राजनीतिक बेरोजगारों का दर्द न जाने कोय
सहीराम
यह ठीक है जी कि बेरोजगारी बहुत है और इस बेरोजगारी से परेशान युवा आंदोलित भी बहुत हैं। बल्कि सीख देने वाले तो यह भी सीख देंगे कि यही मौका है राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को घेरने का, उनके सामने अपनी आवाज उठाने का और उन्हें चेतावनी देने का। पर यारो उनका भी दर्द समझो जो इधर नए-नए बेरोजगार हो रहे हैं। हम तो पुराने बेरोजगार हैं। हमें तो आदत है बेरोजगार रहने की। माता-पिता से लेकर रिश्तेदारों तक की कड़वी बातें सुनने की, उनके तिश्ने-ताने सुनने की, उनकी शिकायतें और उलाहने सुनने की।
लेकिन यह नए हैं। उन्हें आदत नहीं है बेरोजगारी सहने की, उपेक्षित होने की। भले ही यह कल तक हमारे बेरोजगार होने का उपहास उड़ाते थे, बेरोजगारों की अनदेखी करते थे, उनसे बचके रहने की कोशिश करते थे। बल्कि कई बार तो कोशिश उन्हें ठगने की भी होती थी। लेकिन हम उन जैसे नहीं हो सकते। वे नेता हैं, वे नए-नए बेरोजगार हुए हैं। अभी सदमे में हैं। हम तो आम जन हैं। उन्होंने हमारा दर्द नहीं समझा तो क्या हुआ, हम उनका दर्द समझ सकते हैं। हमें समझना भी चाहिए। अगर हम नहीं समझेंगे तो हममें और उनमें फर्क क्या रह जाएगा।
हमें उम्मीद है कि पांच साल बाद बेरोजगार होकर अब उन्हें अग्निवीरों का दर्द समझ में आ जाएगा। अब पता चल रहा है कि फौज में ही नहीं, राजनीति में भी अग्निवीर योजना आ चुकी है। पहले कंपनियों और फैक्टरियों में छंटनी होती थी, अब राजनीति में भी छंटनी होती है। पहले कंपनियां और फैक्टरियां बंद होती थीं तो मजदूर बेरोजगार हो जाते हैं। अब चुनाव आते हैं तो नेता बेरोजगार हो जाते हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि अब उन्हें मजदूरों का दर्द समझ में आ जाएगा। किसानी के बारे में कहा जाता है कि सालभर मेहनत करने के बाद भी किसान को भरोसा नहीं होता कि फसल घर आ जाएगी। अब पांच साल बाद नेता को भी भरोसा नहीं रहता कि वह फिर टिकट पा जाएगा। उम्मीद करनी चाहिए कि अब उन्हें किसानी का दर्द समझ में आ जाएगा।
वैसे तो आजकल नौकरियां लगती ही नहीं हैं, कुछ उम्मीद बंधती है तो पेपर लीक हो जाते हैं। फिर भी अगर पांच हजार उम्मीदवारों मे से जब पांच चुने जाते हैं तो दूसरों को कैसा महसूस होता होगा, उस दर्द को अब नेता भी समझ सकेंगे। पांच साल तक जिसे यह लगता रहा कि वह सातवें आसमान पर है, वह अचानक धरती पर आ गिरता है। पता चलता है जी कि टिकट कट गया। टिकट कटना काफी खराब मुहावरा है। बड़े-बड़े मंत्रियों संतरियों के टिकट कट जाते हैं। वे बेरोजगार बनकर रह जाते हैं। बेरोजगार इसे अपना अपमान न मानें। उन्हें प्रतिद्वंद्वी भी न मानें। हो सके तो उनका दर्द समझें।