चालाकियों के डेरे, न मेरे-न तेरे
शमीम शर्मा
एक दिन शेरनी ने शेर से कहा कि वह अपने बदबूदार मुंह का इलाज करवाये। शेर को शर्म महसूस हुई तो उसने इस तथ्य को जांचने का निर्णय किया। सबसे पहले उसने एक भेड़ को बुलाकर पूछा- क्या मेरे मुंह से बदबू आ रही है? भेड़ ने ईमानदारी से कहा- हां महाराज! आपके मुंह से तो सचमुच बदबू आ रही है। शेर को भेड़ के जवाब पर गुस्सा आया और उसी क्षण उसे मार कर खा गया। अगले दिन शेर ने लोमड़ी को बुलाकर वही सवाल किया। लोमड़ी चालाक थी। वह दो पल तो चुप रही फिर जवाब दिया- महाराज! सख्त जुकाम के कारण मेरी तो नाक बंद है, मैं आपके सवाल का जवाब देने में असमर्थ हूं। उसकी चुप्पी और चालाकी ने लोमड़ी की जान बचाई।
यह लोककथा तो बरसों पुरानी है पर इससे मिली सीख हर छोटे-बड़े ने अपनी गांठ में बांध रखी है। संवाद के क्षणों में ये लोग मुंह में दही जमा कर बैठ जाते हैं या बगलें झांकने लगते हैं। चाटुकार कभी हवा के खिलाफ जाने की सोच भी नहीं सकता। वह हमेशा हवाओं के रुख के साथ दिशा बदलता है।
प्रेमियों का मनपसन्द एक फिल्मी गीत है- जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे। तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे। अब इस गीत को गुनगुनाने की फुर्सत कहां, अब उनके मन की बात न हो तो बात 35 टुकड़ों तक जा पहुंचती है। अब तो यह गाना सिर्फ जी-हुजूरी करने के काम आता है। दरअसल चाटुकारिता एक जबरदस्त स्किल है, पर ताज्जुब यह है कि इस स्किल का कोई प्रशिक्षण नहीं लेता, जीते-जीते खुद-ब-खुद आ जाती है। और वैसे भी खरी बात बोलने के लिये कलेजा चाहिये, तलवे चाटने का काम तो सिर्फ जीभ से किया जा सकता है। चाटुकार लोग अगर अपनी मेडिकल जांच करवायें तो उनकी रीढ़ की हड्डी गायब ही मिलेगी। जहां चालाकियों के डेरे होते हैं वहां लोग मेरे मुंह पर मेरे और तेरे मुंह पर तेरे होते हैं।
चापलूसी के सिक्के हर युग में चलते हैं और जब तक यह धरा रहेगी इन सिक्कों की खनक बरकरार रहेगी। पर कहावत है कि वैद्य और वजीर यदि हां में हां मिलाने लग जायें तो सर्वनाश सुनिश्चित है।
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एक बर की बात है अक जंगल मैं एक भैंस भाज्जी जा थी। एक चूहे नैं बूज्झी- ए क्यां तै भाज्जी जावै है? भैंस बोल्ली- पुलिस आले हाथी पकड़ण आये हैं। चूहा बोल्या- तो तेरै के रड़क है? भैंस हांफते होये बोल्ली- ज्यै मेरे ताहिं पकड़कै लेगे तो बीस साल सिद्ध करण मैं लाग ज्यैंगे अक मैं हाथी नहीं, भैंस हूं।