कौशल विकास से ही कृत्रिम मेधा का नया क्षितिज
सुरेश सेठ
भारत के आकाश में भी शक्ति के नए क्षितिज उभर रहे हैं। ये क्षितिज कृत्रिम मेधा के हैं। ये क्षितिज सेमीकंडक्टर युग के हैं, इंटरनेट की ताकत के और प्रौद्योगिकी विकास के हैं। कृत्रिम मेधा, रोबोट युग, और डिजिटल होती दुनिया ने भारत में एक नया धरातल पैदा किया है। यह सुखद ही है कि वर्तमान समय में, भारत की प्रगति और विकास की सभी संभावनाओं को निजी क्षेत्र की द्रुत गति से जोड़ दिया गया है।
निजी क्षेत्र ने लागत घटाने और लाभ बढ़ाने के लिए कृत्रिम मेधा का इस्तेमाल शुरू कर दिया है, और रोबोट्स को इंसानों की जगह तैनात कर रहा है। ये सब नये युग की इन इंटरनेट शक्तियों द्वारा हासिल करने का प्रयास है। जहां तक डिजिटल दुनिया से पैदा होने वाली नौकरियों का संबंध है, उनकी कमी भारत में नहीं है। समस्या यह है कि युवा शक्ति इस काम के लिए पूरी तरह से प्रशिक्षित नहीं है, जिसके कारण योग्यता वाले कम मिल रहे हैं।
यदि हमें अपने श्रमबल को प्रशिक्षण से निपुण बनाना है तो अपनी शिक्षा के सभी पाठ्यक्रमों में बदलाव लाना चाहिए। शिक्षकों को भी इन नई संभावनाओं के क्षितिज से परिचित कराना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसीलिए, देश में नौजवानों की बेरोजगारी की वही पुरानी समस्या बनी हुई है। पारंपरिक बीए, एमए की डिग्रियां लेकर वे दफ्तर या सेवा क्षेत्र के काउंटर पर काम की तलाश कर रहे हैं। दूसरी ओर, जहां कृत्रिम मेधा और डिजिटल दुनिया में प्रशिक्षित कारीगरों की आवश्यकता है, वहां उनकी भारी कमी है।
इसके साथ ही हाल के दिनों में देश के विभिन्न भागों में अचानक प्राकृतिक आपदाओं का दौर शुरू हो गया है। हाल ही में, अचानक से लगातार बारिश आई, जो लोगों के लिए तबाही का सबब बनी। तीन या चार घंटे की बारिश के बाद महानगरों से लेकर उभरते हुए शहरों, जिन्हें स्मार्ट शहर कहा जाता है, तक तीन-चार फीट पानी जमा हो गया। सड़कें जलमग्न हो गईं। हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के कारण अनेक राष्ट्रीय सड़क मार्ग और सैकड़ों सड़कें बंद हो गईं। जो स्थिति पहले केरल के वायनाड में देखी जा रही थी, वह अचानक उत्तर भारत में भी दिखने लगी। इन परिस्थितियों में, आसमान से आई मुसीबतों का सामना करने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान कृत्रिम मेधा की सहायता की उम्मीद कर रहा है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान ने फैसला किया है कि आपदा जोखिम आकलन के लिए कृत्रिम मेधा का उपयोग करेंगे, जिससे आने वाली विपत्तियों को टालने या उनका सामना करने के लिए चाक-चौबंद रहा जा सके। असाधारण मौसम के कारण खेतों में फसलें खराब हो रही हैं, और बुवाई की समय-सारिणी गड़बड़ा जाती है। जब फसलें खेतों में पकने को तैयार हो जाती हैं, तो अचानक बारिश उनकी गुणवत्ता को प्रभावित करती है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान ने कहा है कि सबसे पहले कृत्रिम मेधा का इस्तेमाल भविष्य के आकलन और जोखिम का अनुमान लगाने में किया जाना चाहिए, ताकि इन क्षेत्रों में समस्याओं का सामना प्रभावी ढंग से किया जा सके।
निस्संदेह, राष्ट्रीय आपदा एक निरंतर चुनौती है, लेिकन उच्च तकनीक से जनधन की हानि को टाला जा सकता है। हाल ही में, हमने राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस मनाया, जिसमें इस बात पर विचार-विमर्श हुआ कि आपदा प्रबंधन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का कैसे उपयोग किया जा सकता है। इस परिदृश्य में, हम इसरो के योगदान की भी उम्मीद कर रहे हैं। प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं से निपटने के लिए साइबर क्राइम की सुरक्षा से लेकर अग्निशमन सेवा, नागरिक सुरक्षा, और आम जीवन की चौकसी के लिए भी इसका उपयोग किया जा सकता है। लेकिन यह तभी संभव है जब इन तकनीकी नवाचारों को एक नया क्षितिज देने के लिए निजी और सरकारी क्षेत्र दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण हो।
ऐसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए, सरकारी और निजी क्षेत्र के सहयोग और सामंजस्य पर भरोसा करना होगा। इसके लिए एक नई रूपरेखा की आवश्यकता होगी। निश्चय ही, इस रूपरेखा का आधारभूत लेखाजोखा विश्वविद्यालयों से प्राप्त होगा, लेकिन अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान को भी नया रूप देना पड़ेगा। इसरो को भी केवल अंतरिक्ष के क्षेत्र में नहीं, बल्कि धरती पर अचानक आई आपदाओं से प्रभावित आम लोगों के कष्टों का अंदाजा लगाकर उनके लिए नए समाधान की रचना करनी होगी। आपदा के बाद गहन मूल्यांकन की आदत को छोड़ना होगा। यदि हम अनुसंधान की बात करते हैं, तो यह मूल्यांकन सटीक और स्पष्ट भविष्यवाणियों के रूप में पहले से उपलब्ध होना चाहिए, ताकि तबाही के मंजर उत्पन्न होने से पहले सुरक्षा कवच सुनिश्चित किया जा सके।
लेखक साहित्यकार हैं।