मैतेई परंपरा पर निहाल सादगी की कायम मिसाल
हेमंत पाल
रणदीप हुड्डा को फिल्मों में अलग तरह का अभिनेता माना जाता है। उन्होंने फिल्मों में विभिन्न तरह के किरदार निभाए और अपनी एक ऐसी पहचान बनाई कि उन्हें किसी एक दायरे में नहीं बांधा गया। उन्होंने अपने अभिनय के साथ ही अपना विवाह भी कुछ इस तरह किया कि उनकी मिसाल दी जा रही है। एक तरफ जब फिल्म कलाकार अपने विवाह को इवेंट की तरह करके दिखावा करते हैं। जिन दर्शकों ने उन्हें सितारा बनाया उन्हीं से अपने विवाह के फोटो और वीडियो छुपाकर ऐसा आभासी आभामंडल रचा जाता है, जैसे वे सबसे अलग हों। पर, रणदीप ने जिस सादगी और बिना किसी दिखावे या छुपाव के अपना विवाह किया उसे बेहद सराहा जा रहा है।
मणिपुर की परंपरा और पोशाक
हुड्डा ने मणिपुर की अपनी प्रेयसी लिन लैशराम से वहां के परंपरागत मैतेई रीति-रिवाज के साथ विवाह किया। जब इस विवाह की तसवीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई, तब लोगों को जानकारी मिली। न कोई माहौल बनाया और न कुछ छुपाया गया। इस विवाह का सबसे बड़ा आकर्षण रहा दूल्हा और दुल्हन का लिबास। देश के ज्यादातर लोग मैतेई रीति-रिवाज से अनजान थे। दुल्हन लिन लैशराम की पोशाक में इतना सम्मोहन था कि जिसने भी तसवीरें और वीडियो देखे, सबका ध्यान उधर चला गया। लिन लैशराम ने अपनी शादी के लिए पोटलोई आउटफिट चुना, जिसमें वे बेहद खूबसूरत दिखाई दीं। मैतेई हिंदू दुल्हन अपनी शादी में पोटलोई या पोलोई ड्रेस ही पहनती हैं। यही उनका पारंपरिक परिधान है।
दोस्ती... फिर शादी का फैसला
रणदीप हुड्डा और लिन लैशराम दोनों पिछले चार साल से एक-दूसरे को डेट कर रहे थे। उनकी पहली मुलाकात नसीरुद्दीन शाह के थिएटर ग्रुप ‘मोटले’ में काम के दरम्यान हुई। उस समय रणदीप उनके सीनियर कलाकार थे। दोनों काफी समय अच्छे दोस्त रहे। दोस्ती गहरी हो गई तो उन्होंने इसे विवाह में बदलने का फैसला किया। कुछ दिन पहले दोनों ने साझा बयान में अपने रिलेशन को ऑफिशियल किया था। रणदीप और लिन ने इंफाल के शन्नापुंग रिसोर्ट में विवाह की सभी रस्में अदा कीं।
पोटलोई व धोती-कुर्ता
देश में हिंदू धर्म में कई छोटे-बड़े कई ऐसे समुदाय हैं, जिनका हिंदू परंपरा में अपना अलग रिवाज होता है। उन्हीं में से एक है मणिपुर के मैतेई समुदाय के रीति-रिवाज। एक्टर रणदीप हुड्डा ने अपनी गर्लफ्रेंड लिन लैशराम से इसी रिवाज में विवाह किया। इस रस्म में दुल्हन के परिवार की बड़ी तीन महिलाएं दूल्हे की फैमिली का स्वागत करती हैं। केले के पत्ते से लपेटी हुई एक थाली में पान सुपारी रखकर स्वागत किया जाता है। दुल्हन खास पोटलोई परिधान पहनती हैं और दूल्हा सफेद धोती-कुर्ता।
वरमाला और नमस्ते की रस्म
तुलसी के पवित्र पौधों को साक्षी मानकर ही विवाह की समस्त रस्में पूरी की जाती हैं। इस मैतेई परंपरा के विवाह की रस्म के कई नाम हैं, जैसे कि मणिपुरी विवाह, लुहोंगबा और यम पानबा।
पैतृक गांव में खुशी का माहौल
रणदीप हुड्डा के इस विवाह से उनके पैतृक गांव जसिया के लोग भी खुश हैं। उन्होंने रणदीप के विवाह की जानकारी मिलने पर जमकर खुशियां मनाईं। गांव के सरपंच ओम प्रकाश हुड्डा ने कहा कि नव दंपति जब गांव में आएंगे तो उनके लिए आशीर्वाद समारोह किया जाएगा। रणदीप की चाची ने बताया कि रणदीप जमीन से जुड़े हुए हैं। जब गांव आते हैं तो सभी से हंसी-खुशी मिलते हैं। दो माह पहले भी वे गांव में आए थे तो सभी से मिले थे। अब वो बहुत बड़े आदमी हो गए।
‘मानसून वैडिंग’ से की शुरुआत
रणदीप हुड्डा ने अपनी अभिनय कैरियर की शुरुआत 2001 की मीरा नायर की फिल्म ‘मानसून वैडिंग’ से की थी। अच्छे अभिनय के बावजूद रणदीप को अगली फिल्म के लिए चार साल इंतजार करना पड़ा। साल 2005 में आई राम गोपाल वर्मा की फ़िल्म ‘डी’ में उन्हें अपने किरदार के लिए बहुत प्रशंसा मिली। इसके बाद हुड्डा ने कई फ़िल्में की जो चली नहीं। वर्ष 2010 में मिलन लुथरिया की फ़िल्म ‘वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई’ से उन्हें फिर खोई मंजिल मिली। इसके बाद उन्होंने साहिब-बीवी और गैंगस्टर (2011), जन्नत-2 (2012) और रंग रसिया (2014) में अहम किरदार निभाए। ‘लाल रंग’ में शंकर की भूमिका काफी सराही गयी। उन्हें सर्वाधिक प्रसिद्धि हाई-वे (2014), सरबजीत (2016) और स्वातंत्र्य वीर सावरकर से मिली।