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ज़ीरो नहीं, ‘संकटमोचक शून्य महाराज’

12:18 PM Aug 20, 2021 IST
ज़ीरो नहीं  ‘संकटमोचक शून्य महाराज’
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टीवी पर दिखाई जा रही सौ लाख करोड़ रुपए की भारी-भरकम संख्या में 1 का अंक शादी-ब्याह में सजे-धजे दूल्हे सरीखा अलग ही चमक रहा था। फ़िज़िकल सोशल डिस्टेंसिंग को धता बताकर, उसके साथ सटकर खड़े ढेर सारे ‘शून्य’, बारातियों की एक अनपेक्षित, अनुशासित लंबी कतार प्रतीत हो रहे थे। इससे पहले कि मैं बारातियों की सही संख्या का पता लगा पाता, टीवी स्क्रीन पर से वह दृश्य ही गायब हो गया था। वैसे भी, शैतान की आंत जैसी किसी संख्या में प्रयुक्त शून्य अगर स्पष्ट बहुमत से बढ़कर क्लीन स्वीप वाली स्थिति में आ जाएं तो उन्हें जल्दी से गिन पाना मेरे जैसे किसी भी आम आदमी के लिए परेशानी का सबब बन जाता है।

दरअसल, लालकिले की प्राचीर या फिर चुनावी रैली के किसी मंच से की जाने वाली लाखों-करोड़ों रुपये की लागत वाली लोकलुभावन योजनाओं की घोषणाएं हों या फिर महज वादे ही, एकबारगी तो नसों में दौड़ते फिरने वाले खून की रवानगी बेतरह बढ़ा ही देते हैं। यह बात दीगर है कि बक़ौल गालिब कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक ।

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बचपन में गणित की कक्षा में इकाई, दहाई, सैंकड़ा से गुजरकर लाख, दस लाख, करोड़ तक पहुंचते-पहुंचते हिम्मत जवाब देने लगती थी। स्कूली दिनों में संख्याओं को अंकों से शब्दों, और शब्दों से अंकों में बदलने में गलती होने पर गणित के मास्साब के हाथों पिटना आम बात थी। बालमन समझ नहीं पाता था कि इतनी बड़ी संख्याएं पढ़ाने का औचित्य क्या है? तब रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बनने वाली चीजों मसलन टाफियों, खिलौनों, कंचों, पतंगों, कापियों-किताबों आदि की संख्या इकाई-दहाई के अंकों तक सिमटकर रह जाती थी। स्कूल की महीने भर की फीस बमुश्किल सौ का आंकड़ा छू पाती थी। अलबत्ता, प्रश्नपत्र ज़रूर पूरे सौ नंबर का होता था और सभी प्रश्नपत्रों के कुलांक हज़ार के आंकड़े से काफी नीचे रह जाते थे।

हिन्दी के मास्साब ने जब पर्यायवाची शब्दों के बारे में बताया तो पता चला कि जिस शून्य को हम लोग मज़ाक-मज़ाक में कभी-कभार अंडा भी कह देते थे, दरअसल वह शून्य का अघोषित, असंवैधानिक पर्यायवाची था। शून्य को गलती से भी ज़ीरो कह देने पर मास्साब के विशुद्ध हिन्दी-प्रेम का प्रकटीकरण हमारे कोमल गालों पर थप्पड़ के रूप में होता था। यदा-कदा परीक्षा में प्राप्त अंकों का खाता तक खुलवा सकने में असमर्थ रहने पर, अनुभव की प्रयोगशाला से गुजरने के बाद हमारी तंग बुद्धि में यह बात अच्छे से बैठ गई थी कि शून्य का एक पर्यायवाची पिता जी के हाथों होने वाली ‘अप्रत्याशित पिटाई’ भी होता है। बड़े होकर ‘ही इज़ अ बिग ज़ीरो’ टाइप के वाक्यों से पता चला कि शून्य शब्द का एक अन्य पर्यायवाची ‘हिकारत’ भी होता है। बहरहाल, शून्य की ‘फेस वैल्यू’ से अधिक उसकी ‘प्लेस वैल्यू’ पर भरोसा करने वाले राजनीतिज्ञों के लिए शून्य का एक पर्यायवाची ‘संकटमोचक’ भी है।

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