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स्थानीयता में गुंथा राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव

07:44 AM Oct 04, 2024 IST

धीरज बसाक
भारत विविधताओं का देश है। फिर भी, देश में बहुत कम, यानी गिने-चुने ही ऐसे पर्व और परंपराएं हैं, जिनकी पूरे देश में एक जैसी मान्यता है और उन्हें मनाने का एक जैसा तरीका है। यहां तक कि होली और दिवाली जैसे हिंदुओं के दो सबसे बड़े त्योहार भी पूरे देश में एक समान उल्लास के साथ नहीं मनाए जाते। लेकिन दशहरा एकमात्र ऐसा त्योहार है, जो देश के हर कोने में अपनी स्थानीय परंपराओं के साथ पूरे जोश और उत्साह से मनाया जाता है। हम उत्तर और दक्षिण भारत के पांच सबसे मशहूर दशहरा आयोजनों की चर्चा करेंगे, जिससे पता चलेगा कि कैसे दशहरा देश का सबसे बड़ा अखिल भारतीय सांस्कृतिक आयोजन है।

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मैसूर का दशहरा

कर्नाटक का दूसरा सबसे बड़ा शहर मैसूर अपने महलों और विजयादशमी उत्सव के लिए जाना जाता है। यह दस दिनों तक चलने वाला एक भव्य आयोजन है, जिसकी शुरुआत 400 साल से भी पहले हुई थी। मैसूर का प्राचीन राजमहल अपने दशहरा आयोजन का पर्याय माना जाता है। वर्ष 1610 में इस पर्व की शुरुआत राजा वाडिया प्रथम ने की थी। यह आज भी लगभग वैसे ही मनाया जाता है, जैसे 1610 में इसकी शुरुआत हुई थी। इस त्योहार में हाथियों का जुलूस निकाला जाता है, जिसे जंबो सावरी कहा जाता है। इस जुलूस में शामिल होने वाले हाथी की पीठ पर 750 किलो का अंबारी होता है, जिसमें माता चामुंडेश्वरी की मूर्ति रखी जाती है।

कुल्लू का दशहरा

हिमाचल प्रदेश में स्थित कुल्लू का दशहरा भी एक किस्म का शाही उत्सव है, जो 8 दिनों तक चलता है। बाकी जगहों में जहां दशहरा नवरात्रि में शुरू होता है, वहीं कुल्लू का दशहरा विजयादशमी के बाद शुरू होता है। यह दशहरा उत्सव परंपरा, हिमाचली रीति-रिवाज और इतिहास पर रोशनी डालने के साथ सम्पन्न होता है। कुल्लू का दशहरा उगते चांद के दसवें दिन से शुरू होता है। इस उत्सव में भगवान रघुनाथजी की रथयात्रा निकाली जाती है। इस उत्सव में देवी-देवताओं की मूर्तियों को बेहद आकर्षक पालकियों में सजाकर उनका जुलूस निकाला जाता है। कुल्लू दशहरा के इस आयोजन में राजघराने के सभी सदस्य देवी-देवताओं का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। माना जाता है कि कुल्लू दशहरे की शुरुआत यहां के राजा जगतसिंह ने की थी। उन्हें कुष्ठ रोग था, जिससे छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक साधु ने रघुनाथ जी की मूर्ति लाने की सलाह दी थी।

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दिल्ली का दशहरा

देश की राजधानी दिल्ली अपने तरह-तरह के दशहरा आयोजनों के लिए भी प्रसिद्ध है। दिल्ली में नौ जगहों पर दशहरे का आयोजन किया जाता है। अगर कहा जाए कि दिल्ली विख्यात दशहरा आयोजनों से पटी पड़ी है तो अतिश्ायोक्ति नहीं होगी। सच्चाई तो यह है कि देश की राजधानी दिल्ली में होने वाले ये सभी दशहरा आयोजन न सिर्फ अपनी राष्ट्रीय पहचान बल्कि अलग सांस्कृतिक महत्व भी रखते हैं।

बनारस का दशहरा

वाराणसी से सटे उपनगर रामनगर का दशहरा को देखने के लिए देश-विदेश से हजारों लोग आते हैं। हालांकि दिल्ली की तरह ही वाराणसी में जगह-जगह रामलीलाओं का आयोजन होता है। लेकिन वाराणसी से सटे रामनगर में आयोजित होने वाला यह दशहरा पिछले 200 वर्षों से अपने आप में अनोखा है। इस दशहरे को देखने के लिए देश के हर कोने से रामकथा पर आस्था रखने वाले लोग आते हैं। यहां एक महीने तक रामकथाओं के मंचन के बाद दशहरा आयोजन आता है और इसका समापन दशमी को नहीं बल्कि पूर्णमासी के दिन होता है। यहां होने वाली रामलीलाएं दूर-दूर फैले गंगा के घाटों में होती हैं। हां, यहां रामलीला में हर एक सीन के लिए अलग स्थान चुना जाता है।

बस्तर का दशहरा

यहां दशहरा एक-दो-तीन दिनों तक नहीं बल्कि 75 दिनों तक आयोजित होता है। वर्ष 2023 में तो इसका आयोजन 107 दिनों तक हुआ था। बस्तर दशहरे की शुरुआत पाठजात्रा रस्म के साथ होती है और फिर एक-एक करके इसमें चौदह प्रमुख रस्में अदा की जाती हैं। बस्तर के दशहरे के आयोजन के दिनों की संख्या हर साल बदलती रहती है, क्योंकि यह संख्या ग्रह नक्षत्रों के आधार पर होती है। लेकिन यह बदलाव आमतौर पर दो या इससे कम दिनों का होता है। बस्तर दशहरे की प्रमुख रस्मों में पाठजात्रा, डेरी गढ़ई, काछनगादी, जोगी बिठाई, फूल रथयात्रा, बेल पूजा, निशाजात्रा, जोगी उठाई, मावली परघाव, भीतर रैनी, बाहर रैनी, मुरिया दरबार, कुटुंबजात्रा और होली विदाई के साथ दशहरा खत्म होता है।

इ.रि.सें.

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