महज अभिनेता नहीं, अभिनय की मिसाल
डी.जे.नंदन
फिल्म ‘कल्कि 2898 एडी’ में अमिताभ बच्चन के अभिनय की खूब चर्चा हुई है। समीक्षक तो यहां तक कह रहे हैं कि अमिताभ न होते तो प्रभाष फिल्म को खींचने में हांफ जाते। सचमुच अमिताभ बच्चन को महज अभिनेता नहीं, अभिनय का महाविद्यालय यानी सीख-प्रेरणा का स्रोत कहा जा सकता है। विशेषकर उम्र के इस पड़ाव में अमिताभ नयी उम्र के कलाकारों के साथ अभिनय की नई-नई ऊंचाइयां छू रहे हैं। हालांकि 1971 में आयी फिल्म ‘आनंद’ और 1973 में आयी ‘जंजीर’ में भी अमिताभ ने दिखा दिया था कि उनमें अभिनय की बड़ी संभावनाएं निहित हैं। लेकिन जंजीर का विजय खन्ना और आनंद के डॉ. भास्कर बैनर्जी अपने अभिनय की प्रतिभा का जलवा बिखेर पाते, इसके पहले ही उन्हें उस समय की इंडस्ट्री के फार्मूला फिल्मकारों ने हाइजैक कर लिया और एक दशक से ज्यादा समय तक उनकी अभिनय प्रतिभा मारधाड़ वाली फिल्मों में लगाते रहे।
फिल्में जिनमें एक्टिंग बनी मिसाल
फिर भी ‘शोले’, ‘अमर अकबर एंथोनी’, ‘चुपके चुपके’, ‘शक्ति’, ‘सिलसिला’ और ‘अग्निपथ’ जैसी फिल्मों में रह-रहकर अमिताभ की अभिनय प्रतिभा दिख ही जाती थी। लेकिन साल 2005 में हेलेन केलर के जीवन से प्रभावित संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘ब्लैक’ में अमिताभ ने अपने अभिनय की श्रेष्ठता से चकित कर दिया। एक नेत्रहीन और जिद्दी लड़की मिशेल के टीचर देबराज सहाय के रूप में अमिताभ का अभिनय किसी मिसाल से कम नहीं था। वह फिल्म में टीचर कम व अभिनय के जादूगर ज्यादा लगते हैं। एक एंग्लो-इंडियन दंपति जब उन्हें अपनी देख-सुन न पाने वाली बेटी पढ़ाने के लिये सौंप देते हैं, तो मानो वह उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने को अपना पूरा वजूद ही दांव पर लगा देते हैं।
‘पा’ और ‘पीकू’ के जीवंत किरदार
उम्र के इस पड़ाव में अमिताभ का अभिनय असरकारक है। चाहे जितना जटिल और अटपटा किरदार रहा हो, अमिताभ को दे दीजिये यादगार बन जाएगा। वह उसमें जान फूंक देंगे। आर बाल्की की फिल्म ‘पा’ में तो उन्होंने अपने अभिनय से ही नहीं, बल्कि मेकअप कैरी करने के मामले में भी इतिहास रच दिया। विद्या बालन और अभिषेक बच्चन के साथ उन्होंने फिल्म में एक ऐसे बच्चे का रोल किया जिसकी बायोलोजिकल उम्र तो बारह साल थी लेकिन प्रोजोरिया बीमारी होने के कारण उसका शरीर सत्तर साल के आदमी के बराबर था। अमिताभ ने इस किरदार के अभिनय में मानो कला को समर्पण कर दिया। दीपिका पादुकोण और इरफ़ान के साथ ‘पीकू’ में भी उन्होंने पाचन की समस्या से ग्रस्त एक ऐसे बंगाली का अभिनय किया, जिसे देख कई बंगाली समीक्षक कह चुके कि कोई बंगाली कलाकार भी किसी बंगाली का इतना जीवंत अभिनय शायद ही कर पाता।
‘मोहब्बतें’ से शुरू की नई पारी
अपने अभिनय का यही सफ़र अमिताभ ने बीते जून माह के अंत में आयी फिल्म ‘कल्कि 2898 एडी’ में भी जारी रखा है। दमदार आवाज़ और कद-काठी की बदौलत बिग बी ने इस फिल्म में अश्वत्थामा के किरदार को निभाया। माना जाता है कि उन्होंने अभिनय की यह तीसरी और नई पारी ‘मोहब्बतें’ से शुरू की थी। मोहब्बतें में उन्होंने अपने किरदार को ऐसे परफॉर्म किया कि यूएसपी बन गया।
अभिनय का असीमित रेंज
शाहरुख़-सलमान की फिल्मों में एक ज़िंदादिल पिता का किरदार अदा करना हो या फिर ‘सरकार’ जैसी फिल्मों में सीरियस माफिया डॉन का रोल निभाना हो। चाहे किसी सीरीज में ‘गॉडफादर’ सदृश किरदार निभाने की बात हो या हलकी-फुल्की कामेडी की। अमिताभ बच्चन अब इस सबकी कभी परवाह नहीं करते कि उनकी इमेज में कोई स्टेटमेंट है या इसकी कोई दिशा ही नहीं है। यही वजह है कि पलकें उठाने में भी अपनी ताकत प्रदर्शित करने वाले ‘सरकार’ के अमिताभ ‘पीकू’ के एक चिड़चिड़े स्वभाव के बंगाली पिता में पूरी तरह घुल-मिल गए हैं। अमिताभ को रोल युवाओं के साथ मिले या फिर ‘ऊंचाइयां’ जैसी फिल्मों में बुजुर्गों के साथ, उन्हें शायद ही कोई फर्क पड़ता हो। अमिताभ की मंजी हुई और विविधता भरी अभिनय प्रतिभा, लगता है दिन-पर-दिन निखरती ही जा रही है। -इ.रि.सें.