बच्चों संग दोस्ताना अंदाज़ में नये दौर के स्मार्ट पापा
शिखर चन्द जैन
वर्षीय गुलाबचन्द ने बगल के कमरे से मुन्ने के रोने की आवाज सुनी तो अपने पोते की बहू को पुकारने लगे। शायद बहू ने उनकी आवाज नहीं सुनी सो उठकर वे देखने के लिए गए कि मुन्ना क्यों रो रहा है। वे पहुंचे तब तक मुन्ना चुप हो चुका था। उनका पोता, मुन्ने की नैपी बदल रहा था जबकि बहू रसोई में थी। उन्होंने अपनी पत्नी मुन्नीदेवी को इस दृश्य के बारे में बताया तो उन्हें भी अचरज हुआ। बोली, ‘देखो क्या जमाना आ गया...’।
वस्तुतः गुलाबचन्द और उनकी पत्नी मुन्नी देवी को ऐसे दृश्यों पर अचरज होना स्वाभाविक ही है। आज से बीस-बाईस साल पहले तक ‘पापा’ एक कमांडर टाइप आदमी हुआ करते थे। पापा का नाम लेते ही बच्चे के सामने एक कठोर और गुस्सैल व्यक्ति का अक्स उभरता था। दुकान या दफ्तर से लौटने का समय होते ही बच्चे खेलकूद और धमाचौकड़ी छोड़कर पढ़ने बैठ जाते थे। बच्चे शरारत करते थे तो मां डराती थी, ‘आने दे तेरे पापा को...।’ युवा बेटी-बेटे भी ‘पापा’ से डरते थे। बाप-बेटे में बिल्कुल जरूरी दो-चार बातें होती थीं बाकी सारा संवाद मां के माध्यम से ही होता। छोटे-मोटे मुद्दे भी मां के माध्यम से ही ‘पापा’ के सामने रखे जाते थे।
बाबूजी नहीं, ये पापा हैं!
अब ‘पापा’ बदल गए हैं। नए जमाने के ‘पापा’ दोस्त, मार्गदर्शक आदि रूपों में हैं। मॉडर्न ‘पापा’ पुराने जमाने के बाबूजी से बिल्कुल अलग हैं। अब पापा के लिए बच्चे की नैपी बदलना, रात को बच्चे की पुकार सुनकर जगना, गोद में खिलाना, सुंदर ड्रेसेज लाना, घुमाने-फिराने ले जाना आदि खुशी की बातें हैं। सच तो यह है कि नए जमाने के पापा ‘परफेक्ट पिता’ बन रहे हैं। इन्हें स्कूल जाते बच्चे के लिए टिफिन तैयार करने, यूनीफार्म पर प्रेस करने, ब्रश कराने जैसे कामों को करने में संकोच नहीं होता। नये युग के डैडी बच्चे के स्कूल से भी संपर्क में रहते हैं।
कमांडर नहीं, गाइड हैं
न्यू एज डैडी अपने बच्चे से पढ़ाई-लिखाई के बारे में चर्चा करते हैं, उसकी प्रॉब्लम्स समझते हैं और दूर करते हैं। अपनी बातें थोपने की बजाय बच्चे का दृष्टिकोण जानने की कोशिश करते हैं। अब पापा ‘कमांडर’ नहीं, ‘साथी’ होते हैं। अपने बच्चे के दोस्तों को अच्छी तरह जानते हैं मगर फ्रेंडशिप के मामले में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करते।
आज के पापा जानते हैं कि बच्चे को जरा स्पेस देना कितना जरूरी है। मार्कशीट में कम नम्बर देखकर डांटना अब पापा ठीक नहीं समझते। वे कम मार्क्स के कारणों की पड़ताल करने और सुधार लाने की सलाह देने में विश्वास रखते हैं।
दोस्त की भूमिका
नए जमाने का पापा पढ़े-लिखे, जिम्मेदार, संवेदनशील और दोस्ताना रुख रखने वाले हो गए हैं। डैडी दफ्तर से फोन करके बच्चों से बात कर लेते हैं और घर आने के बाद उनके साथ टीवी देखने, कैरम या ताश खेलने का समय रखते हैं। ये अपने किशोर होते बच्चों की मानसिक स्थिति, जरूरतें और इच्छाएं समझते हैं। बच्चों के शौक को ये नजरअंदाज नहीं करते, कोशिश करते हैं उन्हें पूरा करने की। इनकी इच्छा होती है अपने लाडले या लाडली को ‘हरफनमौला’ बनाने की।
अब खेल, राजनीति और बिजनेस तो छोड़िए फिल्मों, धारावाहिकों, हीरो-हीरोइनों के बारे में भी बाप-बेटी व बेटों में बातचीत होती है। किशोर वय के बेटे व बेटियां अपने ब्वायफ्रेंड या गर्लफ्रेंड के विषय में भी पापा से कुछ छिपाते नहीं। पापा भी उन्हें ज्यादा डिस्टर्ब नहीं करते। पापा जानते हैं कि आज के इंटरनेट जमाने में लड़के-लड़कियों में दोस्ती होना स्वाभाविक है। हां, ये अपनी राय जरूर दे देते हैं।
कुक भी बन जाते हैं पापा
पापा अच्छी तरह जानते हैं कि आपको जलेबी, पकौड़ी, खस्ता कचौरी, समोसा या मूंग के चीले से ज्यादा मजा गरमागरम ग्रिल सैंडविच, चीज़ बर्गर, पिज्जा, पास्ता, चाउमिन या कोर्न चाट में आता है। इसीलिए तो कई बार रसोई का काम वे संभाल लेते हैं ताकि बच्चों की माता को आराम भी मिल जाए और आपको अपनी पसंदीदा चीज बना कर खिला भी सकें। एक सर्वे से पता चला है कि 31 फीसदी न्यू एज पापा अपने बच्चों के साथ समय बिताने और उनके शौक पूरे करवाने के लिए कभी-कभी घर पर रह जाते हैं।
अब रोलमॉडल हैं डैडी
किसी ने बिल्कुल ठीक कहा है कि डैडी आजकल जीना नहीं सिखाते बल्कि जी कर दिखाते हैं। वे अब रोलमॉडल हैं। आज के डैडी स्मार्ट और वक्त के साथ चलने वाले हैं। संभवतः यही कारण है कि आज के बच्चे भी तेज-तर्रार होते हैं। दुनियादारी की समझ इन्हें जल्द ही आ जाती है। क्योंकि ये पापा के मार्गदर्शन, दोस्ताना साथ और पापा द्वारा बताए गए ‘सरवाइवल ऑफ फिटेस्ट’ के मंत्र को सीख बड़े होते हैं।