नये बिंबों-कलेवर में नयी बात
सरस्वती रमेश
आंसू और उम्मीद के फीके-चटख रंगों से सजा है यह जीवन। एक तरफ दुख, दर्द, करुणा, बेबसी है तो दूसरी तरफ प्रेम, उत्साह, उत्सव और आशा भी है। इन्हीं मिले-जुले भावों की यात्रा है कविता संग्रह ‘चट्टान पर खिले फूल।’ इसे हरियाणा की कवयित्री नीरू मित्तल ‘नीर’ ने लिखा है। यह उनका तीसरा कविता संग्रह है।
यह उनकी लघु कविताओं का संग्रह है। अपने लघु रूप में भी कविताओं का भाव पूर्ण है। जीवन-मृत्यु, राग-विराग, अपने-पराये जैसे संबंधों की गहराई से विवेचना है। एक कविता में वो कहती हैं :-
कुछ अच्छे कर्म/ और ईश्वर में विश्वास ने/ कुछ दोस्त बना दिए/ पर सच बोलने की आदत ने/ बहुत से दुश्मन।
हर कविता में एक संदेश छुपा हुआ है, एक प्रेरणा छिपी हुई है। छोटी-छोटी ये अभिव्यक्तियां कई बार बड़ी बात कह जाती हैं। बिखरते रिश्ते, टूटता भरोसा, बदलाव की आंधी में ढहती परंपराएं, जीवन की क्षणभंगुरता जैसे गहरे अर्थों से परिपूर्ण कविताएं मन को छूती हैं। एक अन्य कविता में वो कहती हैं :-
जितना चाहा मैंने/ खुद को निखारना/ मेरी ‘मैं’ उतनी ही बढ़ती रही/ और एक दिन देखा/ ‘मैं’ तो थी बहुत बौनी/ और मेरी ‘मैं’ भीमकाय।
सीधे-सादे सरल शब्दों में कवयित्री ने अपनी बात कही है। कविताएं जैसे अपने से ही किये गए वार्तालाप के अंश हो। इस वार्तालाप में एक बेहतर समय, भली दुनिया, अच्छे संस्कार, विचार और अच्छे लोगों के होने का स्वप्न है। कविताएं ‘चलो दूसरे ग्रह’, ‘आसमान को छूकर आना है’ में यही चाहत उकेरी गई है।
कविताएं भाव विचार में तो सुंदर बन पड़ी हैं। मगर नई बातों, नए बिंबों, नए कलेवर का न होना अखरा।
पुस्तक : चट्टान पर खिले फूल कवयित्री : नीरू मित्तल 'नीर' प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 119 मूल्य : रु. 150.