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कलकत्ता से भी जुड़ी हैं नूरजहां की यादें

10:17 AM Sep 21, 2024 IST

जयनारायण प्रसाद
‘मल्लिका-ए-तरन्नुम’ कही जाने वाली गायिका व अभिनेत्री नूरजहां का रिश्ता कभी कलकत्ता से भी था।‌ उनका परिवार कलकत्ता में वर्ष 1930 में आया, तब नूरजहां की उम्र थीं महज़ छह साल। चार दशकों से भी ज्यादा समय तक सिनेमा से जुड़ी रही नूरजहां की पैदाइश 21 सितंबर, 1926 को हुई। उनका जन्मस्थान कसुर (अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में) था। नूरजहां बचपन से ही काफी खूबसूरत थीं। तब कलकत्ता में साइलेंट फिल्में खूब बनती थीं जिनके लिए ‘न्यू थिएटर स्टूडियो’ एक जानी-मानी जगह थीं। कलकत्ता के अलावा दूसरी जगह तत्कालीन लाहौर थी, जहां लोग सिनेमा में काम करने का ख़्वाब देखा करते थे। उन दिनों लोग दोनों शहरों में आसानी से आया-जाया करते रहते थे। गायिका नूरजहां को पंजाबी के अलावा उर्दू और सिंधी जुबान अच्छी तरह आती थीं। हिंदी में भी वह पारंगत हो गई थीं।

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बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट आगाज़

अपने फिल्मी कैरियर में करीब दस हजार गानों को गाने वाली नूरजहां की पहली पंजाबी फिल्म थीं ‘पिंड दी कुड़ी’ (1935) जिसमें वे बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट दिखाई पड़ी थीं। केडी मेहरा के निर्देशन में बनी फिल्म लाहौर व कलकत्ता में रिलीज हुई।

क्लासिकल सिंगिंग की ट्रेनिंग

इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि गायिका नूरजहां को कलकत्ता में क्लासिकल सिंगिंग की खास ट्रेनिंग उस्ताद गुलाम मोहम्मद और कज्जनबाई देते थे। ग्यारह साल की गायिका नूरजहां ने ठुमरी, ध्रुपद और खयाल गायन कलकत्ता में ही सीखा। गज़ल, नात और लोक गायिकी में भी नूरजहां की पकड़ मजबूत हो गई थीं।

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नूरजहां का स्टेज शो

1930-31 के दौर में कलकत्ता में दीवान सरदारी लाल की थिएटर कंपनी ‘दीवान पिक्चर्स’ थी, जहां साइलेंट फिल्में बनती थीं। सरदारी लाल लाहौर जाकर भी फिल्में बनाते थे। कहते हैं कि दीवान ने जब वहां नूरजहां को गाते हुए सुना, तो उनके अब्बा को समझाया - ‘आप अपनी बेटी को लेकर कलकत्ता शिफ्ट कर जाएं।’ परिवार को लेकर नूरजहां के अब्बा कलकत्ता आ गए।

फिर से लाहौर जाने की सलाह

कलकत्ता में नूरजहां को गाते हुए सुना गायिका मुख्तार बेगम ने जो ड्रामा निगार आगा हश्र कश्मीरी की पत्नी थीं। नूरजहां को मुख्तार बेगम ने भी कहा, ‘सुनो बेबी नूरजहां, तुम्हारी जगह लाहौर है। तुम लाहौर चली जाओ।’ इस तरह नूरजहां बाद में लाहौर चली गई।

पति शौकत रिजवी से परिचय

नूरजहां का परिवार कलकत्ता में 1930 से 1938 तक रहा। बाद में नूरजहां पाकिस्तान चली गई। कलकत्ता में नूरजहां का परिचय एक रोज़ यूपी स्थित आजमगढ़ के रहने वाले शौकत हुसैन रिजवी से हुआ जो वहां ‘मदान थिएटर’ में प्रोजेक्टर सहायक थे। बाद में रिजवी से नूरजहां का प्रेम हो गया। तब रिजवी डायरेक्टर बन गए थे। वर्ष 1941 में शौकत रिजवी लाहौर चले गए, साथ में नूरजहां भी, जहां दोनों ने 1944 में शादी कर ली। फिल्मकार शौकत ने सन् 1942 में एक फिल्म बनाई थी ‘खानदान’, जिसमें प्राण और नूरजहां ने अभिनय किया था। बाद में तलाक भी हो गया। ‘आवाज़ दे कहां है’ गाने वाली ‘मल्लिका-ए-तरन्नुम’ नूरजहां 23 दिसंबर, 2000 को कराची में चल बसीं।

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