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सामान्य वर्ग की 4 में से किसी भी सीट पर नहीं उतारा जाट उम्मीदवार

11:16 AM Sep 11, 2024 IST
सामान्य वर्ग की 4 में से किसी भी सीट पर नहीं उतारा जाट उम्मीदवार

जसमेर मलिक/हप्र
जींद, 10 सितंबर
सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी ने जींद की जाटलैंड में टिकटों के मामले में जाटों को पूरी तरह ना कर दिया है, जबकि 2014 और 2019 में जींद जिले में भाजपा ने जाट समुदाय को दो सीट दी थी। यही नहीं जींद जिले के अपने नेताओं पर भी भाजपा ने ज्यादा भरोसा नहीं किया है। जिले की 5 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 3 पर जींद जिले से बाहर के प्रत्याशी चुनावी दंगल में उतारे हैं।
यह स्थिति तब है, जब जींद जिले के सफीदों विधानसभा क्षेत्र से आज तक किसी बाहरी को सफीदों के लोगों ने विधानसभा में नहीं भेजा है, जबकि नरवाना में 1977 की जनता पार्टी की आंधी में भी जींद जिले से बाहर के जेके शर्मा बुरी तरह से चुनाव हारे थे।
भाजपा ने विधानसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों की मंगलवार को अपनी दूसरी सूची जारी की। इसमें नरवाना आरक्षित विधानसभा क्षेत्र से पूर्व मंत्री कृष्ण बेदी और जुलाना से कैप्टन योगेश को प्रत्याशी बनाया गया है। इसके साथ ही भाजपा ने जींद की जाटलैंड में जाट समुदाय को टिकटों के मामले में पूरी तरह ना कर दी है। जिले की 5 में से 4 विधानसभा सीट सामान्य वर्ग की हैं। इनमें किसी पर भी भाजपा ने जाट समुदाय को कहीं से भी टिकट नहीं दी है।
जाटलैंड कहलाने वाले जींद जिले की सबसे बड़ी जाट बहुल सीट उचाना है, जहां से भाजपा ने ब्राह्मण समुदाय के देवेंद्र अत्री और जुलाना से पिछड़ा वर्ग के कैप्टन योगेश को टिकट दी है। एक भी जाट को प्रत्याशी नहीं बनाकर बीजेपी ने जींद जिले में अपनी चुनावी रणनीति साफ कर दी है कि वह जाटों के सहारे नहीं है। बीजेपी ने जातीय समीकरणों को साधने का अपनी तरफ से प्रयास किया है।
किसान आंदोलन के बाद जींद जिले में भाजपा को लगा कि जाटों की बजाय अन्य पर दांव लगाना उसके लिए ज्यादा फायदेमंद होगा। यह चुनावी नतीजे बताएंगे कि भाजपा की यह बदली हुई रणनीति जींद जिले में सफल रही या औंधे मुंह गिरी।
इतिहास को जानते हुए भी भाजपा ने लिया जोखिम सफीदों विधानसभा क्षेत्र से आज तक कोई भी बाहरी प्रत्याशी विधानसभा में नहीं पहुंचा।
इनमें 2014 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की बहन डॉ. वंदना शर्मा बाहरी होने के कारण चुनाव हारी थीं, तो खुद रामकुमार गौतम, जिन्हें भाजपा ने इस बार सफीदों से प्रत्याशी बनाया है, 1991 में निर्दलीय उतरे थे और हार गये थे।
1987 में सफीदों से चौधरी देवीलाल की लोकदल ने बाहरी रामचंद्र जांगड़ा को प्रत्याशी बनाया था और उस वक्त जांगड़ा की जमानत जब्त हुई थी।
2005 में कांग्रेस ने जुलाना विधानसभा क्षेत्र के कर्मवीर सैनी को सफीदों से प्रत्याशी बनाया था, और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
इसी तरह नरवाना विधानसभा क्षेत्र से जनता पार्टी की आंधी के बावजूद जींद जिले से बाहर के जेके शर्मा बुरी तरह से चुनाव हारे थे।

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5 में से 3 विधानसभा सीटों पर उतारे बाहरी उम्मीदवार
भाजपा ने टिकटों के मामले में जींद जिले के अपने नेताओं पर ज्यादा भरोसा नहीं किया है। पार्टी ने जींद जिले की 5 सीटों में से 3 पर बाहरी उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। नरवाना से पार्टी उम्मीदवार कृष्ण बेदी 2014 में अंबाला जिले की शाहाबाद विधानसभा सीट से भाजपा टिकट पर विधायक और मनोहर सरकार में मंत्री बने थे। 2019 में वह शाहबाद में जजपा के रामकरण काला से चुनाव हार गए थे। शाहाबाद के मतदाताओं द्वारा नकारे गए कृष्ण बेदी को इस बार भाजपा ने जींद जिले के नरवाना आरक्षित विधानसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया है। पहले भाजपा ने सफीदों से रामकुमार गौतम को उम्मीदवार बनाया, जो हिसार जिले के नारनौंद के हैं। उनका सफीदों में बाहरी होने के कारण शुरुआती दौर में खासा विरोध भी हो रहा है। अब भाजपा ने जुलाना से कैप्टन योगेश बैरागी को चुनावी दंगल में उतारा है, जो मूल रूप से पलवल जिले के हैं और पिछले काफी समय से सफीदों में रह रहे हैं।

2014, 2019 से अलग रणनीति
जींद में भाजपा ने चुनावी रणनीति साल 2014 और 2019 के मुकाबले पूरी तरह से बदल दी है। 2014 में भाजपा ने उचाना से जाट समुदाय की प्रेमलता को प्रत्याशी बनाया था और प्रेमलता ने इनेलो के दुष्यंत चौटाला को 8 हजार मतों से हराया था। जुलाना से तब भाजपा ने जाट समुदाय के संजीव बुआना को मैदान में उतारा था, मगर वे इनेलो के प्रमेंद्र ढुल से हार गए थे। 2019 में भाजपा ने जुलाना से जाट समुदाय के प्रमेंद्र ढुल को मैदान में उतारा था, मगर लगातार दो बार के विजेता ढुल को जजपा के अमरजीत ढांडा ने हरा दिया था। उचाना से भाजपा ने पिछले चुनाव में जाट समुदाय की प्रेम लता को उम्मीदवार बनाया था, मगर वे जजपा के दुष्यंत चौटाला से 48 हजार मतों के बड़े अंतर से हार गई थीं। इस बार भाजपा ने जींद जिले में जाट समुदाय को टिकट देने के मामले में अपने हाथ पूरी तरह पीछे खींच लिए हैं।

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