मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

जीएम फसलों की मंजूरी को बने राष्ट्रीय नीति

07:08 AM Aug 06, 2024 IST
Advertisement

पंकज चतुर्वेदी

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने जेनेटेकली मोडिफ़ाइड यानी जीएम सरसों की भारत में व्यावसायिक खेती करने की सरकारी मंजूरी के खिलाफ याचिका पर खंडित फैसला दिया। जहां न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना का आकलन था कि जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति यानी जीईएसी की 18 और 25 अक्तूबर, 2022 को सम्पन्न जिस बैठक में इसकी मंजूरी दी गई, वह दोषपूर्ण थी क्योंकि उसमें स्वास्थ्य विभाग का कोई सदस्य नहीं था और कुल आठ सदस्य अनुपस्थित थे। दूसरी ओर, न्यायमूर्ति संजय करोल का मानना था कि जीईएसी के फैसले में कुछ गलत नहीं है। उन्होंने जीएम सरसों फसल को सख्त सुरक्षा उपायों का पालन करते हुए पर्यावरण में छोड़ने की बात जरूर की। हालांकि, दोनों न्यायाधीश इस बात पर एकमत थे कि केंद्र सरकार को जीएम फसलों पर एक राष्ट्रीय नीति तैयार करनी चाहिए। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष जाएगा।
वैसे जीईएसी आनुवंशिक रूप से संवर्धित फसलों के लिए देश की नियामक संस्था है। लेकिन दो जजों की पीठ ने निर्देश दिया कि चार माह के भीतर केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय जीएम फसल के सभी पक्षों के परामर्श से जीएम फसलों पर राष्ट्रीय नीति तैयार करे जिनमें कृषि विशेषज्ञों, जैव प्रौद्योगिकीविदों, राज्य सरकारों और किसान प्रतिनिधियों सहित हितधारक शामिल हों। किसी से छुपा नहीं कि भारत में खाद्य तेल की जबरदस्त मांग है। साल 2021-22 में 116.5 लाख टन खाद्य तेलों का उत्पादन करने के बावजूद भारत को 141.93 लाख टन का आयात करना पड़ा। अनुमान है, अगले साल 2025 -26 में यह मांग 34 मिलियन टन तक पहुंच जाएगी। हमारे खाद्य तेल के बाजार में सरसों तेल की भागीदारी 40 फीसदी है। दावा किया गया कि यदि सरसों उत्पादन में जीएम बीज का इस्तेमाल करेंगे तो फसल 27 प्रतिशत अधिक होगी, जिससे तेल आयात खर्च कम होगा। हालांकि यह सोचने की बात है कि 1995 तक देश में खाद्य तेल की कमी नहीं थी। फिर बड़ी कंपनियां इस बाजार में आई। आयात कर कम किया गया और तेल का स्थानीय बाजार बैठ गया।
दावा यह भी है कि इस तरह के बीज से पारंपरिक किस्मों की तुलना में कम पानी, उर्वरक और कीटनाशकों की आवश्यकता होती है और मुनाफा अधिक। लेकिन जीएम फसलों, खासकर कपास को लेकर हमारे अनुभव बताते हैं कि ऐसे बीजों के दूरगामी परिणाम खेती और पर्यावरण के लिए भयावह हैं। समझना होगा कि जीएम फसलों को उत्पाद के मूल जीन को कृत्रिम रूप से संशोधित किया जाता है। आमतौर पर किसी अन्य जीव से आनुवंशिक सामग्री डाली जाती है जिससे उन्हें नए गुण दिए जा सकें जैसे अधिक उपज व पोषक तत्व, कम खरपतवार, कम रोग, कम पानी हो सकते हैं।
भारत में धारा सरसों हाइब्रिड-11 (डीएमएच-11) को देशी सरसों किस्म ‘वरुणा’ और यूरोपीय किस्म ‘अर्ली हीरा-2’ के संकरण से विकसित किया गया है। इसमें दो विदेशी जीन ‘बार्नेज’ और ‘बार्स्टार’ शामिल हैं, जिन्हें बैसिलस एमाइलोलिके फैसिएन्स नामक मृदा जीवाणु से पृथक किया गया है। दावा है कि इस बीज से उपज को 3-3.5 टन प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाया जा सकता है।
हमारे देश में अभी तक कानूनी रूप से केवल बीटी कपास एकमात्र जीएम स्वीकृत फसल है। बीते 17 सालों में कपास के बीज दावों पर खरे उतरे नहीं। बीटी बीज देशी बीज की तुलना में बहुत महंगा है और इसमें कीटनाशक का इस्तेमाल करना ही पड़ा। फसल ज्यादा नहीं, लेकिन हर साल बीज खरीदना मजबूरी हो गई। विकसित देशों में भी ऐसे बीजों से उर्वर क्षमता व पौष्टिक तत्व कम हुए हैं।
बीटी कॉटन बीज बनाने वाली कंपनी मोनसेंटो ने 1996 में अपने देश अमेरिका में बोलगार्ड बीजों का इस्तेमाल शुरू करवाया था। इसके नतीजे निराशाजनक रहे। दुनियाभर में कहीं भी बीटी फसल को खाद्य पदार्थ के रूप में मंजूरी नहीं मिली है। अमेरिका में मक्का और सोयाबीन के बीटी बीज कुछ खेतों में बोए जाते हैं, लेकिन इस उत्पाद को इंसान के खाने के रूप में इस्तेमाल पर पाबंदी है। यूरोप में भी इस पर सख्त पाबंदी है। ऐसे में भारत में सरसों तेल के लिए बीटी पर मंजूरी शक पैदा करती है।
जीएम बीजों से उत्पन्न सरसों के फूल मधुमक्खियों के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं। इस तरह के बीजों से उत्पन्न सरसों के फूलों में मधुमक्खियों को परागण तो मिलेगा नहीं, उलटे कुछ जानलेवा कीटों की वे शिकार हो जाएंगी। इससे उनके खत्म होने की आशंका है। वहीं जीएम बीज हमारे पारंपरिक बीजों के अस्तित्व के लिए खतरा है और अब बदले हुए नाम से इन्हें बैंगन-टमाटर आदि के लिए पिछले रास्ते से घुसाया जा रहा है।
बता दें कि केंद्र सरकार कोई दो साल पहले जीनोम एडिटेड टेक्नोलॉजी का उपयोग कर नई फसल प्रजातियां विकसित करने के शोध को मंजूरी दे चुकी है। चालाकी से जेनेटिकली मोडिफाइड के नाम पर जीन एडिटिंग तकनीक शब्द का इस्तेमाल किया गया। वैसे यूरोपीय यूनियन में अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि जीन एडिटिंग तकनीकी और जीएम फसल अलग नहीं। जाहिर है, अदालतें जब जीएम बीजों पर कोई फैसला देंगी तो जीनोम एडिटेड प्लांट्स के नाम से ये बीज बाजार में बिक रहे होंगे। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार गठित होने वाली कमेटी में इस नई तकनीक को यूरोपियन यूनियन की तरह जीएम ही मानना होगा।

Advertisement

Advertisement
Advertisement