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नीम और अमलतास

10:44 AM May 19, 2024 IST

दिविक रमेश

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देखा था मैंने
होकर थोड़ा उत्सुक,
पीली लड़ियों की
नई-नई सौगात लिए
कैसे तो
डाले हुआ था बाहें
अमलतास
सफेद फूलों को झारते
नीम के अंग में।
नीम भी तो,
मरा जा रहा था सजाने को,
सहेजने को
अमलतास के उपहार को
गहरे हरे रंग के
अपने गीले पटल पर।
देखा था मैंने।
हरा, हरा है
पीला, पीला है
नीम, नीम है
अमलतास, अमलतास,
पर दो क्यों नहीं हैं वे,
सोचता हूं
और खुद
उन दोनों में
विलीन हो जाता हूं।

फल तो आए
फूल गए तो गए
फल तो आए।
भाव यह
मेरे मन का था।

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जाना अगर फलीभूत हो
तो जश्न मनाता है वृक्ष।

कहा था वृक्ष ने।
आदमी सोच रहा था
जो कि मैं था।
प्रकृति
चूम रही थी मुझे
आलिंगन में लिए
जैसे कि बच्चा हूं मैं।

जबकि मैं दौड़कर
जाना चाह रहा था
आदमियों की दुनिया में,
मुझे बताना था
वृक्ष का कहा।
छूटने की
पूरी कोशिश कर रहा था मैं
और प्रकृति थी
कि छोड़ ही नहीं रही थी।

बिलकुल
मां की तरह।

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