरजीह देने लगे हैं। देश में ‘शुद्ध के लिये हो युद्ध’ की जरूरत है। इसमें सख्त कानून मददगार होंगे।

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