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सांस्कृतिक अतीत के प्रति जागरूकता से उत्पन्न होती है राष्ट्र शक्ति : एनएन वोहरा

07:33 AM Oct 19, 2024 IST
सांस्कृतिक अतीत के प्रति जागरूकता से उत्पन्न होती है राष्ट्र शक्ति   एनएन वोहरा
नयी दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) में शुक्रवार को भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणे की ओर से  योजित संस्कृति अभिलेखों पर प्रदर्शनी के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा। - मानस रंजन भुई
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ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
नयी दिल्ली, 18 अक्तूबर
ताड़ व भोजपत्रों पर लिखी पांडुलिपियों की डिजिटल प्रतियां, दुर्लभ पुस्तकों की प्रतिकृतियां और महाभारत के युद्ध की संरचनाओं समेत इतिहास के कई पन्ने शुक्रवार को यहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में देखने को मिले। मौका था भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट (बीओआरआई), पुणे द्वारा आयोजित ‘द फ्यूचर ऑफ द पास्ट’ प्रदर्शनी का, जिसका उद्घाटन जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा ने आईआईसी अध्यक्ष श्याम सरन की उपस्थिति में किया। इसके साथ ही आईसीसी के सात दिवसीय कला महोत्सव का आगाज हुआ।
महाभारत में पांडवों की युद्ध संरचनाओं- अर्ध चंद्र व्यूह और वज्र व्यूह का चित्रण आकर्षण का केंद्र रहा। ये व्यूह दिखाते हैं कि कौरवों से मुकाबला करते समय पांडव योद्धा अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, अभिमन्यु और अन्य युद्ध के मैदान में कहां-कहां डटे थे।
आईआईसी के लाइफ ट्रस्टी वोहरा ने प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए कहा कि व्यापक राष्ट्रीय शक्ति सांस्कृतिक और सभ्यतागत अतीत के बारे में जागरूकता से उत्पन्न होती है। वोहरा ने कहा, ‘इन संग्रहों में हमारे देश की बौद्धिक संपदा शामिल है। किताबें, पांडुलिपियां ज्ञान के अमूल्य स्रोत हैं, हमारी सभ्यता की नींव हैं।’ उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय चेतना को पुनर्जीवित करने का हर प्रयास एक आकर्षक चुनौती है।
एनएन वोहरा ने कहा, ‘आज जब हम किसी दुश्मन के विदेशी आक्रमण को हतोत्साहित करने के लिए अपने देश को तैयार करने की बात करते हैं, तो हम राष्ट्रीय ताकत, व्यापक राष्ट्रीय शक्ति की बात करते हैं। यह शक्ति हमारे सांस्कृतिक अतीत के बारे में व्यापक जागरूकता से उत्पन्न होती है और हमारी भारी असमानता के बीच एकता की भावना में योगदान करती है। यह चेतना हमें एक साथ
लाती है।’
बीओआरआई के प्रदीप आप्टे ने कहा कि महाभारत संबंधी कार्य संस्थान का हॉलमार्क प्रोजेक्ट था। 22 सितंबर, 1966 को तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा जारी किए गए कार्य के बारे में आप्टे ने कहा, ‘यह 754 पांडुलिपियों के सावधानीपूर्वक चयन पर आधारित था।’

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