Navratri 9th Day : भगवान शिव ने भी की थी देवी सिद्धिदात्री की आराधना, जानिए पूरी कथा
चंडीगढ़, 4 अप्रैल (ट्रिन्यू)
Navratri 9th Day : नवरात्रि के नौंवे यानि नवमी के दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, जो नवदुर्गा के नौ रूपों में से एक रूप हैं। वह दिव्य सिद्धियों और आशीर्वादों की दात्री मानी जाती हैं। सिद्धिदात्री का नाम स्वयं ही उनके गुणों का परिचायक है। "सिद्धि" का अर्थ है - परफेक्शन और "दात्री" का अर्थ है- देने वाली। इस प्रकार, देवी सिद्धिदात्री वह देवी हैं, जो अपने भक्तों को दिव्य सिद्धियों और आत्मज्ञान की प्राप्ति का वरदान देती हैं।
पूजा और महत्व
नवरात्रि के 9वें दिन यानी नवमी के दिन भक्त विशेष रूप से देवी सिद्धिदात्री का पूजन करते हैं, ताकि उन्हें सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हो सकें, जैसे की मानसिक शांति, भौतिक सुख और आत्मिक उन्नति। देवी के पूजन से आत्मबल मिलता है और व्यक्ति अपने जीवन में कोई भी कार्य करने के लिए सक्षम हो जाता है। उनके द्वारा दी गई सिद्धियां न केवल भौतिक जीवन में सुख और समृद्धि लाती हैं बल्कि वे आत्मिक उन्नति में भी सहायक होती हैं।
रूप और स्वरूप
देवी सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत आकर्षक और दिव्य है। वह एक हाथ में चक्र और दूसरे हाथ में गदा धारण करती हैं। उनके अन्य दो हाथों में शंख और कमल का फूल होता है। यह प्रतीक उनके सामर्थ्य और शक्ति को दर्शाते हैं। देवी के चेहरा पर एक अद्भुत आभा होती है और उनका रूप भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत होता है।
देवी सिद्धिदात्री की कथा
देवी पुराण के अनुसार, भगवान शंकर ने भी मां सिद्धिदात्री के आशीर्वाद से तमाम सिद्धियां प्राप्त की थी। सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवता और असुर भी देवी सिद्धिदात्री से ही सिद्धियों को प्राप्त करते हैं। मां की कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर मां गौरी का हुआ, जिसके कारण शिव-गौरी अर्द्धनारीश्वर भी कहलाते हैं।
देवी सिद्धिदात्री की एक प्रसिद्ध कथा है जो देवी महात्म्य में वर्णित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने देवी पार्वती से यह आशीर्वाद प्राप्त किया था कि वह संसार में अपनी सिद्धियां प्रदर्शित करेंगी। तभी से देवी सिद्धिदात्री का रूप प्रकट हुआ। यह रूप न केवल भगवान शिव के लिए बल्कि समस्त सृष्टि के लिए अत्यंत फलदायी और कल्याणकारी था।
मां सिद्धिदात्रि का स्तोत्र पाठ
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
ऐसे करें मां को प्रसन्न
नवरात्रि के नवमी वाले दिन कन्याभोज करवाया जाता है। इस दिन कन्याओं का विधि-विधान से पूजन करें। उन्हें चुनरी, प्रसाद और भेंट आदि दें। मां को प्रसन्न करने के लिए उन्हें तिल या आंवला का भोग जरूर लगाएं। मान्यता है कि इससे व्यक्ति को मृत्यु भय और अनहोनी घटनाओं से मुक्ति मिलती है।