अब जीत-हार के कारणों पर मंथन का दौर
एक बार फिर राजस्थान हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा पर कायम रहा, और भाजपा राज्य में सत्ता में वापस आ गयी। इसके साथ ही गहलोत सरकार का लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटने का सपना पूरा नहीं हुआ।
चुनाव में जीत के बाद भाजपा राजस्थान का मुख्यमंत्री किसे बनायेगी, यह प्रश्न तब से चल रहा है जबसे नरेंद्र मोदी ने जनता को कहा कि वे वोट कमल को दें और मोदी फेस को याद रखें। कांग्रेस सरकार की 10 प्रमुख योजनाओं और सात गारंटियों को खारिज करते हुए मतदाताओं ने ‘मोदी चेहरे’ को चुनने का जनादेश दिया है, इसलिए राज्य में कमल की जीत हुई। ‘जाति सर्वेक्षण या जनगणना’ पर कांग्रेस के चुनाव अभियान और मोदी-अडानी दोस्ती के भाषणों से गहलोत सरकार को कोई फायदा नहीं हुआ। भगवा दल को आज राज्य विधानसभा चुनावों में 199 में से 115 निर्वाचन क्षेत्रों में भारी बहुमत मिला। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस केवल 69 सीटों पर जीत पाई। भाजपा को 41.69 फीसदी वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 39.53 फीसदी। आदिवासी समूह के नए राजनीतिक मोर्चे बीएपी ने तीन निर्वाचन क्षेत्रों धारियावाड़, आसपुर और चोरासी में जीत हासिल की। बसपा सादुलपुर और बाड़ी की दो सीटों पर जीती। रालोद ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर भरतपुर में अपनी सीट बरकरार रखी। आरएलटीपी, इसके संस्थापक और नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल ने खींवसर सीट जीती। हालांकि 15वीं विधानसभा में आरएलटीपी के तीन विधायक थे। भाजपा के बागी यूनुस खान सहित आठ निर्दलीय विधायकों ने भी नई विधानसभा में प्रवेश किया।
मोदी मैजिक के कारण महत्वपूर्ण यह कि गहलोत कैबिनेट के 25 में से 17 मंत्री भाजपा उम्मीदवारों के खिलाफ भारी अंतर से चुनाव हार गए। गहलोत के दो प्रमुख सलाहकार संयम लोढ़ा और बाबूलाल नागर भी जीत नहीं सके। इसी तरह मतदाता ने भाजपा के सात में से मात्र चार लोकसभा सांसदों को विधानसभा के लिये चुना। लाल डायरी निर्माता राजेंद्र सिंह गुढ़ा जिसने भाजपा को महत्वपूर्ण मुद्दा दिया और शिवसेना (शिंदे) के टिकट पर चुनाव लड़ा था, अपनी उदयपुरवाटी सीट हार गए। इसके विपरीत विस स्पीकर सीपी जोशी (कांग्रेस), नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ (भाजपा), उपसचेतक, और दो पूर्व विस अध्यक्ष, पूर्व भाजपाध्यक्ष सतीश पूनिया भी हार गये।
गहलोत सरकार ने गत एक वर्ष में अपनी 10 फ्लैगशिप योजनाएं शुरू कीं। चुनाव आते-आते जनता को सात और गारंटियां दे दीं कि वे सत्ता में आते ही ओपीएस कानून , दो रुपये किलो गोबर समेत अन्य मुफ्त की रेवड़ियां देंगे। जवाब में मोदी ने अपनी 14 पब्लिक मीटिंग, दो रोड शो और 102 विधानसभा क्षेत्रों को कवर करते हुए मतदाता को आश्वस्त किया कि ‘मोदी है तो गारंटी है, गारंटी की गारंटी है’। भाजपा नेतृत्व ने गहलोत सरकार की कानून व्यवस्था, पेपर लीक, लाल डायरी, कन्हैयालाल मर्डर केस, दुराचार, सांप्रदायिक उन्माद, भ्रष्टाचार और सचिन-गहलोत कुर्सी विवाद पर कांग्रेस सरकार को घेरा। कांग्रेसी नेताओं मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, और अन्य नेताओं ने चुनाव प्रचार को रोचक रखा मगर भाजपा के सनातन धर्म, मुस्लिम तुष्टीकरण आदि बयानों ने राजस्थान चुनाव की दिशा बदलकर गहलोत सरकार की उपलब्धियों को नकार दिया।
भले ही गहलोत शुरू से ये कहते रहे कि उनकी सरकार के खिलाफ एंटी-इंकबेंसी नहीं है। अगर ये सब था तो कांग्रेस के 26 मंत्रियों में से 17, पांच सलाहकार और 98 में से 63 एमएलए क्यों हार गये? ध्रुवीकरण व तुष्टीकरण का असर भी चुनाव पर पड़ा। भाजपा ने राज्य में एक भी मुस्लिम को न गत लोकसभा में और न इस विस चुनाव में उतारा। जबकि कांग्रेस ने 15 मुस्लिम चुनावी रण में उतारे जिसमें से केवल 5 जीत कर 16वीं विधान सभा पहुंचे। इसके उलट भाजपा के चारों संत जीत गये। इसी तरह कांग्रेस का एक व भाजपा के 7 बागी विजयी हुए। भाजपा को 2.5 प्रतिशत नये वोटर्स का लाभ भी चुनाव आयोग की रिपोर्ट के आधार पर मिला। कांग्रेस के 11 में से 3 गुर्जर जीते, और भाजपा के 10 में से पांच विजयी हुए।
राजस्थान में रिवाज नहीं बदला, सरकार बदल दी। इसके साथ ये महत्वपूर्ण है अगर ऐसा ट्रेंड है तो क्या वसुंधरा राजे को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाया जायेगा? यूं तो भाजपा के जीते हुए एमएलए अपने नेता का नाम चुनकर पार्टी के पार्लियामेंट बोर्ड को नाम सौंपेंगे तब तय होगा सीएम। परंतु पांच से आठ अन्य प्रमुख भाजपाई नेता हैं जो सीएम पद की उम्मीद लगाये बैठे हैं। अगर सनातन रक्षा के मुद्दे पर अगला लोकसभा चुनाव भाजपा को लड़ना है तो तिजारा से जीते बाबा बालकनाथ (सांसद भी हैं) के मुख्यमंत्री बनाये जाने की जो अफवाहें चुनाव प्रक्रिया से पहले से उड़ी हुई हैं अब वापस सजीव हो गयी हैं। केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, गजेंद्र सिंह शेखावत, सांसद किरोड़ीलाल मीणा, महिला सांसद और अब विधायक और चितौड़गढ़ की एमपी दीया कुमारी (जयपुर राजघराना), ओम बिरला (लोकसभाध्यक्ष), ओमप्रकाश माथुर (आरएसएस) और भाजपा के राज्य अध्यक्ष सीपी जोशी (जिन्होंने पूरा चुनाव जितवाया और मोदी की सभा में साथ रहे) के साथ वसुंधरा राजे का नाम भी सियासी गलियारों में चल रहा है।
लेखक राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार हैं।