गुजरात की तर्ज पर बन सकता है प्राकृतिक कृषि विकास बोर्ड
दिनेश भारद्वाज/ ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 14 अप्रैल
प्राकृतिक खेती के ‘आचार्य’ का फार्मूला गुजरात में कामयाब रहा। अब नायब सरकार भी गुजरात पैटर्न पर हरियाणा में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में आगे बढ़ रही है। माना जा रहा है कि गुजरात की तरह ही हरियाणा में भी प्राकृतिक खेती के लिए अलग से ‘प्राकृतिक कृषि विकास बोर्ड’ का गठन किया जा सकता है। नायब सरकार ने 2025-26 के दौरान प्रदेश में एक लाख एकड़ में प्राकृतिक खेती का लक्ष्य रखा है।
मूल रूप से हरियाणा निवासी और गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत की इस काम में नायब सरकार मदद लेगी। मनोहर सरकार भी आचार्य देवव्रत के सहयोग से किसानों को प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग दिलवा चुकी है। कुरुक्षेत्र गुरुकुल में आचार्य देवव्रत की टीम किसानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण भी दे रही है। इससे पहले हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहते हुए आचार्य देवव्रत ने पहाड़ी राज्य के किसानों को भी प्राकृतिक खेती की ओर आकर्षित किया था। हिमाचल में कई सेब उत्पादक किसान प्राकृतिक खेती को अपना चुके हैं।
प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों के लिए नायब सरकार ने नियमों को सरल कर दिया है। अभी तक दो एकड़ या इससे अधिक भूमि वाले किसानों को ही सब्सिडी दी जाती थी। अब एक एकड़ भूमि वाले किसान भी प्राकृतिक खेती अपना सकेंगे। प्राकृतिक खेती के लिए तैयार होने वाली खाद देसी गाय के गोबर और मूत्र से बनती है। इसीलिए किसानों को देसी गाय की खरीद के लिए 30 हजार रुपये का अनुदान दिया जाएगा। अभी तक सरकार की ओर से 25 हजार की मदद की जाती थी।
पीएम मोदी का विजन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्राकृतिक खेती पर काफी जोर दे रहे हैं। केंद्रीय बजट में भी इसके लिए विशेष फंड का प्रावधान किया है। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी की इच्छानुसार ही आचार्य देवव्रत ने गुजरात में प्राकृतिक खेती को एक मिशन के रूप में चलाया। नतीजतन, गुजरात में किसान 8 लाख एकड़ से अधिक भूमि में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। गुजरात के 23 लाख के करीब किसानों को जीरो-बजट खेती के प्रति ट्रेंड किया जा चुका है।
गुजरात में यह बदलाव
गुजरात में सरकार को प्राकृतिक खेती का आइडिया इतना पसंद आया कि वहां प्राकृतिक कृषि विकास बोर्ड का गठन किया है। यही नहीं, पंचमहल जिला के हलोल में पहला प्राकृतिक कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय की मंजूरी मिल चुकी है। आंकड़ों के हिसाब से देखें तो वर्तमान में केंद्र सरकार यूरिया और डीएपी पर सालाना 1 लाख 25 हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च करती है। प्राकृतिक खेती में यह लागत घटकर काफी कम रह जाएगी।
बढ़ाया गया खेती का लक्ष्य
पूर्व की मनोहर सरकार ने 2024-25 में 25 हजार एकड़ में प्राकृतिक खेती का लक्ष्य रखा था। नायब सरकार ने 2025-26 के बजट में इसे बढ़ाकर एक लाख एकड़ कर दिया है। साथ ही ऐसे किसानों के उत्पादकों की बिक्री का भी फार्मूला सरकार तैयार कर रही है। प्राकृतिक उत्पादकों की मांग और दाम अधिक होते हैं। ऐसे में खेती अपनाने वाले किसानों की आर्थिक आय भी बढ़ सकेगी।
बिना लागत जीवामृत खाद बनी ‘अमृत’
प्राकृतिक खेती में ‘जीवामृत’ सबसे अहम है। यह एक ऐसी खाद है, जो बिना किसी लागत के तैयार होती है। इसे देसी गाय का गोबर व मूत्र, कुछ दालें, गुड़ ओर केंचुओं के प्रसंस्करण से बनाया जाता है। यहां बता दें कि आचार्य देवव्रत कुरुक्षेत्र स्थित अपने गुरुकुल की 180 एकड़ भूमि में पिछले कई वर्षों से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। उनके यहां पढ़ने वाले िवद्यार्थियों को भी प्राकृतिक खेती से तैयार हुए उत्पाद ही परोसे जाते हैं। आचार्य देवव्रत का कहना है कि कीटनाशकों से प्रेरित या जैविक खेती के विपरीत, यह पूरी तरह से प्राकृतिक विधि है। यह ‘शून्य-बजट खेती’ किसानों को तो खुशहाल करेगी ही, साथ ही आम लोगों को भी अच्छे उत्पादक मिल सकेंगे।