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अमृत महोत्सव का अमृत

12:18 PM Aug 07, 2022 IST

अरुण नैथानी

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अमृत महोत्सव का एक मकसद यह भी है कि हम नई पीढ़ी को हमारे स्वतंत्रता सेनानियों-राष्ट्रवादियों तथा देशप्रेमियों के महान बलिदान से नई पीढ़ी को अवगत करा सकें। साहित्य अमृत ने अमृत महोत्सव के इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये विशेषांक निकाला है। हालांकि, संपादक लक्ष्मीशंकर व्यास ने अमृत महोत्सव से अमृत काल की ओर की एक बानगी दिखाते हुए देश की उपलब्धियों का भी जिक्र किया है। विशेषांक में साहित्य-संस्कृति, पत्रकारिता के अलावा विभिन्न राज्यों के स्वतंत्रता आंदोलन का विशद् विवरण दिया गया है। निस्संदेह, अंक संग्रहणीय है।

पत्रिका : साहित्य अमृत संयुक्त संपादक : डॉ. हेमंत कुकरेती प्रकाशक : साहित्य अमृत, आसफअली रोड, दिल्ली पृष्ठ : 254 मूल्य : रु. 150.

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सुनहरे सफर का सृजन

डॉ. महाराज कृष्ण जैन ने सृजन के सरोकारों को समृद्ध करने के लिये ‘शुभ तारिका’ का जो पौधा लगाया था वो आज स्वर्णिम सफर तय कर रहा है। शारीरिक सीमाओं के बावजूद उनके साहित्यिक अवदान की महक हरियाणा से लेकर पूर्वोत्तर तक महसूस की जाती है। ‘कृष्णांक-21’ में उर्मि कृष्ण के संपादन में जहां डॉ. महाराज कृष्ण जैन के सृजन के क्षेत्र में योगदान व व्यक्ति के रूप में भूमिका पर लेखकों के आत्मीय उद्गार हैं, वहीं साहित्य की विभिन्न विधाओं पर मंथन भी है। निस्संदेह, क्षेत्रीय रचनाकारों के लिये ‘शुभ तारिका’ उपयुक्त मंच साबित हुआ है।

पत्रिका : शुभ तारिका संपादक : उर्मि कृष्ण प्रकाशक : कृष्णदीप ए-14, शास्त्री कॉलोनी, अंबाला छावनी पृष्ठ : 86 मूल्य : रु. 15.

शोध-सृजन की अलख

कोरोना संकट से उबरते व महंगाई के दंश के बीच साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन निस्संदेह एक चुनौती है। शोध-सृजन एवं समीक्षा के लक्ष्यों को समर्पित पत्रिका ‘अलख’ के आठवें वर्ष का अंक तीन-चार गंभीर पाठकों की साहित्यिक रुचि को समृद्ध ही करता है जिसकी बानगी डॉ. नवज्योत भनोत के ‘संभावनाओं की दिशा तलाशें’ लेख में मिलती है। ‘जेंडर तथा यौनिकता विमर्श : इंसान के अस्तित्व की तलाश’ विचारोत्तेजक लेख में हेतु भारद्वाज समय के सवालों का विमर्श करते हैं। अंक में काशीनाथ सिंह की कहानियों पर मंथन है तो हिंदी कहानियों पर मार्क्सवाद के प्रभाव की भी चर्चा की गयी है।

पत्रिका : अलख संपादक : डॉ. अजय अनुरागी प्रकाशक : अलख, झोटावाड़ा, जयपुर पृष्ठ : 104 मूल्य : रु. 50.

साहित्य के आईने में समाज

हरियाणा साहित्य अकादमी की साहित्यिक पत्रिका हरिगंधा ने समय-समय पर विशिष्ट आयोजनों के जरिये कालजयी रचनाकारों का स्मरण किया है। इसी तरह 335वें अंक में भी मुंशी प्रेमचंद का भावपूर्ण स्मरण किया गया है। धरोहर खंड में प्रेमचंद की कहानी ‘बूढ़ी काकी’ सामाजिक विद्रूपताओं का चित्र उकेर कर पाठकों को द्रवित कर जाती है। उनके सृजन के सरोकारों का जिक्र संपादक की कलम से भी हुआ है। स्वामी विवेकानंद के महाप्रयाण के प्रसंगवश उस दिन का उद्वेलित करने वाला सांगोपांग विवरण है जिस दिन यह ज्ञान व योग का नक्षत्र अस्ताचल को चला गया।

पत्रिका : हरिगंधा संपादक : डॉ. चंद्र त्रिखा प्रकाशक : हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला पृष्ठ : 64 मूल्य : रु. 15.

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महोत्सव