बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की जरूरत
जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा मंत्रिपरिषद की बैठक की अध्यक्षता करते हुए ‘विकसित भारत : 2047’ के लिए दृष्टि पत्र और अगले पांच वर्षों के लिए एक विस्तृत कार्ययोजना पर विचार-मंथन किया गया। ‘विकसित भारत’ के लिए यह ‘रोडमैप’ दो साल से अधिक की गहन तैयारी का परिणाम है। इस रोडमैप को तैयार करने में देश के विभिन्न मंत्रालयों, राज्य सरकारों, शिक्षाविदों, उद्योग संगठनों, नागरिक समाज, संस्थाओं, वैज्ञानिक संगठनों के साथ व्यापक परामर्श के लिए आयोजित विभिन्न स्तरों पर करीब 2,700 से अधिक बैठकों, कार्यशालाओं और सेमिनारों के साथ युवाओं से प्राप्त सुझावों की अहम भूमिका रही है। विकसित भारत के लिए इस रोडमैप के लक्ष्यों में आर्थिक विकास, सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी), जीवन को आसान बनाना, व्यापार करने में आसानी, बुनियादी ढांचा और सामाजिक कल्याण जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
29 फरवरी को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2023-24 की अक्तूबर से दिसंबर के तिमाही में देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 8.4 फीसदी की तेज दर से बढ़ा है। अब एनएसओ ने चालू वित्त वर्ष 2023-24 के लिए विकास दर का अनुमान बढ़ाकर 7.6 फीसदी कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि विगत 10 वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था दुनिया की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गई है। माना जा रहा था कि भारत 2026 में जापान को पीछे कर दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। पिछले दिनों भारतीय अर्थव्यवस्था पर जारी विस्तृत रिपोर्ट ‘द इंडियन इकोनॉमी ए रिव्यू’ में कहा गया है कि वर्ष 2027 साल में ही भारतीय अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी और भारत आर्थिक आकार के लिहाज से अमेरिका व चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। पिछले एक दशक में साहसिक आर्थिक निर्णयों ने देश की आर्थिक बुनियाद को मजबूत बना दिया है।
भारत के पास आज टिकाऊ विकास के अभूतपूर्व अवसर हैं। तेजी से बढ़ते भारतीय बाजार के कारण दुनिया के अधिकांश देशों की भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) की ललक, प्रवासी भारतीयों द्वारा पिछले वर्ष 2023 में 125 अरब डॉलर से अधिक धन भारत को भेजने के साथ नए आर्थिक तकनीकी विकास के लिए बढ़ते कदम, चीन के प्रति बढ़ती नकारात्मकता के मद्देनजर भारत नए वैश्विक आपूर्तिकर्ता देश के रूप में उभरकर सामने आया है।
दुनिया में मजबूत लोकतंत्र और स्थिर सरकार के रूप में भारत की पहचान, दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी, देश में उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन, बड़े पैमाने पर पूंजीगत खर्च, गैर-जरूरी आयात में कटौती और अर्थव्यवस्था के बाहरी झटकों से उबरने की क्षमता देश के टिकाऊ विकास की बुनियाद बन सकती हैं। शेयर बाजार भी दुनिया में ऊंचाइयों पर रेखांकित होते हुए दिखाई दे रहा है।
भारत द्वारा पिछले वर्ष 2023 में की गई जी-20 की सफल अध्यक्षता से भारत के लिए अब नए आर्थिक लाभों की शृंखला शुरू हो गई है। इससे भारत से निर्यात, भारत में विदेशी निवेश, भारत में विदेशी पर्यटन और भारत के डिजिटल विकास का नया क्षितिज सामने आ रहा है। ज्ञातव्य है कि वैश्विक स्तर पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट के रुझान के बीच भारत दुनिया के सर्वाधिक एफडीआई प्राप्त करने वाले 20 देशों की सूची में आठवें पायदान पर है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी मार्च, 2024 की शुरुआत में करीब 620 अरब डॉलर की ऊंचाई पर पहुंच गया है।
निस्संदेह, देश को कई आर्थिक चुनौतियों पर भी ध्यान देना होगा। देश के सामने डॉलर की तुलना में रुपये के गिरते हुए मूल्य की चुनौती भी है। भारत को आईएमएफ की उस चेतावनी पर भी ध्यान देना होगा जिसमें कहा गया है कि भारत में केंद्र और राज्यों का सामान्य सरकारी कर्ज जीडीपी के 100 फीसदी के पार पहुंच सकता है। साथ ही भारत के आर्थिक रणनीतिकारों को वैश्विक आर्थिक प्रतिकूल परिस्थितियों के मद्देनजर रक्षात्मक रणनीति बनाने के लिए भी तैयार रहना होगा। कोशिश हो कि हमारे स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय नई पीढ़ी को भविष्य की जरूरतों से सुसज्जित करने के गढ़ बनें। छोटे और मध्यम उद्योगों, कृषि एवं हैंडीक्रॉफ्ट सेक्टर के लिए मार्केटिंग की नई रणनीति बनाई जाए। इससे रोजगार और निर्यात भी बढ़ेंगे।
हम उम्मीद करें कि विकसित भारत के लक्ष्य के साथ आने वाली सरकार आर्थिक और वित्तीय सुधार, कृषि और श्रम सुधार, शिक्षा और स्वास्थ्य की गुणवत्ता के साथ-साथ मजबूत बुनियादी ढांचे की मजबूती पर भी ध्यान दे। ऐसे रणनीतिक कदमों से देश वर्ष 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और वर्ष 2047 तक दुनिया का विकसित राष्ट्र बनने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे सकेगा।
लेखक अर्थशास्त्री हैं।